यू डोन्ट नो’ मतलब ‘तुम नहीं जानते।’ ये तीन शब्द शायद आपको बेहद सामान्य लगें, लेकिन यकीन कीजिए कि जब जे जयललिता इन शब्दों को बोलती थीं, तो सामने वाला बिल्कुल चुप हो जाता था। तमिलनाडु में पोस्टिंग पाने वाले नौकरशाहों को पता होता था कि जब अम्मा ‘यू डोन्ट नो’ बोलें, तो वह बातचीत खत्म कर रही हैं। इसके बाद सामने वाला कुछ नहीं बोलता था। जयललिता की न केवल अपनी पार्टी AIADMK पर, बल्कि सरकार पर भी बहुत मजबूत पकड़ थी।
उनकी छवि इतनी कद्दावर थी कि उनके सामने कोई दूसरा टिक नहीं पाता था। जयललिता को ‘ना’ सुनने की जैसे आदत ही नहीं थी। जैसे इंदिरा गांधी के लिए कहा जाता था, ठीक वैसे ही जयललिता को भी ‘अपनी कैबिनेट का इकलौता मर्द’ कहा जाता था।
नौकरशाहों का कहना है कि जयललिता अपने फैसले बड़ी जल्दी लेती थीं। जो लोग उनके फैसले के खिलाफ जाने की हिम्मत करते, उनको जयललिता का गुस्सा भी झेलना पड़ता था। उनके साथ काम करने वाले भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘समीक्षा बैठकों के लिए वह तैयारी के साथ आती थीं।
बातों को समझने की उनकी क्षमता लाजवाब थी। ज्यादा से ज्यादा वह कुछ सुझाव मांगती और फैसला उसी वक्त ले लिया जाता था।’ जयललिता के करीबी और भरोसेमंद जो चाहे कर सकते थे, शर्त बस इतनी थी कि उन्होंने अम्मा को पहले से जानकारी दे दी हो। अगर कोई भी जयललिता का भरोसा खो देता, तो उसे निकालने में वह जरा भी नहीं हिचकती थीं। पूर्व मुख्य सचिव के गणनदेसिकन (2016) और पूर्व DGP ए रविंद्रनाथ (2011) का निलंबन इसी बात का उदाहरण है।
अधिकारी तो मुद्दों को समझने की उनकी काबिलियत और सुलझी सोच के कायल थे। इतना ही नहीं, जयललिता की याद्दाश्त की कमाल की थी। वह काफी व्यवस्थित तौर पर काम करने में भरोसा करती थीं। उनके पास एक डायरी होती थी, जिसमें तमिलनाडु में नियुक्त भारतीय पुलिस सेवा (IPS) के सभी अधिकारियों का ब्योरा होता था। अधिकारियों के तबादले, नियुक्ति और प्रमोशन से जुड़े फैसले लेने के पहले वह अपनी यह डायरी जरूर देखती थीं। जयललिता ऐसे तमिल राष्ट्रवादी संगठनों और जातिगत राजनीति पर आधारित छोटे राजनैतिक दलों पर भी बारीक नजर रखती थीं, जो कि सामाजिक तनाव पैदा कर सकते थे।
2001 से 2006 के बीच के अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल में उन्होंने अपने पूर्व सहयोगी वायको को हिरासत में लिए जाने का आदेश दिया था। वायको पर आरोप था कि उन्होंने अपने एक भाषण में LTTE का समर्थन किया है। जयललिता के ही आदेश पर साल 2013 में PMK के रामदास और उनके बेटे अंबुमणि को हिंसा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था। जयललिता तक पहुंच पाना हर किसी के बस की बात नहीं थी।
उनके इर्द-गिर्द लोगों का मजबूत घेरा हुआ करता था, जिसे पार कर जयललिता तक पहुंच पाना मुश्किल था। इसके बावजूद उनका राजनीतिक अनुमान शायद ही कभी गलत साबित हुआ हो। आय से अधिक संपत्ति के मामले में जब उनके निलंबन की तलवार लटक रही थी, तब भी उन्होंने सभी 234 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए। DMK के मजबूत होने की कयासबाजियों के बीच भी जयललिता का यह फैसला गलत साबित नहीं हुआ और वह दोबारा जीतकर सत्ता में आईं।