सार
सीवर और सैप्टिक टैंक की सफाई के दौरान मृतकों के आश्रितों को 10 लाख रुपये मुआवजा देने की व्यवस्था है। लेकिन निकायों की लापरवाही से आश्रितों को यह राशि समय से नहीं मिल पाती है।
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सांकेतिक तस्वीर
विस्तार
सीवर लाइन और सैप्टिक टैंक की सफाई के दौरान मरने वालों के परिजनों के लिए राहत भरी खबर है। शासन ने ऐसे मामलों में बीते 10 साल के दौरान हुई मौत में उनके आश्रितों को मुआवजा देने का फैसला किया है। स्थानीय निकाय निदेशालय ने इस संबंध में निकायों से जानकारी मांगी है। फिलहाल लखनऊ समेत सात जिलों से यह जानकारी मांगी गई है।
सीवर और सैप्टिक टैंक की सफाई के दौरान मृतकों के आश्रितों को 10 लाख रुपये मुआवजा देने की व्यवस्था है। लेकिन निकायों की लापरवाही से आश्रितों को यह राशि समय से नहीं मिल पाती है। इससे आश्रित लाभ पाने के लिए भटकते रहते हैं। स्थानीय निकाय निदेशालय ने हाल ही में समीक्षा की तो पाया कि सात जिलों लखनऊ, मेरठ, हाथरस, मथुरा, कानपुर, गाजियाबाद और गौतमबुद्धनगर के 30 मृतकों के आश्रितों को अब तक सहायता नहीं मिली है।
स्थानीय निकाय निदेशक नेहा शर्मा ने संबंधित जिलों के डीएम को पत्र भेजकर इनके आश्रितों की जानकारी मांगी है। इसमें कहा गया है कि मृत सफाई कर्मियों के आश्रितों को आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने के लिए जरूरी कागजात उपलब्ध कराए जाएं, जिससे सहायता उपलब्ध कराई जा सके।
इनके आश्रितों की मांगी गई रिपोर्ट
जिन मृतक आश्रितों के बारे में रिपोर्ट मांगी है, उनमें लखनऊ के बब्लू, श्याम बहादुर, पप्पू वाल्मीकि, मुकेश वाल्मीकि, रजत, बच्चे लाल वाल्मीकि, धीरज, रमेश कुमार, सफदर अली, अफसर अली और धीरज द्वितीय। कानपुर के हरी किशोर, गाजियाबाद के मकसूद, मोनू कुरैशी, अरविंद, बिजेंद्र, देविंद्र व नरेंद्र, मेरठ के उदय, ओमकार व सुरेश। गौतमबुद्धनगर के संजय, रामू यादव, हामिद, असलम, कृष्ण कुमार, राम भेष व पंकज और मथुरा के विष्णु के नाम शामिल हैं। सूची में हाथरस में 29 अगस्त 2019 को जिस कर्मी की मौत हुई थी उसका नाम नहीं है।