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Kanpur Violence Updates: छह माह में वसी ने एक करोड़, हयात ने जुटाए थे 30 लाख, जानिए बवाल के लिए कैसे जुटाई थी फंडिंग

बिल्डर हाजी वसी और हयात जफर हाशमी

पुलिस की जांच में पता चला है कि बिल्डर हाजी वसी और हयात जफर हाशमी ने बवाल में फंडिंग के लिए संपत्ति बेचकर एक करोड़ तीस लाख रुपये जुटाए थे। इसमें से पत्थरबाजों को एक-एक हजार रुपये दिए गए थे। एसआईटी को पता चला है कि बवाल के एक दिन पहले वसी ने 34 लाख रुपये की दो संपत्तियां बेची थीं। पुलिस इसकी जांच में जुटी है।
सूत्रों के अनुसार हाजी वसी ने दो जून को 33. 80 लाख रुपये की दो संपत्तियां बेंची थी। इससे पहले दो अप्रैल को 35 लाख, सात फरवरी को 17 लाख और 20 दिसंबर 2021 को 16.75 लाख की संपत्ति बेची थी। वहीं हयात ने 24 मई को 13.95 लाख रुपये की दो संपत्तियां, 11 जनवरी को 9.90 लाख रुपये और 10 दिसंबर 2021 को सात लाख की संपत्ति बेची थी। पुलिस इन सभी संपत्तियों की जांच के लिए संबंधित विभाग से संपर्क कर रिपोर्ट मांगा है। 

राम जानकी मंदिर ट्रस्ट समेत तीन संपत्तियों पर फिर आएंगे जवाब 
बेकनगंज के डॉ. बेरी चौराहा स्थित राम जानकी मंदिर ट्रस्ट, नाला रोड स्थित दारुल मौहा और हीरामन का पुरवा स्थित बशीर स्टेट की तीन संपत्तियों को शत्रु संपत्ति के रूप में चिह्नित किया गया है। ऐसे में प्रशासन यहां रहने वाले 32 लोगों को अपनी बात रखने का अवसर दे चुका है। 

मुख्तार बाबा और शानू नामक व्यक्ति ने अपना पक्ष रखा जबकि 15 लोगों ने जवाब के लिए एक माह का समय मांगा था। अन्य 15 लोगों की ओर से कोई जवाब नहीं आया। जिसके बाद प्रशासन ने 13 जुलाई को सुनवाई रखी है।अधिकारियों के मुताबिक जो लोग जवाब देंगे उनके जवाब पर विचार किया जाएगा, जिनके जवाब नहीं आएंगे उनके जवाब का अवसर समाप्त कर दिया जाएगा। इसके बाद तीनों संपत्तियों को शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया जाएगा। 

बाबा ने माना था आबिद रहमान से ली थी संपत्ति
राम जानकी मंदिर ट्रस्ट के मामले में मुख्तार बाबा की ओर से जवाब दिया गया था कि उसने यह संपत्ति आबिद रहमान से खरीदी थी। आबिद रहमान भारतीय था, हालांकि इसके आगे वह कोई और तथ्य नहीं दे सका है।

मंदिर का वजूद खत्म कर ताना था बिरयानी रेस्टोरेंट 
राम जानकी मंदिर ट्रस्ट परिसर में 18 हिंदुओं की दुकानें थीं जिन्हें एक-एक कर खाली कराया गया। इस ट्रस्ट के ट्रस्टी भगवान दीन हलवाई हुआ करते थे। लेकिन नगर निगम के पंचशाला रजिस्टर में मौला बख्श और फिर नाबालिग आबिद रहमान का नाम दर्ज करवाया गया। इसके बाद बाबा ने फर्जी हिबानामा के माध्यम से अपनी मां हाजरा बेगम के नाम पर यह संपत्ति दर्ज करवाई और खुद वसीयत के माध्यम से संपत्ति पर अधिकार कर लिया, जबकि ट्रस्ट की जमीन किसी को नहीं बेची जा सकती।

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