सार
यह वायरस पहली बार वर्ष 2001 में चीन के दक्षिणी प्रांत में मिला था। इसलिए इसे एसआरबीएसडीवी नाम दिया गया। इसे फिजी वायरस भी कहा जा रहा है। प्रदेश में पांच से दस प्रतिशत तक फसल इससे प्रभावित होने का अनुमान है।
धान की रोपाई करते किसान
विस्तार
उत्तर प्रदेश में सूखे की मार के चलते पहले ही धान की रोपाई कम हुई थी, अब फसल पर चीन के ‘साउथ राइस ब्लैक स्ट्रीक्ड ड्वार्फ वायरस’ (एसआरबीएसडीवी) ने हमला बोल दिया है। इससे प्रभावित फसल बौनी हो रही है और बालियां नहीं आ रही हैं। अंबेडकरनगर समेत कई जिलों में परेशान किसान प्रभावित फसल को जोत रहे हैं। हरियाणा, पंजाब और उत्तराखंड के बाद इस वायरस के प्रदेश में दस्तक देने से धान के कम उत्पादन की आशंका और बढ़ गई है।
प्रदेश में इस बार बारिश कम हुई है। 62 जिले ऐसे रहे जहां सामान्य से काफी कम बारिश हुई। इससे धान की फसल सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है। यही वजह रही कि 90 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की रोपाई के लक्ष्य की तुलना में सिर्फ 60 लाख हेक्टेेयर में ही रोपाई हो पाई। सूखे की मार झेलकर किसी तरह फसल रोपने वाले किसानों के समक्ष अब चीनी वायरस के हमले से संकट गहरा गया है। कई जिलों के सर्वे में इसका खुलासा हो रहा है। हालांकि प्रदेश में चल रहे सर्वे की रिपोर्ट अभी शासन को नहीं सौंपी गई है।
इन जिलों में वायरस का प्रकोप
प्रदेश में चल रहे सर्वे में बागपत, मेरठ, बिजनौर, अंबेडकरनगर, महाराजगंज, कुशीनगर, आजमगढ़, रायबरेली, प्रयागराज जिलों में वायरस का प्रकोप सामने आया है।
चीन में पहली बार 2001 में सामने आया था वायरस
यह वायरस पहली बार वर्ष 2001 में चीन के दक्षिणी प्रांत में मिला था। इसलिए इसे एसआरबीएसडीवी नाम दिया गया। इसे फिजी वायरस भी कहा जा रहा है। प्रदेश में पांच से दस प्रतिशत तक फसल इससे प्रभावित होने का अनुमान है। बागपत के किसान इंद्रपाल सिंह कहते हैं कि उनकी फसल इस वायरस से बर्बाद हो गई है। वे इसे धान की फसल का कोरोना बता रहे हैं।
प्रभावित फसल के लक्षण
एसआरबीएसडीवी से प्रभावित फसल में तना नहीं बढ़ता है। फसल बौनी रह जाती है। पौधे पर बालियां नहीं आती हैं। देखने मेें फसल हरी-भरी रहती है, पर वह केवल घास की तरह ही खड़ी रहती है। इनकी जड़ें काली हो जाती हैं।
राजस्व विभाग ने कहा, राहत दी जाएगी
प्रमुख सचिव राजस्व सुधीर गर्ग ने सभी डीएम को इस संबंध में पत्र लिखा है। इसमें उन्होंने पीड़ित किसानों का ब्योरा एकत्र करने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि भविष्य में अगर संबंधित जिला सूखेे के मानकों में शामिल होता है तो इन किसानों को कृषि निवेश अनुदान समय से देने में आसानी होगी। उन्होंने ऐसे प्रकरणों में नष्ट फसलों को शत प्रतिशत क्षति मानते हुए विवरण राहत आयुक्त को भेजने को कहा है।
प्रभावित पौधों को काटकर जमीन में दबा दें : डॉ. राव
आचार्य नरेंद्र देव कृषि विवि अयोध्या के निदेशक (प्रसार) डॉ. एपी राव कहते हैं कि फिलहाल वायरस से निपटने का कोई सीधा उपचार नहीं है। इसलिए इससे प्रभावित पौधों को काटकर जमीन में दबा देना चाहिए। खेत में भूरा फुदका का नियंत्रण करना चाहिए क्योंकि इसमें कीट प्रभावित पौधे का रस चूसकर दूसरे पर बैठता है तो वायरस वहां तक पहुंच जाता है। इसके लिए कीटनाशक का प्रयोग जरूरी है। इस बार कम बारिश के कारण बोआई लेट हुई है। इससे फसल पर वायरस का असर ज्यादा देखने को मिल रहा है। यदि किसान सही कीटनाशकों से इसके प्रसार को रोकें तो इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
एसआरबीएसडीवी के प्रकोप की सूचना कई जगह से आई है, लेकिन अभी टीमों ने रिपोर्ट नहीं दी है। यह भी पता चला है कि बारिश कम होने और वायरस के प्रकोप के चलते कई जिलों में किसानों ने अपनी फसल भी जोत दी है। टीम सर्वे कर रही है। उसकी रिपोर्ट आने के बाद पूरी स्थिति साफ हो जाएगी।