सार
मदरसा पंजीकृत न होने के कारण इसका पूरा खर्च दान में जुटाए पैसों से ही चलता है। कादरी मस्जिद में भी बच्चों की पढ़ाई होती है लेकिन यह मदरसा भी रजिस्टर्ड नहीं है। ऐसे अपंजीकृत तमाम मदरसों में भरत के साथ ही नेपाल व पाकिस्तान मूल के बच्चे भी पढ़ते हैं।
सांकेतिक तस्वीर
विस्तार
बहराइच जिले में नेपाल व भारत बार्डर के नो मेंस लैंड के आसपास मदरसों का जाल तेजी से फैलता जा रहा है। बीते पांच साल के दौरान प्रतिबंधित क्षेत्र में करीब डेढ़ सौ अवैध मदरसे संचालित होने लगे हैं। इनका पंजीकरण नहीं है। इसके साथ ही जिले के अन्य इलाकों में भी अवैैैध तौर से चल रहे मदरसों की संख्या कम होने का नाम नहीं ले रही। इसकी जानकारी के बाद भी रोकथाम की कार्रवाई को लेकर प्रशासन पूरी तरह उदासीन बना है।
सुरक्षा निगरानी में बरती जा रही शिथिलता के कारण इन मदरसों में नेपाल व भारत दोनों जगह रहने वाले बच्चे मजहबी तालीम पाने के नाम पर पढ़ते हैं। इतना ही नहीं कई मदरसों में जाने वाले बच्चों का नामांकन तो बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा संचालित परिषदीय स्कूलों तक में है। शासन के निर्देश पर अब जिले में शुरू हुए मदरसों के सर्वे कार्य के बाद जिले में संचालित ऐसे मदरसा संचालकों में हड़कंप है। हालांकि इसकी पूरी तस्वीर सर्वे रिपोर्ट के बाद ही साफ हो सकेगी।
जिले में रुपईडीहा कस्बे के पास से भारत- नेपाल सीमा शुरू होती है। यहां पर नो मेंस लैंड के आस-पास वाले इलाकों में रहने वाले विशेष समुदाय के बच्चों का प्राइमरी व जूनियर विद्यालयों में नामांकन तो देखा जाता है लेकिन इसका फायदा सिर्फ बच्चों के कल्याण के लिए संचालित सरकारी योजनाओं का फायदा पाने तक ही दिखता है। हकीकत में पंजीयन के बाद यह बच्चे पढ़ाई के लिए मदरसों में ही जाते हैं। इसी लिए प्राइमरी व जूनियर सरकारी विद्यालयों में ऐसे बच्चों के नामांकन के बावजूद उनकी उपस्थिति नहीं मिलती है।
सीमा क्षेत्र के निबिया, लहरपुरवा, रंजीतबोझा ,मिहींपुरवा ,पुरवा पचपकड़ी करीम गांव रुपईडीहा निधि नगर पोखरा, लखैया, सुजौली, अंटहवा, नई बाजार बाबागंज, आदि इलाके अवैध तौर से संचालित मदरसों के मकड़जाल में फंसे हैं। इन क्षेत्रों में करीब डेढ़ सौ मदरसों का संचालन हो रहा है जबकि पंजीयन महज दो दर्जन करीब मदरसों का ही है। इन मदरसों में मजहबी शिक्षा के साथ ही कुछ अन्य विषयों की शिक्षा भी दी जा रही है।
नो मेंस लैंड के प्रतिबंधित इलाकों में अवैध तरीके से संचालित मदरसों में सिर्फ मजहबी शिक्षा ही दी जाती है। यहां पर मदरसा जामिया कासमिया नसरूल उलूम में करीब 60 बच्चें और दो शिक्षक है। बताया गया कि मदरसा रजिस्टर्ड नहीं है। ग्राम रंजीतबोझा में चल रहे मदरसा के मौलवी हसमत अली ने बताया कि वह लखीमपुर के रहने वाले हैं और यहां आने वाले बच्चों को मजहबी शिक्षा देने के लिए आस पास के घरों से प्रति बच्चा सौ रुपया की धनराशि भी ली जाती है।
यह मदरसा पंजीकृत न होने के कारण इसका पूरा खर्च दान में जुटाए पैसों से ही चलता है। कादरी मस्जिद में भी बच्चों की पढ़ाई होती है लेकिन यह मदरसा भी रजिस्टर्ड नहीं है। ऐसे अपंजीकृत तमाम मदरसों में भरत के साथ ही नेपाल व पाकिस्तान मूल के बच्चे भी पढ़ते हैं। इससे यहां संचालित होने वाली संदिग्ध गतिविधियों से देेेश की आंतरिक सुरक्षा को भी खतरा बना रहता है।
क्षेत्रीय लोगों के अनुसार करीब पांच साल पहले नो मेंस लैंड के आस पास मात्र 15-20 मदरसा ही संचालित थे। लेकिन सुरक्षा निगरानी में ढील के चलते बीते पांच साल में इन अवैध मदरसों की संख्या का आंकड़ा करीब डेढ़ सौ तक पहुंच गया है। विभागीय आंकड़ों के अनुसार जिले में कुल 301 पंजीकृत मदरसा है। इनमें से 180 सरकार से अनुदानित हैं। विभागीय अधिकारी भी नाम न उजागर करने पर मानते हैं कि नो मेंस लैंड व इसके आस पास बड़ी संख्या में अवैध मदरसों का संचालन हो रहा है।
जिले में मदरसों के सर्वे का काम शुरू किया गया है। अभी गैर मान्यता प्राप्त मदरसों की संख्या के बारे में जानकारी नहीं है। नेपाल सीमा के आस पास सघन जांच की जा रही है। यहां जो मदरसा अवैध तरीके से संचालित मिलेंगे उनके संचालकों पर कार्रवाई होगी।