उत्तराखंड में ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों की जानकारी जुटाई जा रही है। स्वास्थ्य विभाग की ओर से सभी मुख्य चिकित्साधिकारियों से ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों का अस्पताल वार ब्योरा देने को कहा गया है। केंद्र सरकार ने संसद में कहा था कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान देश में ऑक्सीजन की कमी से किसी भी मरीज की मौत नहीं हुई। संसद में दिए गए इस बयान पर हंगामा मच गया था और विपक्षी दल केंद्र सरकार पर आंकड़े छिपाने का आरोप लगा रहे हैं। इसके बाद केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर ऑक्सीजन की कमी से हुई मौत की जानकारी देने को कहा था।
राज्य के पास इस संदर्भ में पहले से कोई डेटा न होने पर स्वास्थ्य विभाग ने सभी जिलों के मुख्य चिकित्साधिकारियों को पत्र लिखकर ऑक्सीजन की कमी के कारण हुई मौतों की जानकारी देने को कहा है। सभी सीएमओ को अस्पतालों से जानकारी जुटाकर यह ब्योरा उपलब्ध कराने को कहा गया है। निदेशक स्वास्थ्य डॉ एसके गुप्ता ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि जिलों से जानकारी मिलने के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा कि आखिर कितने लोगों की मौत ऑक्सीजन की कमी के कारण हुई है।
मृत्यु दर में दूसरे स्थान पर राज्य
राज्य में कोरोना से अभी तक 7362 के करीब लोगों की मौत हुई है। इसमें से अधिकांश मौतें कोरोना की दूसरी लहर के दौरान हुई। हालंकि अस्पताल में जो मौतें हुई हैं उनके कारण अस्पतालों की ओर से अलग अलग दिए गए हैं। लेकिन ऑक्सीजन से हुई मौतों का अलग से ब्योरा नहीं है। विदित है कि राज्य कोरोना की मृत्यु दर के मामले में देश में दूसरे स्थान पर रहा है। एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल ने बताया कि उत्तराखंड में कोरोना से मृत्यु की दर 2.15 प्रतिशत के करीब है जो पंजाब के बाद देश में सबसे अधिक है। पंजाब में कोविड मृत्यु दर 2.5 के करीब है। राज्य की अधिक मृत्यु दर संसाधनों व इलाज की सुविधा में कमी की ओर इशारा करती है। हालांकि इसके और भी अधिक कारण हो सकते हैं। अनूप नौटियाल कहते हैं कि दूसरी लहर के दौरान उपजी परिस्थितियों से राज्य सीख सकता है।
जो अस्पताल नहीं आए उनका ब्योरा कैसे मिलेगा
राज्य में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान अस्पताल फुल हो गए थे और लोगों को आसानी से बेड नहीं मिल रहे थे। ऐसे में कई लोग अस्पतालों के चक्कर काटते काटते मर गए। जबकि कई गंभीर मरीजों को एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल रेफर किया गया और उन लोगों की एम्बुलेंस या निजी वाहनों में ही मौत हो गई। अब ऐसे मरीजों की मौत का ब्योरा अस्पताल भी नहं दे पाएंगे। ऐसे में ऑक्सीजन की कमी से हुर्ह मौतों की सही जानकारी सामने आना अब बेहद मुश्किल है।