एम.पी.एम.एम.सी.सी. एवं एच.बी.सी.एच. में पीड़ित मरीज करा रहे अपना इलाज
जागरूकता की कमी के कारण अक्सर देरी से इलाज के लिए इस्पताल आते हैं मरीज
-सुरेश गांधी
वाराणसी : पूर्वांचल में हृदय रोग और सांस की बीमारियां ही नहीं, बल्कि कैंसर के मामले भी बढ़ रहे हैं. भागमभाग भरी इस जिंदगी में रहन-सहन एवं खान-पान में लापरवाही के चलते लोग अब एक नया जानलेवा बीमारी कोलोरेक्टल कैंसर की चपेट में आ रहे है. महामना पंडित मदन मोहन मालवीय कैंसर केंद्र एवं होमी भाभा कैंसर अस्पताल (एम.पी.एम.एम.सी.सी. एवं एच.बी.सी.एच.) में हर महीने औसतन 200 नए कोलोरेक्टल कैंसर (बड़ी आंत का कैंसर) के मरीज इलाज के लिए पहुंच रहे है। जबकि कैंसर के अन्य मामलों के मरीजों की संख्या 20 हजार से भी अधिक है। कैंसर के मामलों को देखते हुए आंकड़ों को सार्वजनिक कर चेताया है कि इसपर जल्द नियंत्रण करना आवश्यक है. बता दें, बड़ी आंत में होने वाले कैंसर को कोलोरेक्टल कैंसर या कोलन कैंसर कहा जाता है। सामान्यतः यह कैंसर कोलन एरिया में होता है, जो रेक्टम एरिया को भी प्रभावित कर सकता है, इसलिए बड़ी आंत में प्रभावित क्षेत्रों के आधार पर, इसे आंत का कैंसर या रेक्टल कैंसर भी कहा जाता है। कोलोरेक्टल कैंसर महिलाओं और पुरूषों में होने वाला एक ऐसा कैंसर है जिसका लक्षण नहीं दिखता है. जिसकी वजह ये खतरनाक हो जाता है. ऐसे हाल में डॅाक्टर उन परिवारों को स्क्रीनिंग टेस्ट की सलाह देते हैं जिनके परिवार में किसी को कैंसर रहता है. कोलोरेक्टल कैंसर कोलन या मलाशय में पनपना शुरू होता है, जो पाचन तंत्र का ही एक हिस्सा होता है. ये कैंसर अमेरिका में पुरुषों और महिलाओं दोनों में पाया जाने वाला तीसरा सबसे आम कैंसर है. सबसे डराने वाली बात ये है कि कोलोरेक्टल कैंसर में शुरुआत में कोई लक्षण नहीं दिखते हैं. इसी कारण डॉक्टर 50 साल से ज्यादा उम्र के लोग या जिनके परिवार में कैंसर का इतिहास रहा हो उन्हें नियमित स्क्रीनिंग टेस्ट की सलाह देते हैं.
