बेंगलूरु में आयोजित कार्यक्रम में बोले भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक
‘भारतीय परिदृश्य में भाषाएं और राष्ट्रीय एकता’ पर दो दिवसीय संगोष्ठी का शुभारंभ
बेंगलुरू : स्वराज सिर्फ अंग्रेजों का चला जाना और हिन्दुस्तानियों का सत्ता में आ जाना नहीं है। स्वराज का मतलब है कि अब हमारा सारा जीवन और चिंतन हमारी भाषाओं पर आधारित होगा। स्वभाषा, स्वभूषा, स्व-संस्कृति होगी। कोई चीज थोपी नहीं जाएगी। ज्ञान परंपरा अपने आधारों पर खड़ी होगी। यह विचार भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी), नई दिल्ली के महानिदेशक प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी ने भारतीय भाषा समिति (शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार) और माउंट कार्मेल कॉलेज (स्वायत्त), बेंगलूरु के संयुक्त तत्वावधान में ‘भारतीय परिदृश्य में भारतीय भाषाएं और राष्ट्रीय एकता’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ करते हुए व्यक्त किए। इस अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. हरीश अरोड़ा, भारतीय भाषा समिति के सहायक कुलसचिव जे. पी. सिंह, प्रख्यात कवि एवं लेखक उद्भ्रांत, वरिष्ठ पत्रकार कुमार जीवेंद्र झा, प्रो. रचना विमल, प्रो.एस.ए. मंजूनाथ एवं सेमिनार संयोजक डॉ. कोयल विश्वास उपस्थित रहे।
स्व और भाषा को भूल चुके हैं लोग
‘भारतीय भाषाएं एवं जनसंचार’ विषय पर आयोजित प्रथम सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो. द्विवेदी ने कहा कि आज हम ‘स्व’ और ‘भाषा’ को भूल चुके हैं। हिन्दी और भारतीय भाषाएं सशक्त होकर दुनिया के मंच पर स्थापित हो रही हैं। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिन्दी बोलकर दुनिया के हृदय पर राज कर रहे हैं। हिन्दी, कन्नड़, तमिल, तेलुगु, मलयालम, मराठी आदि हमारी अपनी मातृभाषाएं हैं। गृह मंत्री अमित शाह ने भी कहा है कि देश में संवैधानिक रूप से स्वीकृत सभी भाषाएं राष्ट्र भाषाएं हैं और हिन्दी राज भाषा है, क्योंकि हर देश की एक भाषा होती है, जिसके माध्यम से देश काम करता है।
अपने पुत्र-पुत्रियों से सम्मानित होती हैं माताएं और भाषाएं
आईआईएमसी के महानिदेशक के अनुसार माताएं और भाषाएं अपने पुत्र और पुत्रियों से सम्मानित होती हैं। हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाएं केवल भाषाएं नहीं हैं। ये न्याय की भाषाएं हैं। अगर देश के गरीबों, मजदूरों, आम लोगों, किसानों को न्याय दिलाना है, तो उनसे उनकी भाषाओं में बात करनी पड़ेगी, उनकी भाषाओं में शिक्षा की व्यवस्था करनी पड़ेगी और उनकी भाषा में ही सारी व्यवस्थाएं खड़ी करनी पड़ेगी, नहीं तो इस लोकतंत्र का कोई मतलब नहीं है।
जनसंचार का सबसे बड़ा अभियान है चुनाव
प्रो. द्विवेदी ने कहा कि चुनाव अभियान जनसंचार का सबसे बड़ा अभियान है। इस देश में कोई भी अंग्रेजी में वोट मांगकर सत्ता तक नहीं पहुंचा है। इसके लिए हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं का ही प्रयोग होता है। उन्होंने कहा कि नई तकनीकों से भारतीय भाषाओं को आज वैश्विक मंच मिला है। युवाओं को इसका सही इस्तेमाल करना चाहिए।
राष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान होती हैं भाषाएं
इस अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. हरीश अरोड़ा ने कहा कि वैश्विक संदर्भों से पूर्व भारतीय भाषाओं को भारत के संदर्भ में भी देखने की जरूरत है। भाषा व्यक्तित्व के साथ-साथ राष्ट्र की भी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखती है। 1,650 से अधिक भारतीय भाषाएं छोटे-छोटे समुदायों में आज भी जीवित हैं। उन्होंने कहा कि किसी भी राष्ट्र की सामूहिक संस्कृति ही उस राष्ट्र की पहचान बनती है। शिक्षक समुदाय आने वाली पीढ़ियों को ज्ञान तो दे सकता है। लेकिन, उस ज्ञान को आगे बढ़ाने का काम युवा पीढ़ी को करना होगा।
भाषा को ज्ञान के रूप में देखने की जरूरत
वरिष्ठ पत्रकार कुमार जीवेंद्र झा ने कहा कि भारतीय भाषाएं संस्कृत जैसी स्थिति में न आएं] इसलिए हिंदी और अन्य मातृभाषाओं की महत्ता को समझने की जरूरत है। सभी भाषाएं राष्ट्र को जोड़ती हैं। भाषाओं के विकास व संवर्धन में शिक्षकों की भूमिका अहम है। स्कूल-कॉलेजों में पाठ्यक्रमों में विदेशी भाषाओं की जगह भारतीय भाषाओं का विकल्प दें। भाषा को ज्ञान के रूप में देखने की जरूरत है।
भारतीय भाषाओं का भी हुआ वैश्वीकरण
भारतीय भाषा समिति के सहायक कुलसचिव जे. पी. सिंह ने कहा कि भारत एक बहुभाषी एवं बहुसांस्कृतिक राष्ट्र है। विविधता में एकता के सूत्र में बंधा यह देश अनेक राज्यों, जातियों, भाषाओं और संस्कृतियों को स्वयं में समाहित किए हुए निरंतर अपनी विकास यात्रा पर गतिशील है। भारत प्राचीन काल से ही अपनी सांस्कृतिक एवं सामाजिक विशिष्टताओं के लिए विश्व में जाना जाता रहा है। भाषा संस्कृति का एक विशिष्ट व महत्वपूर्ण उपादान होती है। भारतीय भाषाओं का भी वैश्वीकरण हुआ है।