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शिवरात्रि पर जानें, शिव से जुड़ी अनसुनी कहानियां

विनय कुमार :वेदों में प्रकृ‍ति के उपादानों की उपासना की गई है। हरेक उपादान को देवता का रूप दिया गया है। यह प्रकृति-विज्ञान का सारा प्रपंच बड़ा रहस्यमय है जिसे समझना सामान्यजन के लिए कठिन है। अनादिकाल से ऋषियों ने इन रहस्यों का मनन-चिंतन द्वारा अनुसंधान करने का प्रयत्न किया है।

शिवरा‍त्रि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को आती है। शिवजी इस चतुर्दशी के स्वामी हैं। इस दिन चंद्रमा सूर्य के अधिक निकट होता है। समस्त भूतों का अस्तित्व मिटाकर परमात्मा (शिव) से आत्मसाधना करने की रात शिवरात्रि है। इस दिन जीवरूपी चंद्रमा का परमात्मारूपी सूर्य के साथ योग रहता है, अत: शिवरा‍त्रि को लोग जागरण कर व्रत रखते हैं। शिव की हर बात निराली और रहस्यमय है lordshiva1_2015_6_29_111946

महाशिवरात्रि आने वाली 24 फरवरी को है लेकिन इसकी तैयारियां देश-दुनिया में अभी से शुरू हो गई हैं. हिंदू शास्त्रों  के अनुसार शिव विनाश के देवता हैं और ब्रम्हा, विष्णु, महेश त्रिशक्तियों में से एक हैं.

 

हिंदू मिथकों में शैव और वैष्णवों के हजारों साल से ये विवाद चला आ रहा है कि दोनों में से कौन बड़ा और कौन छोटा है.

जानिए क्या दिखाता है शिव का तीसरा नेत्र...

एक दिन पार्वती ने पीछे से आकर शिव की आंखे बंद कर दी. आंखे बंद करते ही सारी दुनिया में अंधेरा छा गया. अब दोबारा रोशनी करने के लिए सूर्य की जरूरत थी. ऐसे में सूरज को उगाने के लिए शिवजी ने अपनी तीसरी आंख खोली.

तीसरी आंख की चमक से निकली गर्मी इतनी तेज थी कि पार्वती की हथेलियों से पसीना टपकने लगा. पसीने से एक दाग पैदा हुआ. इस धब्बे का नाम अंधक पड़ा. अंधक का मतलब होता है, अंधेरे से बना.

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इस अंधक के पालन-पोषण की जिम्मेदारी एक ऐसे असुर को दे दी गई जिसके पास पहले से कोई संतान नहीं थी. बड़े होने पर अंधक ने ब्रह्मा की तपस्या करके एक वरदान मांगा. उसने मांगा कि जब तक वह अपनी मां को वासना की दृष्टि से न देखे तब तक उसकी मौत न हो.

अंधक को इस बात की जानकारी नहीं थी कि वह पैदा कैसे हुआ. उसके मां-बाप कौन हैं, यह भी उसे मालूम नहीं था.

अंधक कैसे मिला अपने माता पिता से

वह पूरी दुनिया जीतने निकल पड़ा. उसे कोई भी हरा नहीं पाया. अपनी जीत का सिलसिला लेकर अंधक कैलाश पर्वत पहुंचा.

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कैलाश पर्वत पहुंचते ही अंधक ने शिवजी को ललकारा. तब भगवान शिव ध्यान में थे. अंधक की नजर शिव के बगल में बैठी शक्ति पर पड़ी. अंधक को शक्ति के प्रति आकर्षण हुआ. अंधक को नहीं मालूम था कि यही उसकी मां है.

 

अंधक पार्वती की ओर बढ़ता है. घबराई पार्वती, शिवजी से उसे रोकने का निवेदन करतीं हैं. ध्यान में लीन शिव अपनी तीसरी आंख खोलते हैं. शिव अपने त्रिशूल से अंधक को निर्बल बनाकर ऐसे ही छोड़ देते हैं. अंधक एक हजार साल तक ऐसे ही खड़ा रहा. नतीजा यह हुआ कि उसकी मांसपेशियां सूखकर खत्म हो जाती हैं. अंधक हड्डी का एक ढांचा मात्र रह जाता है.