कोलोरेक्टल कैंसर के सबसे आम लक्षणों में से एक है आंत्रों में बदलाव. इसमें दस्त, कब्ज या मल की स्थिरता में बदलाव होने लगता है. चिकित्सकों के मुताबिक पेट में अगर अक्सर दर्द रहने लगा हो, स्टूल में खून आने लगे तो ये बीमारी हो सकती है. कोलोरेक्टल कैंसर का एक और लक्षण है अचानक कमजोरी बढ़ना. यह एनीमिया के कारण हो सकता है. अगर आपको खाना खाने के बाद भी हद से ज्यादा कमजोरी होने लग जाए तो आपको तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए. ये कोलोरेक्टल कैंसर के लक्षण हो सकते हैं. एक लक्षण यह भी है कि आपको हर समय भूख महसूस होगी. क्योंकि शरीर कैंसर से लड़ने के लिए ज्यादा एनर्जी लगा रहा है. एक कारण ये भी होता है कि मलाशय में एक ट्यूमर बन जाता है, जो रुकावट का कारण बन सकता है. इसी के कारण खाने को पचने में मुश्किल होने लगती है. कोलोरेक्टल कैंसर में कई बार आयरन की कमी भी होने लगती है. इस प्रकार का एनीमिया तब होता है जब शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं का उत्पादन करने के लिए पर्याप्त आयरन नहीं होता है. कोलोरेक्टल कैंसर को बड़ी आंत का कैंसर या पेट का कैंसर भी कहा जाता है। इसके बारे में अक्सर यह सोचा जाता है कि यह बुजुर्गों को होता है लेकिन यह जवान लड़कों को भी अपनी चपेट में ले सकता है।
महामना पंडित मदन मोहन मालवीय कैंसर केंद्र एवं होमी भाभा कैंसर अस्पताल (एम.पी.एम.एम.सी.सी. एवं एच.बी.सी.एच.) में हर महीने औसतन 200 नए कोलोरेक्टल कैंसर (बड़ी आंत का कैंसर) के मरीज इलाज के लिए आते हैं। ज्यादातर मामलो में देखा गया है कि मरीज इलाज के लिए देरी से अस्पताल पहुंचते हैं, जिससे बीमारी के बेहतर प्रबंधन में मुश्किल होती है। हालांकि आंकड़ों के अनुसार समय रहते इन मरीजों का इलाज शुरू होने से इस कैंसर में बीमारी से सही होने की संभावना बहुत अधिक है। आमजन को कोलोरेक्टल कैंसर के बारे में अधिक से अधिक जागरूक करने के लिए हर साल मार्च महीना “कोलोरेक्टल कैंसर जागरुकता माह” के रूप में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य इस बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करने के साथ ही उपलब्ध इलाज के बारे में बताना है। इस साल भी देश भर में कोलोरोक्टल कैंसर जागरूकता महीना मनाया जा रहा है, जिसके तहत कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जा रहा है। इसी क्रम में महामना पंडित मदन मोहन मालवीय कैंसर केंद्र एवं होमी भाभा कैंसर अस्पताल द्वारा भी लोगों को जागरूक करने के लिए अस्पताल में इलाज लेने वाले मरीजों का आंकड़ा जारी किया गया है। महामना पंडित मदन मोहन मालवीय कैंसर केंद्र एवं होमी भाभा कैंसर अस्पताल के सर्जरी विभाग के असिस्टेंट प्रो. स्वप्निल पटेल ने बताया कि फिलहाल हम औसतन 200 मरीज हर महीने, जबकि साल भर में करीब 2500 कोलोरेक्टल कैंसर के मरीज देख रहे हैं।
उपरोक्त मरीजों का इलाज कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी एवं सर्जरी के जरिए किया जाता है। महामना पंडित मदन मोहन मालवीय कैंसर केंद्र में इस बीमारी के इलाज के लिए सभी आधुनिक तकनीक उपलब्ध हैं। हम यहां लैप्रोस्कोपिक विधि से भी इस बीमारी में सर्जरी करते हैं। इससे न केवल सर्जरी में लगने वाले समय की बचत होती है, बल्कि सर्जरी के बाद घाव भरने में भी कम समय लगता है। साथ ही इस विधि द्वारा की गई सर्जरी में मरीज को दर्द भी कम होता है। 2021 से यह सर्जरी यहां शुरू की गई है और अबतक 300 से अधिक मरीजों की सर्जरी की जा चुकी है। उन्होंने बताया कि पश्चिमी देशों में यह कैंसर सामान्यतः 50 की उम्र में होता है, लेकिन हमारे देश में इसके मरीज 30-40 की उम्र में भी दिखते हैं। वहीं 60 प्रतिशत मरीज अडवांस्ड स्टेज यानी देरी से इलाज के लिए आते हैं। बार-बार कब्ज की समस्या, पेट में दर्द, लैट्रिन (मल) के रास्ते खून आना जैसे लक्षण दिखे तो तुरंत ही डॉक्टर से परामर्श ले लेना चाहिए, ताकि समय रहते बीमारी की पहचान हो सके। बीमारी से बचने के लिए रेड चिकन और शराब के सेवन से भी बचना चाहिए।