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बवाल में खुफिया व एलआईयू की नाकामी उजागर हुई थी। वहीं, अब पीएफआई के तीन सदस्यों की गिरफ्तारी ने सभी को चौंका दिया है। ये वही पीएफआई के सदस्य हैं जो सवा दो साल पहले सीएए हिंसा में जेल भेजे गए थे। हैरानी की बात ये है कि यह सदस्य जेल से छूटे और बवाल की साजिश में शामिल हो गए लेकिन इस बात की भनक खुफिया विभाग या एलआईयू को नहीं लगी, जबकि ऐसे गंभीर मामलों के आरोपियों की निगरानी की जानी चाहिए। इस तरह एक बार फिर खुफिया विभाग सवालों के घेरे में है।
बवाल की साजिश में पुलिस ने पीएफआई के तीन सदस्य मोहम्मद उमर, मोहम्मद नसीम और सैफुल्ला को जेल भेजा है। दिसंबर 2019 में हुई सीएए हिंसा के मामले में भी ये तीनों जेल भेजे गए थे। अब पुलिस ने दावा किया है कि बवाल के मुख्य साजिशकर्ता हयात जफर हाशमी इनके संपर्क में था।
बाजार बंदी की साजिश में पूरी तरह से ये सभी शामिल रहे। व्हाट्सएप चैट व मोबाइल नंबर की सीडीआर से इसका खुलासा हुआ। सवाल है कि जब आरोपी जेल से छूटकर आए थे तब से खुफिया व एलआईयू इनकी निगरानी क्यों नहीं कर रही थी। हालांकि, पुलिस कमिश्नर विजय सिंह मीना ने पहले ही इस मामले में कहा था कि खुफिया को बवाल की साजिश की जानकारी क्यों नहीं हो सकी, इसकी जांच कराई जा रही है।
फंडिंग का ट्रेंड बदला
सूत्रों के मुताबिक अब पीएफआई ने फंडिंग के तरीके में बदलाव किया है। विदेशी फंडिंग के बजाय लोकल फंडिंग के जरिये अब फंड जुटाया जाता है, इसमें समुदाय से जुड़े व्यापारी समेत कई अपराधी, सफेदपोश शामिल रहते हैं। एटीएस इन सभी पहलुओं पर जांच कर रही है। जांच में बड़े खुलासे हो सकते हैं।
आठ से दस व्हाट्सएप ग्रुप बनाए
सूत्रों के मुताबिक पीएफआई ने आठ से दस व्हाट्सएप ग्रुप बनाए हैं, इसमें बंदी व बवाल संबंधी वीडियो व फोटो साझा किए जा रहे थे। बवाल शुरू हुआ तो भी इन ग्रुपों में सामान्य रिएक्शन था। क्योंकि, साजिश के तहत ही सब कुछ हो रहा था। पुलिस व एटीएस इसको गहनता से छानबीन कर रही है।
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