बांदा में पुलिसिया जांच पड़ताल की खामी ने एक मासूम के बचपन की हत्या कर दी। 13 वर्ष की कच्ची उम्र में महिला से दुष्कर्म और उसकी हत्या के आरोप में जेल भेजे गए किशोर की बेगुनाही 12 वर्ष जेल में रहने के बाद साबित हो सकी। इस बीच पीड़ित के परिवार ने सामाजिक तिरस्कार सहा। मां बाप और भाई बहनों का सहारा छिना। उसकी पीड़ा की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती, जिसे बचपन से लेकर अब तक कीमती वर्ष जेल में बिताने पड़े। बाइज्जत बरी करते समय विशेष न्यायाधीश ने पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठाए।
ये कहानी है बिसंडा थाना क्षेत्र के कायल कौहारा गांव निवासी मुलायम सिंह मौर्य की। जुलाई 2010 को एक गांव की अनुसूचित जाति की महिला का शव खेत में मिला था। पति ने अज्ञात पर दुष्कर्म के बाद हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई। पुलिस ने इस आरोप में 13 वर्ष के मुलायम सिंह मौर्य को आरोपी बनाकर जेल भेज दिया।
पुलिस ने विवेचना में कहा कि मुलायम ने जुर्म खुद स्वीकार किया है। हालांकि महिला के पति ने दलील दी थी कि किशोर अकेले दम उसकी पत्नी के साथ इतनी बड़ी वारदात नहीं कर सकता। इसमें और लोग शामिल रहे हैं, लेकिन पुलिस ने मुलायम को ही बलि का बकरा बनाकर जेल भेज दिया। पिता ने बताया कि पुलिस ने मुलायम को बहुत मारा था। मार के डर से उसने जुर्म कुबूल लिया था।
न्याय मित्र दिलाते रहे तारीख पर तारीख
मुलायम के जेल जाने के बाद उसके माता-पिता और मजदूर पेशा दो छोटे भाई अरविंद और लवलेश की माली हालत ऐसी नहीं थी कि वह दौड़ भाग और पैरवी में पैसा खर्च कर सकें। यहां तक कि गांव से जेल तक आने के लिए किराया भी उनके पास नहीं होता था। इसलिए मिलाई भी करने नहीं आ पाए। दूसरी तरफ मृतक महिला का फौजी पति लगातार पैरवी में जुटा रहा।
कोई वकील न होने पर मुलायम को पैरवी के लिए न्याय मित्र दिया गया। न्याय मित्र साल दर साल तारीख पर तारीख दिलाते रहे। अदालत को जब लगा कि लचर पैरवी हो रही है तब दो साल पहले सरकारी वकील मूलचंद्र कुशवाहा (मुख्य लीगल एडवोकेट) को पैरवी सौंपी। उन्होंने अंतत: नए सिरे से केस का अध्ययन किया और दोष मुक्त करा लिया।
पुलिस ने पास नहीं था कोई सबूत
वकील मूलचंद्र कुशवाहा ने बताया कि महिला की हत्या और दुष्कर्म में दर्ज कराई गई रिपोर्ट में काफी विरोधाभास थे। पुलिस ने अपनी विवेचना में घटना स्थल तीन जगह दर्शाया। संबंधित दरोगा के अलावा कोई गवाह भी कोर्ट में पेश नहीं किया गया। मुलायम के घटना में शामिल होने का कोई सबूत भी पुलिस नहीं दे सकी। अंतत: अदालत ने मुलायम मौर्य को बरी कर दिया।
माता पिता की छलक पड़ीं आंखें
मंगलवार को बेटे की रिहाई की खबर सुनकर मां दिन्नू देवी और पिता बच्चा प्रसाद मौर्य की आंखें छलक पड़ीं। बोले, गरीबी की वजह से बेगुनाह को सजा मिली है। बताया कि इतनी हैसियत नहीं थी कि जमानत और मुकदमेबाजी का खर्च उठा पाते। कोर्ट में बेगुनाही साबित करने में कितना खर्च होता है कौन नहीं जानता? मुलायम सबसे बड़ा बेटा था। छोटे दो भाइयों व बहनों की परवरिश करता था। उसके न रहने से पूरे परिवार ने जो दिन भोगे हैं वह हमेशा याद रहेंगे।
वादी और पुलिस पर हो सकता है क्लेम केस
दोष मुक्त हुए मुलायम सिंह मौर्य की अदालत में नि:शुल्क पैरवी करने वाले मुख्य लीगल एडवोकेट मूलचंद्र कुशवाहा ने बताया कि ऐसे मामलों में बरी व्यक्ति को क्षतिपूर्ति क्लेम दायर करने का अधिकार है। सिविल प्रक्रिया में यह प्रावधान है। दोषमुक्त व्यक्ति चाहे तो वादी और पुलिस पर क्षतिपूर्ति क्लेम का केस कर सकता है। यह उसी न्यायालय में दायर होगा जहां से बरी होने का फैसला हुआ है। साजिश रचने वाले कानून के दायरे में मानहानि के आरोपी हो सकते हैं।