कानपुर के बजरिया थाने में बाबा बिरयानी का मालिक मुख्तार अहमद उर्फ मुख्तार बाबा के खिलाफ जिस राम जानकारी मंदिर को कब्जा कर तोड़कर होटल बनाने और फर्जी दस्तावेज तैयार कर बैनामा कराने का आरोपी बनाते हुए जेल भेजा गया है। उसे इसी मामले मे तीन साल पहले बख्श दिया गया था। उस दौरान बाबा तत्कालीन एसडीएम स्तर के दो अधिकारियों की जांच में बाबा क्लीनचिट साबित हो गया था।
साल 2019 में अपर नगर मजिस्ट्रेट (एसीएम) तृतीय ने उस समय कैसर जहां की ओर से मिली शिकायत के आधार पर मामले की जांच की। लंबी जांच के बाद जांच अधिकारी ने मंदिर होने और नगर निगम के दस्तावेजों में गड़बड़ी करने के आरोप खारिज कर दिए थे। जबकि बाबा ने जो जमीन खरीदी थी वह एक पाकिस्तानी नागरिक की बताई जाती है। इससे साफ है कि बाबा गलत दस्तावेजों और कुछ अधिकारियों का कृपा पात्र होने की वजह से तब बच गया था।
जांच अधिकारी ने उस समय करीब 303 संलग्नक के साथ पूरी रिपोर्ट उस समय के जिलाधिकारी को सौंप दी। इसके बाद साल 2020 में कैसर जहां ने फिर डीएम से एसीएम तृतीय की जांच रिपोर्ट को चुनौती देते हुए किसी उच्च स्तर के अधिकारी से कराने की गुजारिश की। इस पर एसीएम 7 के अलावा जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी और तहसीलदार न्यायिक सदर की संयुक्त कमेटी गठित कर जांच कराई गई। इस जांच के दौरान भी मंदिर को तोड़ने और कब्जा कर दुकान बनाने जैसे आरोेप खारिज कर दिए गए थे। प्रशासन उस समय हुई जांच को भी नए सिरे से जांच कराने की तैयारी कर रहा है।
संपत्ति के मूल मालिक भी बने मामले में आरोपी
जिस 99/14 ए राम जानकी मंदिर को लेकर विवाद चल रहा है उसके असल मालिक के परिवार के सदस्य शिवशरण गुप्ता को भी मुख्तार बाबा के साथ आरोपी बनाया गया है। यह तब है जब दो बार हुई प्रशासनिक जांच में यह स्पष्ट हो गया था कि नगर निगम के पंचशाला 1927 से 1948 तक संपत्ति संख्या 99/14 इन्हीं शिवशरण गुप्ता के परदादा भगवानदीन के नाम दर्ज थी। जांच के दौरान इन्हीं शिवशरण गुप्ता ने बयान देकर कहा था कि इस संपत्ति को उनके चचेरे बाबा लालता प्रसाद ने 1947 में मौला बक्श को बेचा था। यही भी कहा कि इस मंदिर में ही ठाकुरद्वारा का एक निजी मंदिर था जिसकी मूर्तियों को साल 2002 में यहां से 51 ए शंकराचार्य यशोदा नगर ले जाकर प्राण प्रतिष्ठा कराई थी।
पाक नागरिक आबिद ने मौला बक्श से खरीदी थी संपत्ति
जांच के दौरान एक और बात पता चली थी कि जिस पाकिस्तानी नागरिक आबिद रहमान की संपत्ति बताकर इसे शत्रु संपत्ति घोषित करने की प्रक्रिया चल रही है, वह एक समय भारतीय नागरिक ही था। नाला रोड निवासी आबिद ने 1967 में मौला बक्श से यह संपत्ति 1967 में खरीदी और 1982 में इसे मुख्तार बाबा के परिवार ने आबिद से खरीदा था।