पशुपालन विभाग ने बाराबंकी में पशुओं में नस्ल सुधार पर प्रयोग करने के लिए प्रयोगशाला स्थापित कर रखी है। यहां उन्नत किस्म के सांडों और गायों पर शोध किया जा रहा है। प्रयोगशाला में मुख्य रूप से मल्टी ओवुलेशन एम्ब्रयो ट्रांसफर (एमओईटी) तकनीक से नस्ल सुधार पर काम किया जा रहा है।

नई तकनीक से जन्मी बछिया – फोटो : Lok Nirman Times
विस्तार
राष्ट्रीय गोकुल मिशन पर काम कर रहे पशुपालन विभाग को बड़ी कामयाबी मिली है। प्रदेश में पहली बार टेस्ट ट्यूब यानी इन विट्रो फर्टीलाइजेशन (आईवीएफ) तकनीक से गायों में भ्रूण प्रत्यारोपण के माध्यम से दो बछड़े व दो बछिया का जन्म हुआ है। चारों पूरी तरह से स्वस्थ हैं। अहम यह है कि इस प्रक्रिया में 70 भ्रूण तैयार किए गए थे और सफलता सिर्फ चार में मिली।
पशुपालन विभाग ने बाराबंकी में पशुओं में नस्ल सुधार पर प्रयोग करने के लिए प्रयोगशाला स्थापित कर रखी है। यहां उन्नत किस्म के सांडों और गायों पर शोध किया जा रहा है। प्रयोगशाला में मुख्य रूप से मल्टी ओवुलेशन एम्ब्रयो ट्रांसफर (एमओईटी) तकनीक से नस्ल सुधार पर काम किया जा रहा है।
इस तकनीक में गाय के गर्भाशय में ही भ्रूण डवलप करते हैं। उसके बाद उसे दूसरी स्वस्थ गाय में प्रत्यारोपित किया जाता है। भ्रूण डवलप करने वाली गाय को डोनर और बाद में उसे धारण करने वाली को सरोगेट मदर कहा जाता जाता है। इस तकनीक से यहां 80 से ज्यादा बछड़े-बछिया पैदा किए जा चुके हैं।
पहली बार टेस्ट ट्यूब बेबी पर प्रयोग
एमओईटी में सफलता के बाद यहां विशेषज्ञों ने टेस्ट ट्यूब तकनीक पर प्रयोग शुरू किया और इस तकनीक में सफलता मिली है। प्रयोगशाला में इस तकनीक पर काम कर रहे डॉ. संतोष यादव ने बताया कि इस विधि में टेस्ट ट्यूब यानी परखनली में भ्रूण को विकसित किया जाता है और उसे गाय के गर्भाशय में प्रत्यारोपित करते हैं। यह एमओईटी से एडवांस तकनीक है।
53 गायों पर प्रयोग, 4 में सफलता
डॉ. संतोष ने बताया कि इस प्रक्रिया में 70 भ्रूण 53 गायों में ट्रांसप्लांट किए गए। इनमें से सिर्फ सात ही गर्मधारण कर पाईं और चार ने बच्चों को जन्म दिया। फिलहाल यह प्रयोग साहिवाल नस्ल पर ही चल रहा है। चूंकि सफलता प्रतिशत अभी कम है, लेकिन यह प्रयास और बढ़ेगा। इसके बाद गीर नस्ल पर काम होगा।
केंद्र व प्रदेश सरकार के इस मिशन में मिली सफलता ने हमारे लिए आगे की राहें खोल दी हैं। अब और व्यापक स्तर पर इस अभियान को चलाया जा सकेगा। आईवीएफ पद्घति से हम न केवल उत्तम नस्ल की गायों बल्कि प्रजनन के लिए उत्तम नस्ल के सांड पैदा करा सकेंगे।
– डॉ. अरविंद कुमार सिंह, सीईओ उप्र. पशुधन विकास परिषद