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इसके बाद उसे एहसास होता है कि पार्वती ही उसकी मां हैं और शिव उसके पिता. अंधक दोनों से माफी मांगता है और उनके साथ गण के रूप में रहने की आज्ञा ले लेता है.

क्या राज छुपा है इस साधारण सी कहानी में ?

ध्यान देने वाली बात यह है कि अंधक का जन्म शिव की तीसरी आंख से होता है. शिव की तीसरी आंख सही और गलत का भेद नहीं कर पाती. उनकी बाकि दोनों आंखें सही और गलत देखती हैं. शिव का तीसरा नेत्र ज्ञान की आंख है.

 

संस्कृति का आधार आपसी भेद और समानताएं हैं. इन मतभेदों और समानताओं की सीमाएं होती हैं. इन सीमाओं में संस्कृति के कुछ पक्ष समाहित होते हैं तो कुछ को अलग कर दिया जाता है. महिला और पुरुष इसी संस्कृति में पति और पत्नी के रूप में होते हैं. भगवान शिव का तीसरा नेत्र संस्कृति से परे है.

शिव की तीसरी आंख पति और पत्नी में भेद नहीं कर सकती. इसलिए शिव को अपनी पत्नी रावण को देना गलत नहीं लगता. इसलिए उनके तीसरे नेत्र से पैदा हुआ बालक मां को पहचान नहीं पाता और उनके प्रति आकर्षित हो जाता है.

शिव को इतना ज्यादा भोला माना जाता है कि वो किसी दूसरी महिला और अपनी पत्नी में फर्क नहीं कर पाते. शिव स्त्री और पुरुष में भी अंतर नहीं कर पाते. जब विष्णु उनके लिए मोहिनी का रूप धर कर आते हैं तो वे उनसे आलिंगनबद्ध हो जाते हैं.

ऐसे में विष्णु और पार्वती यह समझ नहीं पाते की कोई शिव को यह कैसे बताए कि ऐसा करना सही नहीं है. इतना ही नहीं भोलेनाथ उन्हें संस्कृति के नियमों पर सवाल उठाने के लिए बाध्य कर देते हैं. कोई व्यवहार सही या गलत क्यों है? सही व्यवहार का आधार क्या है? संस्कृति को हमेशा एक सा क्यों बने रहना चाहिए या संस्कृति बदलनी क्यों नहीं चाहिए?

इसी तरह भोलेनाथ ने एक बार पार्वती से कहा,’मुझे जो समर्पित किया जाता है उसका महत्व नहीं है. महत्व उस भावना का है जिससे वह समर्पित किया जाता है.’

शिव को भोलेनाथ कैसे बनाता है ये नेत्र

तमिल पेरियार पुराणम् की एक कथा है. इस कहानी में टिन्नन नाम का एक आदिवासी युवक हर शाम शिकार करने के बाद शिवलिंग पर एक जंगली फूल चढ़ाता है. इस फूल को वह अपने बालों में लगाता था. झरने का पानी अपने मुंह में भरकर लाता. उसे जल के रूप में शिवलिंग पर चढ़ाता. वह शिकार से हड्डियां निकालकर उसका बचा हुआ मांस भी शिवजी को समर्पित करता है.

ग्रंथों में शिवलिंग को फूल, दूध, धूप, राख और फल चढ़ाने की बात कही गई है.

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सच्ची भक्ति जांचने के लिए एक दिन शिवलिंग में से आंखों का एक जोड़ा प्रकट हुआ. एक आंख से खून निकलने लगता है. पुजारी इसे अशुभ समझकर वहां से भागने लगता है. लेकिन आदिवासी युवक टिन्नन इस खून को रोकने की कोशिश करने लगता है.

शिव का जन्म किस युग में हुआ और उनकी क्या कहानी है?

फिलॉसफी के दो भाग होते हैं. एक समय के भीतर जो बदलाव हुआ है वो और दूसरा जो समय के बाहर होता है. समय का नियंत्रण जिसके ऊपर है और समय का नियंत्रण जिस पर नहीं है. नियंत्रण का मतलब यह है कि आपका जन्म और मृत्यु दोनों ही तय है.

एक शब्द है योनीजा यानि जिसका जन्म योनी से हुआ है. राम का जन्म कौशल्या से हुआ है. राम का कौशल्या से मनुष्य योनी में जन्म हुआ है. कृष्ण का जन्म देवकी से हुआ. राम सरयू के अंदर चले जाते हैं और इस तरह से मरते हैं. कृष्ण को ‘जरा’ नामक एक धनुर्धारी का बाण लग जाता है तो उनको मृत्यु का अनुभव होता है.

