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Salary scam: श्री मुनि इंटर कॉलेज में दो करोड़ का वेतन घोटाला, बाबू और चपरासी गिरफ्तार, पांच अन्य की तलाश जारी

पुलिस की गिरफ्त में आरोपी

कानपुर के गोविंदनगर स्थित श्री मुनि इंटर कॉलेज में हुए दो करोड़ के वेतन घोटाले में कर्नलगंज पुलिस ने कॉलेज के बाबू और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को मंगलवार टाटमिल चौराहे के पास से गिरफ्तार कर लिया। आरोपियों की पहचान रतनलाल नगर निवासी अविनाश कुमार द्विवेदी और मूलरूप से गोंडा के कर्नलगंज, गोबरे पुरवा निवासी बिहारी लाल के रूप में हुई है। पकड़े गए आरोपियों की घोटाले में अहम भूमिका पाई गई है। पुलिस ने दोनों को कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया।
थाना प्रभारी बलराम मिश्रा ने बताया कि इस मामले में 5 फरवरी 2020 को जिला विद्यालय निरीक्षक सतीश कुमार ने श्री मुनि इंटर कॉलेज के प्रबंधक कुंज बिहारी, तत्कालीन प्रधानाचार्य जय सिंह यादव, बाबू अविनाश द्विवेदी, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी राजेश्वरी, बिहारी लाल, जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय के लेखाकार रमाशंकर प्रसाद, जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय के वरिष्ठ सहायक मयंक त्रिपाठी के खिलाफ फर्जी दस्तावेज तैयार करना, धोखाधड़ी समेत अन्य धाराओं में रिपोर्ट दर्ज कराई थी।

आरोप था कि विद्यालय के प्रबंधक ने जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय में तैनात कर्मचारियों और अधिकारियों की मदद से वेतन मद के दो करोड़ रुपये हड़प लिए थे। मंगलवार को कर्नलगंज पुलिस बिहारी लाल की तलाश में गोंडा गई थी, वहां पता चला कि बिहारी बस से कानपुर के लिए रवाना हो चुका है। पीछा करते आई पुलिस ने उसे टाटमिल चौराहे पर बस से उतरते ही दबोच लिया। आरोपियों को कोर्ट में पेश करने के बाद जेल दिया। फरार अन्य आरोपियों की तलाश में दबिश दी जा रही है।

बाबू ने किया खेल, अफसरों ने आंख बंद कर किए दस्तखत
पुलिस की जांच में पता चला कि बाबू अविनाश ने दो खाते खुलवाए थे। वहीं चतुर्थश्रेणी कर्मचारी राजेश्वरी व बिहारी लाल ने एक-एक खाता खुलवाया था। बाबू ने दस्तावेजों में हेरफर कर अफसरों से शिक्षकों का वेतन पास करवा लिया। अफसर बगैर जांच पड़ताल के हस्ताक्षर करते रहे। सभी मिलकर वेतन हड़पते रहे।

दो चपरासियों के खातों में हर माह जाते थे एक लाख 88 हजार रुपये
जांच में पता चला कि श्री मुनि इंटर कॉलेज में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी राजेश्वरी के खाते में 90 हजार और बिहारी लाल के खाते में 98 हजार की राशि 2014 से प्रतिमाह जाती रही। यह राशि वेतन खाते के बजाय लेकिन निजी खातों में जा रही थी। डीआईओएस कार्यालय में दर्ज वेतन खाते में राशि भेजी ही नहीं गई। इसी तरह बाबू के एक खाते में हर महीने 95 हजार और दूसरे में 65 हजार प्रति माह धनराशि पहुंचती रही।

डीआईओएस कार्यालय के लेखाकार, लिपिक की भूमिका संदिग्ध
दो करोड़ के वेतन घोटाले में दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने वाले जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय में तैनात लेखाकार रमाशंकर प्रसाद, वरिष्ठ सहायक मयंक त्रिपाठी भी पुलिस के रडार पर हैं। सवाल है कि बिना अफसरों की शह पर बाबू और चपरासी इतना बड़ा घोटाला कैसे कर सकते हैं। पुलिस मामले की जांच जुटी है।

मुख्य साजिशकर्ता है अविनाश, 2013 से की थी शुरुआत
श्रीमुनि इंटर कॉलेज में मृतक आश्रित में बाबू के पद पर भर्ती हुए अविनाश ही वेतन बिल घोटाले का मुख्य साजिशकर्ता है। उसने ही स्कूल के दो अन्य कर्मचारियों को अपने साथ मिलाया। 2012-13 में रची इस साजिश का पर्दाफाश 2020 में हुआ। करीब आठ साल तक अविनाश लगातार अफसरों की लापरवाही का फायदा उठाता रहा। वेतन बिल बनने से लेकर पास होने तक छह चरणों से होकर गुजरता है। इतने सालों में अगर एक बार भी कोई बिल के कुल योग को दोबारा जांच लेता, तो मामला खुल जाता। 

2020 में खुला मामला
मामला 2020 में खुला। स्कूल के प्रधानाचार्य अजय पाठक ने डीआईओएस सतीश तिवारी को पत्र भेजकर वेतन विसंगतियों की शिकायत की थी। मामले की जांच के लिए डीआईओएस स्कूल पहुंचे थे। उस समय तक किसी को अंदाज नहीं था कि इतना बड़ा वेतन घोटाला सामने आएगा। जब डीआईओएस ने जांच की तब वेतन बिल घोटाले का खुलासा हुआ। डीआईओएस ने गोविंद नगर थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी।

ऐसे होता था खेल
इस घोटाले में कॉलेज के बाबू अविनाश, चपरासी बिहारी लाल और राजेश्वरी की मुख्य भूमिका पाई गई है। अविनाश अपने वेतन को बढ़ाकर लिखता, साथ ही चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी राजेश्वरी का दोगुना वेतन मंगाता और बिना कारण छुट्टी पर चल रहे चपरासी बिहारी लाल के खाते में भी वेतन मंगाता। कई रिटायर हो चुके शिक्षकों के वेतन मंगाता रहा। इसके अलावा वेतन बिल के कुल योग में भी लाख, डेढ़ लाख बढ़ा देता था।

कोषागार कार्यालय से अधिक वेतन ग्रांट मंगाई जाती, लेकिन डीआईओएस विभाग के पास जो पैसा ट्रांसफर की लिस्ट जाती, उसमें कुल योग को बदल देता। अविनाश ने दो खाते खुलवाए थे, वहीं राजेश्वरी व बिहारी लाल ने एक-एक खाता खुलवाया था। बाबू फर्जीवाड़ा से बनाए दस्तावेजों के सहारे अफसरों से वेतन पास करवा लेता था। अफसर बगैर जांच पड़ताल के हस्ताक्षर करते रहे। यह तीनों वेतन की रकम अपने-अपने खातों में जमा करते रहे।

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