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उत्तराखंड दूर क्यों ? एथलेटिक स्पर्धा न होने से टूटा ओलंपिक का सपना

टोक्यो में शुरू हुए विश्व के सबसे बड़े खेल महाकुंभ में उत्तराखंड की मौजूदगी नाममात्र के लिए ही रहेगी। पिछले रियो ओलंपिक में उत्तराखंड के तीन- तीन एथलीट भाग ले रहे थे। लेकिन इस बार कोविड के कारण प्रतियोगिताओं का क्रम गड़बड़ाने से राज्य के एथलीट ओलंपिक क्वालीफाइ ही नहीं कर पाए। इस बार की उम्मीदें एक मात्र हॉकी खिलाड़ी वंदना कटारिया और पैरा ओलंपियन मनोज सरकार से ही हैं। हालांकि वंदना राष्ट्रीय स्तर पर उत्तराखंड से नहीं खेलती हैं।रियो ओलंपिक में मनीष रावत, गुरुमीत सिंह और नितेंद्र सिंह रावत के रूप में उत्तराखंड से तीन – तीन एथलीट भाग ले रहे थे।

जबकि वंदना कटारिया महिला हॉकी टीम से खेल रही थीं। इसमें से गुरुमीत अब कोच की भूमिका में आ चुके हैं। जबकि मनीष और नितेंद्र सिंह 2016 से ही टोक्यो की तैयारी में जुट गए थे। लेकिन कोविड के कारण देश में राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताएं आयोजित नहीं हो पाई, साथ ही विदेश दौरे भी संभव नहीं हो पाए। मनीष के मुताबिक उन्हें क्वालिफाइंग मुकाबले के लिए मार्च 2020 में जापान जाना था लेकिन तब कोविड के कारण प्रतियोगिता स्थगित हो गई। 

सुविधाओं का अभावलंदन और रियो ओलंपिक में भाग लेने वाले बाजपुर निवासी एथलीट गुरमीत सिंह, इस बार बतौर कोच अपने दो खिलाड़ियों के साथ टोक्यो ओलंपिक में भाग ले रहे हैं। गुरुमीत सिंह के मुताबिक उत्तराखंड के पहाड़ों में एथलेटिक ट्रैनिंग के लिए बहुत अच्छा वातावरण है। लेकिन वहां सुविधाओं का अभाव है। गुरुमीत कहते हैं कि सुविधाएं मिलनी चाहिए।

देर से शुरुआत 
बिजिंग ओलपिंक की दस हजार मीटर वॉक में भाग लेने वाले नेशनल रिकॉर्डधारी सुरेंद्र सिंह भंडारी के मुताबिक गढ़वाल रायफल में भर्ती होने के बाद उन्हें बतौर एथलीट करिअर की जानकारी मिली। इसके बाद 25 साल की उम्र में वो पहली बार किसी प्रतियोगिता में शामिल हो पाए। जबकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस उम्र तक खिलाड़ी अपना सर्वश्रेष्ठ दे रहे होते हैं। 
भंडारी मूलरूप से गैरसैंण के रहने वाले हैं।

स्टेडियम, साई सेंटर नहीं 
रियो ओलंपिक के प्रतिभागी गरुड़ बागेश्वर निवासी नितेंद्र सिंह रावत के मुताबिक कुमांऊरेजीमेंट में शामिल होने के बाद ही सेना ने उनका टैलेंट निखारा। इस कारण सेना के सक्रिय सहयोग से ही वो ओलंपिक तक का सफर तय कर पाए। नितेंद्र बताते हैं कि उत्तराखंड के पहाड़ों में एथलेटिक्स के लिए वातावरण तो अनुकूल है, लेकिन पहाड़ में स्टेडियम, साई सेंटर नहीं है। इस कारण बच्चे खेल को अपना करिअर ही नहीं बना पाते हैं।

बचपन से मिले प्रशिक्षण
रियो ओलंपिक की लॉग डिस्टेंस वॉक में 13वां स्थान हासिल करने वाले चमोली निवासी मनीष रावत के मुताबिक पहाड़ के युवा स्कूल आने जाने में ही रोजाना कई किमी की दूरी तय करते हैं, इस कारण एथलेटिक्स में उत्तराखंड के युवा अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं। लेकिन इसके लिए स्कूल स्तर पर खेल प्रतिभाओं को पहचान कर निखारना होगा।

खेल कोटे पर रोक
ज्यादातर खिलाड़ी ओर कोच उत्तराखंड में खेल कोटे से सरकारी नौकरी पर लगी रोक को खेल प्रतिभा निखारने के लिए सबसे बड़ी बाधा करार देते हैं। खिलाड़ियों के मुताबिक अच्छे खिलाड़ियों को दूसरे राज्य या केंद्र सरकार के विभाग अपने यहां खींच लेते हैं। बाद में अच्छे खिलाड़ी ही अपने अनुभव के दम पर अच्छे कोच बनते हैं। उत्तराखंड को इस मामले में दोहरा नुकसान उठाना पड़ रहा है।