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बीजेपी की मीटिंग में मोदी बोले,परिवार के लिए टिकट न मांगें, भाई-भतीजावाद…

बीजेपी की नेशनल एग्जीक्यूटिव की मीटिंग के दूसरे दिन शनिवार को नरेंद्र मोदी भी पहुंचे। उन्होंने पार्टी नेताओं को नसीहत दी कि परिवार के सदस्यों के लिए वे टिकट का दबाव न बनाएं। मोदी ने कहा, “पार्टी में किसी भी तरह के भाई-भतीजावाद को बढ़ावा नहीं दिया जाएगा। पार्टी सही उम्मीदवारों को ही टिकट देती है।” उन्होंने पॉलिटिक्स और चुनावी चंदे में ट्रांसपेरेंसी पर भी जोर दिया। कहा, “पार्टियों को अपनी फंडिंग का ब्योरा पब्लिक करना चाहिए ताकि आम लोग भी जान सकें कि दलों के पास पैसा कहां से आता है।” इस सिलसिले में उन्होंने राष्ट्रपति, चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट के बयानों को भी सराहा।

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 न्यूज एजेंसी के मुताबिक, बीजेपी की नेशनल एग्जीक्यूटिव की मीटिंग में 5 राज्यों की चुनावी रणनीति पर भी मंथन हुआ। 
मोदी ने कहा, “अब तक पार्टियों ने गरीबों को सिर्फ चुनाव जीतने का जरिया समझा है। गरीबों की सेवा प्रभु की सेवा है। उन्हें वोट बैंक न समझें।”  नोटबंदी से लेकर बेटी पढ़ाओ और जन-धन तक के फैसलों को जनता ने न सिर्फ सराहा है बल्कि पूरा समर्थन भी दिया है।”
उन्होंने कहा, “करंसी का अनकंट्रोल्ड एक्सपैन्शन (अनियंत्रित विस्तार) ही करप्शन की सबसे बड़ी वजह है। नोटबंदी से इस पर लगाम लगी है।”
 
लोकसभा चुनाव में जमकर चला था परिवारवाद
बीजेपी में 2014 लोकसभा चुनाव में जमकर परिवारवाद चला था। मेनका गांधी के बेटे वरुण गांधी को टिकट दिया था। दोनों सांसद हैं।
यशवंत सिन्हा के बेटे जयंत को भी टिकट मिला था। राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे सिंधिया भी बेटे दुष्यंत सिंह को लड़ाने में कामयाब रही थीं। हिमाचल के पूर्व सीएम प्रेमकुमार धूमल के बेटे अनुराग ठाकुर और प्रमोद महाजन के बाद उनकी बेटी पूनम पर भी बीजेपी ने दांव खेला था। छत्तीसगढ़ में तो पिछले चुनाव में राजनांद गांव सीट पर एक लाख से ज्यादा वोटों से जीतने वाले मधुसूदन यादव का टिकट सिर्फ इसलिए काट दिया गया क्योंकि वहां से रमन सिंह अपने बेटे अभिषेक को लड़ाना चाहते थे। इस सीट पर अभिषेक ने जीत दर्ज की थी। यह भी ध्यान देने वाली बात है कि लोकसभा में 40 से कम उम्र वाले दो तिहाई सांसद किसी न किसी नेता के रिश्तेदार हैं।
 
UP में 40% सीटों पर रिश्तेदारों के लिए मांगे जा रहे टिकट
उप्र में दो ही फैक्टर काम करते हैं। जातिवाद और परिवारवाद।
403 विधानसभा सीटों में से इस बार 40 फीसदी सीटें ऐसी हैं, जहां नेता अपने बेटे, पोते या पत्नी के लिए टिकट मांग रहे हैं।
बीजेपी, कांग्रेस, एसपी और बीएसपी सभी पार्टियों में यही हाल है। परिवार वालों के लिए सबसे ज्यादा टिकट की मांग बीजेपी में हो रही है।
पार्टी के केन्द्रीय मंत्री इन्डायरेक्टली अपने बेटों व फैमिली मेंबर्स के लिए टिकट की पैरवी करा रहें है।
मायावती के खिलाफ टिप्पणी के बाद पार्टी से बाहर किए गए दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाति सिंह भी टिकट की दावेदार हैं।
 
क्यों उठा है राजनीतिक चंदे में सुधार का मुद्दा-
1.पार्टी बनाकर उसे जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 के तहत रजिस्टर्ड कराया जाता है। एेसी करीब 1000 राजनीतिक पार्टियां रजिस्टर्ड हैं, जिन्होंने 2014 में लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा।
2.कालाधन पार्टी को टुकड़ों में दिया जाता है। ज्यादातर चंदा 20 हजार से कम की रकम में होता है। क्योंकि कानूनन 20 हजार रुपए से कम के चंदे का हिसाब पार्टी को किसी को नहीं देना होता।
3.बीस हजार रुपए से कम चंदा दिखाने के लिए कार्यकर्ताओं के नाम का इस्तेमाल होता है।
4.पार्टी के अकाउंट में जमा इस राशि पर टैक्स नहीं लगता है। जब चाहे निकाल भी सकते हैं।
 
बीजेपी को कितना मिलता है चंदा-
फाइनेंशियल ईयर 2015-16 में देश के 7 राजनीतिक दलों को मिलने वाले 20 हजार रुपए से ज्यादा के चंदे में भारी गिरावट रही है।
पार्टियों को सिर्फ 102.02 करोड़ रुपए का डोनेशन मिला है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट के मुताबिक, ये रकम 2014-15 के मुकाबले 528 करोड़ रुपए या 84% कम है।  बीजेपी को सबसे ज्यादा 76 करोड़ रुपए चंदा मिला है। यह कुल चंदे का करीब 75% है। हालांकि, बीजेपी का चंदा एक साल में 82% घटा है। कांग्रेस को सबसे ज्यादा 1.17 करोड़ रुपए कैश मिले हैं। यह उसे मिले कुल डोनेशन का 6% है। कॉरपोरेट डोनेशन हासिल करने में बीजेपी सबसे आगे है। उसे सबसे ज्यादा 67.99 करोड़ रुपए का डोनेशन मिला। यह उसके कुल चंदे का 88% है। जबकि कांग्रेस को 8.83 करोड़ रुपए मिले। मायावती की बीएसपी को 10 साल में 20 हजार से ज्यादा का एक भी डोनेशन नहीं मिला।