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नए नोटों में रेडियोऐक्टिव इंक व चिप का पूरा सच

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नोटों में यानी कि नए 200 और 500 की नोट  में नैनो चिप ‘लगने वाली थी’. न मालूम क्यूं नहीं लगी. हल्ला बहुत था. गजब का था. हर ओर शूं-शां! होता तो मज़ा आता. जैसे ही मेरे पास खूब सारे नोट्स आते, आयकर वालो  को फ़ोन चला जाता. इन बातो पर विराम लगाया वित्त मंत्री ने | लेकिन शोसल मिडिया पर आयकर की छापेमारी पर बड़ी ेसंख्या में नए नोटों की बरामदगी पर अफवाह की नोटों में चिप लगा है बला मिल रहा है |

खैर. बात आई-गई हो गयी. दो-तीन फ़नी वायरल वीडियो चले. व्हाट्सैप्प गुलज़ार रहा. फिर बातें शांत हो गयीं. मुद्दा फिर से बैंक के सामने लगी कतार और बागों में बहार पर आकर रुक गया. लोगों की मौत हुई, लाइन में लगे लगे. बच्चे पैदा हुए, मां के लाइन में लगे-लगे. एक दो फेकिंग न्यूज़ की मानें तो लोगों को  लाइन में ही लगे-लगे प्यार भी हो गया.

खैर. ये भी जाने दिया जाए. आज-कल एक खबर चल रही है. गजब वाली. कह रहे हैं कि इस बीच जो ये करोड़ों के 2000 के नोट्स पकड़े जा रहे हैं, उसके पीछे भी सरकार की कारस्तानी है. वो भी गजब वाली. वो कारस्तानी जिसमें साइंस शामिल है. हमने कहा,ह्हपेमारी “गजब!” पढ़ा तो मालूम चला कि नए शिगूफे के हिसाब से नोटों को जिस स्याही से तैयार किया जा रहा है, उस स्याही में रेडियोएक्टिव इंक मिली हुई है. यानी इंक में फॉस्फोरस-32 एलिमेंट शामिल है.

फॉस्फोरस-32. यानी पी-32. यानी फॉस्फोरस का आइसोटोप. यानी 15 प्रोटॉन और 17 न्यूट्रॉन वाला रेडियोएक्टिव एलिमेंट. दुनिया में पाए जाने वाले कई एलिमेंट्स के आइसोटोप्स होते हैं. किसी एलिमेंट के आइसोटोप का मतलब होता है कि उन एलिमेंट्स के पास प्रोटॉन समान संख्या में होते हैं जबकि उनके न्यूट्रॉन्स की संख्या अलग होती है. इसलिए वो दोनों केमिकल प्रॉपर्टी में अलग-अलग होते हैं.

तो मुद्दा ये है कि खबर के मुताबिक़, फॉस्फोरस-32 एक रेडियोऐक्टिव एलिमेंट है (जो कि सच है) और उसे नोट छापने की इंक में मिलाया गया है. इससे होता ये है कि नोट्स से रेडियोऐक्टिव रेडियेशन होते हैं. और तकनीक ये इस्तेमाल की गयी है कि जब नोटों को बड़ी संख्या में एक ही जगह पर इकट्ठा किया जाएगा तो उसमें से इतनी मात्रा में रेडियेशन होगा कि उसे डिटेक्टर्स ढूंढ लेंगे. और कोई भी इंसान जब एक ही जगह पर खूब सारे नोटों को जमा करके रक्खेगा तो सरकार की नज़रों से बच नहीं सकेगा.

ये ऊपर कही गयी ही बात वो थी जिसने सारा हाजमा खराब कर दिया. साइंस चीज़ ही ऐसी होती है कि आप चूक नहीं कर सकते. क्यूं इस बात ने हाजमा खराब किया, बताते हैं:

किसी भी रेडियोऐक्टिव एलिमेंट की एक हाफ़ लाइफ़ होती है. ये बिलकुल दूध जैसा है. कि आपने उसे एक पतीले में रख दिया तो वो एक निश्चित अवधि के बाद खराब हो जायेगा. वैसे ही रेडियोऐक्टिव एलिमेंट की हाफ़ लाइफ़ होती है. यानी एक निश्चित समय के बाद वो खराब हो जाएगा. लेकिन आधा. यानी आधा बचा रहेगा.

कोई भी रेडियोएक्टिव एलिमेंट जब रेडियो किरणें छोड़ रहा होता है तो वो अंदर ही अंदर खप रहा होता है. हाफ़ लाइफ पीरियड खतम होते ही वो आधा हो जाता है. मान लीजिये केतन नाम का एक रेडियोऐक्टिव एलिमेंट है. इसकी हाफ़ लाइफ है 24 घंटे. केतन का वजन 80 किलो है. तो 24 घंटे यानी हाफ़ लाइफ के बाद मात्र 40 किलो केतन बचेगा. बाकी 40 किलो किसी और ही एलिमेंट में बदल चुका होगा. फिर अगले 24 घंटे बाद 20 किलो केतन बचेंगे. फिर अगले 24 घंटे में 10 किलो. और ऐसे ही चलता रहेगा. 

तो अगर नोटों में फॉस्फोरस-32 सच में है, और नोटें इतनी इकट्ठी हो गईं कि उससे डिटेक्ट करने लायक रेडियोऐक्टिव किरणें निकलने लगीं तो वो मात्र 15 दिनों तक ही काम में आएगा. क्यूंकि फॉस्फोरस-32 की हाफ़ लाइफ 14.92 दिन है. यानी आप अगर 15 दिन तक उन नोटों को छुपा ले गए तो 15 दिन बाद उन्हें नहीं डिटेक्ट किया जा सकेगा.

एक बार फिर से बता दिया जाए. मान लीजिये 100 ग्राम फॉस्फोरस-32 एक साथ मिलने पर डिटेक्ट हो सकेगा. ऐसे में अगर 15 दिनों तक उसे किसी भी तरह से छुपा लिया जाए तो 16वें दिन फॉस्फोरस-32 50 ग्राम का रह जायेगा. जो डिटेक्ट नहीं हो सकता. और नोट पकड़ने से बच जाएंगे.

फॉस्फोरस-32 को बहुत ही आराम से छुपाया जा सकता है. इसके रेडियेशन से 1 मीटर की हवा की परत से बचा जा सकता है. 1 मीटर हवा की परत फॉस्फोरस-32 के रेडियेशन को ब्लॉक कर देती है.

और इसी हाफ़ लाइफ के कॉन्सेप्ट की वजह से हम रेडियेशन वाली इंक का इस्तेमाल कर ही नहीं सकते. ऐसा किया गया तो ये कतई बेअसर साबित होगा या फिर अगर इसे ज़्यादा क्वॉन्टिटी में इस्तेमाल किया तो लोगों को रेडियेशन का शिकार होना पड़ेगा. इस वजह से ये भी नैनो चिप जितना ही कारगर है यानी बस व्हाट्सैप जोक्स बनाने भर का.