तो यह एक दुनिया है जहां जन्म और मृत्यु का अनुभव होता है. इसके बाहर एक दूसरी दुनिया है जिसे अयोनीजा या स्वयंभू कहते हैं. वो दुनिया जहां प्राणी अपने आपको जन्म देते हैं और वहां बुढ़ापा या मृत्यु नहीं होती है.

यह नित्य दुनिया भगवान की दुनिया है. जिसे जैन सिद्धलोक यानि जहां सिद्ध आत्माएं रहती है ऐसा कहा जाता है. इसका मतलब ये हुआ कि यहां शिव विराजमान हैं, विष्णु भी यहां हैं. यहां वे हमेशा जवान हैं, न तो कोई पतझड़ है न ही सर्दियां हैं. हमेशा बसंत हैं. खुशी है. यहां मृत्यु नहीं होती है भूख भी नहीं लगती है.

 

चक्रीय-अचक्रीय दुनिया

दो तरह की दुनिया होती है. एक वो जो नित्य बदलने वाली होती है- जहां समय चक्रीय है और युगों में बदलता रहता है. वाल्मीकि रामायण में समय की चक्रीय होने के बारे में एक दिलचस्प बात है. जब भगवान राम देवी सीता को अपने साथ चलने के बजाय रुकने के लिए कहते हैं तो वे मना कर देती हैं. वहां पर सीता का सटीक तर्क होता है कि ‘हर रामायण में आपके साथ गई हूं तो अब क्यों रोक रहे हो?’

इसका मतलब ये हुआ कि रामायण के पहले होने का ज्ञान सीता को है और यही सिद्धांत लोककथाओं में हनुमान की मुद्रिका की कहानी के द्वारा बताया गया है.

समय के देवता राम से कहते हैं कि धरती पर उनका काम पूरा हो गया है और उन्हें मृत्यु को स्वीकार कर बैकुंठ लौट जाना चाहिए. भगवान राम यम देवता को बुलाना चाहते हैं लेकिन उन्हें मालूम है कि उनके परम भक्त हनुमान उन्हें राम के पास आने भी नहीं देंगे.

हनुमान का ध्यान बंटाने के लिए राम अपनी अंगूठी एक पत्थर की दरार में डाल देते हैं और फिर हनुमान से उसे लाने के लिए कहते हैं. हनुमान फौरन सूक्ष्म रूप में आ जाते हैं और दरार में छलांग लगा देते हैं. वे बहुत दूर तक भूगर्भ में निकल जाते हैं और नागलोक पहुंच जाते हैं.

नागलोक में हनुमान को नाम राजा वासुकी मिलते हैं, वे उनसे अंगूठी ढूंढने में मदद मांगते हैं. वासुकी उन्हें एक पहाड़ की ओर जाने के लिए कहते हैं. जैसे ही हनुमान उस पहाड़ के पास पहुंचते हैं उन्हें समझ में आता है कि वह अंगूठियों का पहाड़ है. वे सोचते हैं कि अब श्रीराम की अंगूठी कैसे ढूंढेंगे.

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वासुकी हनुमान को बताते हैं कि वे सब राम की अंगूठियां हैं और ये कि, यह एक अनंत कहानी है जिसमें धरती पर राम की मृत्यु से पहले एक वानर उनकी अंगूठी ढूंढने आता रहा है. तभी त्रेतायुग समाप्त होता है. यह चक्र अनंतकाल से चला आ रहा है. हनुमान को तब समझ में आता है कि जन्म-मृत्यु और फिर जन्म की प्रक्रिया अनंत है इसे रोका नहीं जा सकता.

मृत्यु से भय

इस कहानी में हनुमान के जरिए हनुमान और फिर हमारी अपनी कमियों के बारे में बताया जाता है. हनुमान इतने शक्तिशाली हैं लेकिन मृत्यु से डरते हैं. वे नहीं चाहते कि राम उनसे कहीं दूर चले जाएं. हनुमान को सीख देने के लिए यह पूरी कहानी गढ़ी गई है कि हनुमान को यह समझ में आए कि हर चीज पैदा हुई है तो मरेगी भी और जिसका मरण हुआ है उसका पुनर्जन्म भी होगा.