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10 सेकेंड में किया था ऐसा कारनामा कि बन गया इतिहास

Rio Olympic में देश को पहलवानी में पहला मेडल दिलाने वाली Sakshi Malik के लिए पद्मश्री अवार्ड की घोषणा की गई है। इस ऐलान से Sakshi Malik बेहद खुश हैं। उनका कहना है कि इस अवॉर्ड के बारे में कभी नहीं सोचा था।9(30)

 वह अर्जुन अवार्ड और खेल रत्न के बारे में ही सोचती थीं। अब देश का इतना बड़ा सम्मान उन्हें मिलने जा रहा है तो बेहद खुशी हुई है, लेकिन हैरानी नहीं है। साक्षी मलिक कहती हैं कि उन्होंने जो मेहनत की है, उसका फल अब मिल रहा है और अभी तो ओर मेहनत करनी है। अभी तो मुझे पदम भूषण और पदम विभूषण भी लेना है। साथ ही अब लक्ष्य अगले साल एशियन व कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल हासिल करना है। टोकयो ओलंपिक में देश को पदक दिलाना है। पद्मश्री मिलने की घोषणा के बाद से साक्षी मलिक के परिवार में खुशी का माहौल है।
साक्षी मलिक कहती हैं कि मेरा मेडल बताएगा कि लड़की क्या कुछ नहीं कर सकती। जब मैं कर सकती हूं, तो कोई भी लड़की कर सकती है। मुझे लगता है कि हरियाणा में अब मां-बाप अपनी बेटियों की अहमियत, उसकी काबिलियत पर ऐतबार करेंगे, उसे तवज्जो देंगे। बेटियों को आगे बढ़ाएंगे। पढ़ाई में, खेल में, समाज के हर क्षेत्र में बेटियों को बढ़ावा मिले, इसके लिए मैं हर फोरम से आवाज उठाने को तैयार हूं।
पहलवान साक्षी मलिक का सफर काफी संघर्षपूर्ण रहा है। साक्षी का जन्म 3 सितंबर 1992 को रोहतक जिले में मोखरा गांव में हुआ। बचपन गांव में ही बीता। मां सुदेश मलिक की आंगनवाड़ी और पिता सुखबीर मलिक की दिल्ली में कंडक्टर की नौकरी थी। साक्षी के दादा बदलूराम इलाके के मशहूर पहलवान थे। 7 साल तक दादा के पास रहने के बाद साक्षी अपनी मां के पास लौट गईं।
इसके बाद साक्षी की रेसलिंग में रुचि हुई तो परिजनों ने हौसला अफजाई की। उस समय घर के पास कोई स्टेडियम नहीं था। इसलिए परिवार रोहतक के छोटूराम स्टेडियम के नजदीक आकर रहने लगा, ताकि साक्षी को प्रैक्टिस में कोई दिक्कत न आए। फिर साक्षी ने शुरुआती दौर में छोटूराम स्टेडियम में कोच ईश्वर दहिया से पहलवानी के गुर सीखने शुरू कर दिए। बाद में कोच मंदीप की देखरेख में कुश्ती के दाव पेंच सीखे।
साक्षी ने वर्ष 2014 में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में सिल्वर मेडल हासिल किया। 2015 के एशियन गेम्स में ब्रॉन्ज मेडल मिला। इसके बाद भी उसका सफर नहीं रुका और लगातार कड़ी मेहनत करनी जारी रखी। फिर पिछले साल रियो ओलिंपिक में 17 अगस्त को ब्रॉन्ज मेडल जीतकर साक्षी मलिक ने इतिहास रचा। भारत के लिए ओलंपिक पदक जीतने वाली वे पहली महिला पहलवान हैं।
साक्षी मलिक का जन्म 3 सितम्बर 1992 को हरियाणा के रोहतक जिले के मोखरा गाँव में हुआ था। उनके पिता सुखबीर मलिक दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन में बस कंडक्टर के पद पर कार्यरत है। माँ सुदेश मलिक रोहतक में आंगनबाड़ी सुपरवाइज़र हैं। उनका एक भाई भी है, जिसका नाम सचिन है। साक्षी मलिक ने पहलवान सत्यव्रत कादियान को अपना जीवनसाथी चुना है। दोनों की सगाई हो चुकी है।
साक्षी की मां बताती हैं कि उसके कुश्ती के प्रति जुनून है। दिन में 10-10 घंटे की कड़ी मेहनत के बाद भी वह थकती नहीं। अकसर कहती थी, तब तक बिना रुके पसीना बहाती रहूंगी, जब तक ओलंपिक में देश के लिए मेडल न जीत लूं। साक्षी के कोच कृपाशंकर बताते हैं कि वह बेहद आक्रामक खिलाड़ी है। उसमें कुश्ती के अलग-अलग पैंतरों को देखकर सीखने की अद्भुत क्षमता है।