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वन्य जीवों की संख्या दुनियाभर में तेजी से घट रही ,भविष्य के लिए जरूरी है सुधार

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट में निरीक्षण किए गए वन्य जीव-जंतुओं की संख्या में औसतन 69 प्रतिशत तक की गिरावट आई है। वर्ष 1970 से 2018 के बीच 5230 प्रजातियों के 32 हजार जीवों का निरीक्षण किया। इसके मुताबिक नदी के जीवों की संख्या औसतन 83 प्रतिशत घटी है। वन्य जीवों की संख्या दुनियाभर में तेजी से घट रही है। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट (एलपीआर) 2022 में निरीक्षण किए गए वन्य जीव-जंतुओं की संख्या में औसतन 69 प्रतिशत तक की गिरावट आई है।

जैवविविधता की क्षति को रोकने की अपील

यह निरीक्षण वर्ष 1970 से 2018 के बीच 5230 प्रजातियों के 32 हजार जीवों का हुआ था। इनमें स्तनधारी, पक्षी, उभयचर और रेंगने वाले सभी जीव-जंतु शामिल थे। हैरत की बात यह कि जलीय जीवों की संख्या भी औसतन 83 प्रतिशत घटी है। रिपोर्ट में प्रकृति की स्थिति के चिंताजनक भविष्य पर भी प्रकाश डाला गया है और सरकारों, कंपनियों व लोगों से प्रकृति प्रतिकूल गतिविधियों में तत्काल बदलाव लाकर जैवविविधता की क्षति को रोकने की अपील की गई है।

जीव-जंतुओं की संख्या में औसतन 94 प्रतिशत की कमी

रिपोर्ट में यह उल्लेख भी किया गया है कि इस समय वैश्विक स्तर पर पृथ्वी दोहरे संकट से घिरी है। जलवायु परिवर्तन और जैवविविधता के पतन के एक दूसरे से जुड़े संकट हमारी गतिविधियों के मुख्य केंद्र हैं। इस रिपोर्ट में यह भी संकेत मिलता है कि वर्ष 1970 से 2018 के बीच लैटिन अमेरिकी और कैरिबियाई क्षेत्र में निरीक्षित वन्य जीव-जंतुओं की संख्या में औसतन 94 प्रतिशत की कमी आई है।

जलवायु परिवर्तन भी एक प्रमुख कारण

दुनियाभर में आवास क्षेत्र के पतन और क्षति, उपयोग, आक्रामक जीव-जंतुओं की घुसपैठ, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और रोग वन्य जीव-जंतुओं की संख्या में आई इस गिरावट के मुख्य कारण हैं। इसी अवधि के दौरान इनमें से कई कारकों के चलते अफ्रीका के वन्य जीव-जंतुओं की संख्या में 66 और एशिया प्रशांत में कुल 55 प्रतिशत की कमी आई। जलीय जीव-जंतुओं की संख्या में आई 83 की कमी तो किसी भी प्रजाति वर्ग की संख्या में आई सर्वाधिक गिरावट है।

कई कछारी वनों की क्षति

एलपीआर में कछारी वनों की भूमिका का भी विशेष उल्लेख किया गया है, जिनके संरक्षण व पुनर्स्थापन से जैवविविधता, जलवायु और लोगों के लिए एक अनुकूल समाधान मिल सकता है। महत्वपूर्ण होने के बावजूद, कछारी वनों का मत्स्यपालन, कृषि और तटीय विकास के कारण 0.13 प्रतिशत की वार्षिक दर से पतन जारी है। आंधियों और तटीय कटाव जैसे प्राकृतिक दबावों के साथ-साथ अति उपयोग एवं प्रदूषण के कारण भी कई कछारी वनों की क्षति होती है।

भूमि और पारितंत्रीय सेवाओं में कमी

इन कछारी वनों के पतन के चलते जैवविविधता के आवास क्षेत्र की क्षति होती है तथा तटवर्ती समुदायों को पारितंत्रीय सेवाएं नहीं मिल पातीं। कुछ क्षेत्रों में इससे उन भूभागों की क्षति हो सकती है, जहां तटवर्ती समुदाय रहते हैं। रिपोर्ट में उल्लेख है कि वर्ष 1985 से सुंदरवन के कछारी वन के 137 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में कटाव हुआ है, जिसके चलते वहां रहने वाले 10 मिलियन लोगों में से कई लोगों की भूमि और पारितंत्रीय सेवाओं में कमी आई है।

भविष्य के लिए जरूरी है सुधार

इस रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट रूप से कहा गया है कि विश्व भर में देशी लोगों और स्थानीय समुदायों के अधिकारों, शासन और संरक्षण के नेतृत्व को मान्यता और सम्मान दिए बिना प्रकृति अनुकूल भविष्य का निर्माण संभव नहीं है। संरक्षण व पुनर्स्थापन के कार्यों, विशेष रूप से खाद्य सामग्री के अधिक से अधिक स्थायी उत्पादन और उपयोग, में वृद्धि और सभी क्षेत्रों को समय रहते यथासंभव कार्बन से मुक्त कर इन दो संकटों को कम किया जा सकता है।

संबंधित समस्याओं के समाधान जरूरी

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया के महासचिव रवि सिंह ने कहा कि लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट 2022 से पता चलता है कि कैसे जलवायु परिवर्तन व जैवविविधता की क्षति केवल पर्यावरण की समस्याएं नहीं बल्कि अर्थव्यवस्था, विकास, सुरक्षा और समाज की समस्याएं भी हैं। ऐसे में उनका समाधान भी एक साथ किया जाना चाहिए।

भारत भी होगा प्रभावित

बताया जा रहा हैकि भारत में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव जल संसाधनों, कृषि, प्राकृतिक पारितंत्रों, स्वास्थ्य और आहार श्रृंखला पर पड़ेगा। हमें एक ऐसी सर्व-समावेशी सामूहिक कार्य-पद्धति की जरूरत है, जो सुनिश्चित करे कि मानवीय गतिविधियों की लागत एवं लाभ सामाजिक स्तर पर उचित हों और उनमें सभी की समान हिस्सेदारी हो।