इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि एक ही केस होने पर भी गैंगस्टर एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज कराई जा सकती है। इसमें कोई अवैधानिकता नहीं है। यदि दर्ज एफआईआर से संज्ञेय अपराध बन रहा है तो उसकी विवेचना अवश्य होनी चाहिए। इसे रद्द नहीं किया जा सकता और न ही इसके आरोपियों को संरक्षण दिया जा सकता है।
इसी के साथ कोर्ट ने एक ही आपराधिक मुकदमे को लेकर गैंगस्टर एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज करने के खिलाफ दाखिल एक दर्जन याचिकाएं खारिज कर दी हैं। यह आदेश न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर एवं न्यायमूर्ति समित गोपाल की खंडपीठ ने याचियों के अधिवक्ताओं और अपर शासकीय अधिवक्ता जेके उपाध्याय व अमित सिन्हा को सुनकर दिया है।
रितेश कुमार उर्फ रिक्की व कई अन्य याचिकाओं में कहा गया था कि याचियों के खिलाफ केवल एक मुकदमा दर्ज है। जिसमें उन्हें झूठा फंसाया गया है। कोई विश्वसनीय स्वतंत्र गवाह व साक्ष्य नहीं है। कोर्ट से सभी को जमानत मिल चुकी है या गिरफ्तारी पर रोक लगी है। जमानत पर छोड़ने के आदेश के कारण गैंग चार्ट तैयार कर गिरोहबंद कानून के तहत एफआईआर दर्ज कराई गई है। न तो किसी गैंग का पता है और न ही अपराध करने के लिए गैंग की मीटिंग का कोई साक्ष्य है। पुलिस ने जमानत पर रिहाई रोकने के लिए बिना ठोस सबूत के याचियों को फंसाया गया है। सरकारी वकील का कहना था कि दर्ज प्राथमिकी की विवेचना होनी चाहिए।
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