16 वर्ष तक के बच्चों को लक्ष्य मानते हुए 10 नवंबर तक लगेगा टीका
अब हर वर्ष अप्रैल के तीसरे व चौथे सप्ताह में लगाई जाएगी वैक्सीन
लखनऊ : डिप्थीरिया (गलघोंटू) की रोकथाम व बचाव के लिए स्कूल जाने वाले बच्चों को एक नवंबर से डिप्थीरिया-पर्ट्यूसिस-टिटनेस (डीपीटी) व टिटनेस-डिप्थीरिया (टीडी) का टीका लगाने का विशेष टीकाकरण अभियान चलाया जाएगा। स्कूल आधारित यह विशेष टीकाकरण अभियान एक नवंबर से 10 नवंबर तक जनपद के समस्त सरकारी व निजी क्षेत्र के स्कूलों में चलेगा। यह अभियान शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग मिलकर चलाएंगे। इस संबंध में सभी जिलाधिकारियों को स्कूल शिक्षा के महानिदेशक विजय किरण आनंद और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की मिशन निदेशक डॉ पिंकी जोवल के संयुक्त हस्ताक्षर का पत्र जारी किया गया है। प्रदेश के कुछ जिलों में डिप्थीरिया बीमारी के मामले प्रकाश में आने और उम्रदराज लोगों में संक्रमित होने के कारण शासन की ओर से पूरे प्रदेश में यह पहल की गयी है। अभियान से पहले संबंधित स्कूलों के शिक्षक अभिभावकों से टीकाकरण के लिए सहमति लेंगे। जो अभिभावक सहमति नहीं देंगे उन्हें प्रेरित कर उनके बच्चों का टीकाकरण किया जाएगा ।
अभियान के अंतर्गत कक्षा एक में अध्ययनरत पाँच वर्ष तक के बच्चों को डीपीटी सेकेंड बूस्टर डोज, कक्षा पाँच में अध्ययनरत 10 वर्ष तक के बच्चों को टीडी प्रथम डोज़, कक्षा 10 में अध्ययनरत 16 वर्ष तक के बच्चों को टीडी बूस्टर डोज़ से आच्छादित किया जाएगा। अभियान के दौरान पड़ने वाले नियमित टीकाकरण दिवसों (बुधवार व शनिवार) में सभी स्कूल न जाने वाले एवं अन्य डीपीटी सेकेंड बूस्टर, टीडी प्रथम एवं टीडी बूस्टर डोज़ वैक्सीन से छूटे हुये बच्चों को ड्यू टीके से आच्छादित किया जायेगा। हर टीकाकरण सत्र पर एडवर्स इवैंट फोलोविंग इम्यूनाइजेशन (एईएफ़आई) प्रबंधन के लिए आवश्यक किट एवं डीपीटी के पश्चात बुखार के प्रबन्धन के लिए आवश्यक दवा की उपलब्धता सुनिश्चित की गयी है ।
बीमारी की गंभीरता को देखते हुए आगे के वर्षों में यह अभियान अप्रैल के तीसरे और चौथे सप्ताह में चलाया जाएगा। इस वर्ष पूरे प्रदेश में मिले डिप्थीरिया ग्रस्त 99 बच्चों का इलाज किया गया। डिप्थीरिया के लक्षण के आधार पर इस वर्ष 699 बच्चों की जांच की गई। डिप्थीरिया यानि रोहिणी बीमारी दो से 11 वर्ष आयु के बच्चों में सामान्यतः अधिक होती है। हालांकि यह अन्य लोगों को भी हो सकती है। इसका इनयूबेशन पीरिएड दो से चार दिन होता है। इससे संक्रमित व्यक्ति को गले व नाक में मोटी व मटमैले रंग की परत छा जाती है। इससे सांस लेने में तकलीफ होती है। साथ ही खराश, बुखार, ठंड लगना व लसिका ग्रन्थि में सूजन और कमजोरी महसूस होती है। बीमारी बढ़ने पर यह गले में टांसिल के रूप दिखाई देती है।