इसमें मुख्यमंत्री आवास के बगल वाला सरकारी बंगला नंबर 6 कालिदास मार्ग, गौतम पल्ली स्थित 22 नंबर का आवास और विधान भवन स्थित कार्यालय का कक्ष संख्या 58 ऐसा है जिसे लेने में लोग झिझकते हैं।
हालांकि, अधिकारी इसे महज इत्तेफाक मानते हैं। उनका कहना है कि गलत काम करने के कारण अगर कोई सजा पाता है तो इसमें बंगले का क्या दोष?
कालिदास मार्ग पर बंगला नंबर 6 के साथ कुछ ऐसा संयोग रहा कि जो भी यहां रहा, उसका भला नहीं हो सका। यह बंगला कभी अधिकारियों का ऑफिस हुआ करता था। मुलायम सरकार में मुख्य सचिव रह चुकीं नीरा यादव यहीं रहती थीं। इसी बंगले में रहते उन पर मुसीबतें आनी शुरू हुईं।
नोएडा में प्लॉट आवंटन मामले में उनका नाम आया और जेल तक जाना पड़ा। प्रमुख सचिव परिवार कल्याण रहे प्रदीप शुक्ला भी इस मकान में रह चुके हैं। वह एनआरएचएम घोटाले में फंस गए। बाद में इस बंगले को मंत्रियों या अहम पदों पर बैठे नेताओं के लिए आवंटित किया जाने लगा।
मुलायम सिंह यादव की 2003 में बनी सरकार में अमर सिंह को यह बंगला आवंटित हुआ और वे इसमें रहे भी। मुलायम की सत्ता गई तो वह भी बेदखल हो गए। बाद में अमर सिंह सपा से निकाले गए और तमाम तरह की मुश्किलें उनके सामने आईं।
बसपा सरकार बनी तो बाबूसिंह कुशवाहा को यह आवास आवंटित हुआ। चार साल तक तो उन्हें कोई दिक्कत नहीं आई, लेकिन उसके बाद एनआरएचएम घोटाले में फंसे और जेल तक जाना पड़ा।
बसपा सरकार गई और सपा सरकार में यह बंगला कैबिनेट मंत्री वकार अहमद शाह को दिया गया। वकार छह महीने तक इसमें रहे और उसके बाद बीमार पड़ गए। आज भी वह कोमा में हैं।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के बगल का बंगला होने की वजह से तत्कालीन मंत्री राजेंद्र चौधरी ने इसे अपने नाम आवंटित करा लिया। इस आवास में शिफ्ट हुए 24 घंटे भी नहीं बीते थे कि उनसे एक अहम मंत्रालय छीन लिया गया और वे केवल राजनैतिक पेंशन मंत्री रह गए। राजेंद्र चौधरी ने इसका जिम्मेदार इसी बंगले को माना और 24 घंटे में ही इसे खाली कर दिया।
गौतमपल्ली का बंगला नंबर 22 भी कुछ ऐसे ही अंधविश्वास से घिरा है। कहा जा रहा है कि इस बंगले में जो भी मंत्री गया, वह अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले ही हट गया। अखिलेश यादव सरकार में तीन मंत्रियों को यह बंगला आवंटित किया गया था।
सबसे पहले कृषि मंत्री रहे आनंद सिंह को दिया गया। कुछ दिनों बाद वह बर्खास्त हो गए। इसके बाद यह बंगला कैबिनेट मंत्री शिवाकांत ओझा को मिला। कुछ ही महीनों बाद ओझा को भी बर्खास्त होना पड़ा। बाद में जब शादाब फातिमा मंत्री बनीं तो विधायक निवास छोड़कर इसमें शिफ्ट हो गईं, लेकिन वह भी सपा के आपसी विवाद में बर्खास्त कर दी गईं।
यह अंधविश्वास सिर्फ सरकारी आवासों के साथ ही नहीं बल्कि कार्यालयों के साथ भी है। विधान भवन के 58 नंबर कक्ष को लेकर भी इसी तरह की चर्चा है।