नई दिल्ली। यूएई में साल 2015 में एक पाकिस्तानी नागरिक की हत्या के मामले में फंसे 10 भारतीयों को एक एनआरआई बिजनेसमैन ने मौत की सजा से बचा लिए है। मारे गए व्यक्ति का परिवार ने 2,00,000 दिरहम ‘ब्लडमनी’ स्वीकार कर दोषियों को माफ करने के लिए तैयार हो गया है। मगर, इस पूरे घटनाक्रम में पंजाब के एनआरआई बिजनेसमैन एसपीएस ओबरॉय का अहम योगदान है।
ओबेराय के लिए परोपकार जीवन जीने का एक तरीका है। इसके लिए ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने उन्हें मानद डॉक्टरेट की उपाधि भी दी है। पंजाब के मूल निवासी 59 वर्षीय व्यापारी दुबई में रहते हैं। 10 भारतीयों की जिंदगी बचाने के लिए ब्लडमनी का पैसा जमा करने के कारण एक बार फिर से वह सुर्खियों में हैं।
इन भारतीयों को पाकिस्तान के एक आदमी की हत्या के लिए मौत की सजा दी गई थी। सर्बत दा भला संस्था के एसपीएस ओबरॉय ने कहा कि उन्हें माफी के लिए मनाना मुश्किल था। हमने इसके बदले उन्हें पैसे दिए हैं, ताकि 10 लोगों की जिंदगी बच जाए।
ओबरॉय ने कहा कि हमने उन्हें किसी तरह मनाया। शरिया कानून के तहत हमने उन्हें कोर्ट के जरिए 200,000 दिरहम ब्लड मनी दी है। ओबरॉय अब तक 88 लोगों की जिंदगी बचा चुके हैं। मध्यपूर्व और पश्चिम एशिया में जो भी उनसे मदद मांगता है, ओबरॉय उसकी मदद के लिए आगे आते हैं।
भारतीय दूतावास के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि मोहम्मद फरहान के पिता मोहम्मद रियाज ने 22 मार्च को अल आइन की अपीली अदालत में भारतीयों को माफ करने संबंधी एक सहमति पत्र जमा किया। रियाज ने कहा कि यह दुर्भाग्य है कि मैंने अपना बेटा खोया। मैं आज की पीढ़ी से अपील करता हूं कि ऐसे झगड़ों में न पड़ें। मैंने इन 10 लोगों को माफ कर दिया है। सच तो ये है कि अल्लाह ने उनकी जिंदगी बख्शी है।
एक पत्नी और बच्चों सहित कम से कम 10 लोगों की जिंदगी आर्थिक रूप से एक व्यक्ति पर निर्भर थी। अबु धाबी में भारतीय दूतावास में काउंसलर दिनेश कुमार ने कहा कि आरोपियों की तरफ से एक भारतीय परोपकारी संगठन ने अदालत में मृतक के परिवार को आरोपी को माफ करने की बदले में रकम जमा कराई है। अब मामले की सुनवाई 12 अप्रैल को होगी।
दिसंबर 2015 में अल आइन में शराब की अवैध ब्रिकी को लेकर हुई लड़ाई में कथित तौर पर यह हत्या हुई थी। इस मामले में पंजाब के 11 व्यक्तियों को दोषी ठहराया गया था, लेकिन एक व्यक्ति मौत की सजा से बच गया था।
क्या है ब्लडमनी
शरिया कानून के तहत हत्या के दोषी और पीड़ित परिवार के बीच सुलह हो जाए और पीड़ित पक्ष माफी देने पर राजी हो जाए, तो फांसी की सजा माफ करने के लिए अदालत में अपील की जा सकती है। इस प्रावधान के तहत कई बार मुआवजा भी दिया जाता है, जिसे ‘ब्लड मनी’ कहते हैं। हालांकि, यह अदालत पर निर्भर करता है कि वह माफी दे या नहीं।