Wednesday , December 18 2024

छत्‍तीसगढ़ में नींबू-मिर्च को लग गई महंगाई की नजर, 5-10 रुपये का नींबू-मिर्च अब 20 में

रायपुर : छत्‍तीसगढ़ में घर-व्यवसाय को बुरी नजर से बचाने के लिए शनिवार को द्वार पर नींबू-मिर्ची लटकाने का चलन आम है, लेकिन अब नींबू-मिर्च को ही महंगाई की नजर लग गई है। नींबू की कीमत बढ़ने से अधिकांश दुकानों और मकानों के बाहर लटकने वाले नींबू-मिर्च गायब हो गए हैं, बहुत कम दुकान, घर पर नजर आ रहे हैं। नींबू की बढ़ती कीमत के चलते पिछले शनिवार को अनेक दुकानदारों, घर मालिकों ने नींबू-मिर्च नहीं लटकाए, जो हर सप्ताह लगाया करते थे।

एक पखवाड़ा पहले तक इस कार्य में लगे लोग विविध बाजारों और मुहल्लों की तयशुदा दुकानों में एक नींबू और सात मिर्ची धागे में पिरोकर द्वार पर लटकाने के एवज में महज 10-15 रुपये लेते थे। नींबू की कीमत बढ़ जाने से 25-30 रुपये लेने लगे। निम्न-मध्यम परिवार के लोगों ने सीधे कीमत दुगनी हो जाने से नींबू-मिर्च नहीं लटकाया। दुकानदार जो अपनी दुकान पर चार-पांच जगह नींबू लटकाते थे, उन्होंने भी मात्र एक नींबू लटकाना शुरू कर दिया। पिछले दो सप्ताह से नींबू-मिर्च लगवाने वालों की संख्या घट गई।

दो सौ परिवार के सदस्य बेचते हैं नींबू

शास्त्री बाजार में नींबू-मिर्च लगाने का काम बरसों से कर रहे लोगों ने बताया कि वे हर सप्ताह 40-50 दुकानों में नींबू लटकाते थे, उनकी तरह दो-सौ परिवारों के लगभग एक हजार लोग गली-मुहल्लाें में घूम-घूमकर नींबू लटकाने का काम करते हैं। वे बताते हैं कि नींबू पहले 100 रुपये सैकड़ा मिलता था, अब महंगाई बढ़ने से एक हजार से 1500 रुपये सैकड़ा मिलने से असर पड़ा है। साथ ही हरी मिर्च की कीमत भी पहले 40-50 रुपये किलो थी, जो बढ़कर 70-80 रुपये किलो हो चुकी है।

एक परिवार की आमदनी प्रति सप्ताह दो से तीन हजार रुपये आसानी से हो जाती थी। अब नींबू लगवाने वालों की संख्या कम होने से आमदनी कम हो गई है। -मनमोहन साहू, नींबू विक्रेता

टोना-टोटका महज अंधविश्वास

नींबू लटकाने से समस्याएं दूर हो जाएं तो दुनिया में कोई दुखी नहीं रहेगा। यह अंधविश्वास है, इसमें जागरूकता आनी चाहिए। -डा.दिनेश मिश्रा, अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति

आस्था का प्रतीक

दुर्गा सप्तशती में नींबू को पवित्र माना गया है। आहुति देते समय नींबू का उपयोग किया जाता है, यह आस्था का प्रतीक है। बिना मंत्रों के सिद्ध किए नींबू को द्वार पर नहीं लटकाना चाहिए। -पं.मनोज शुक्ला, समलेश्वरी मंदिर

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