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ये है 02 अगस्त से छात्रों को स्कूल बुलानें की तैयारी! सरकारी स्कूलों में सफाई-सेनेटाइजेशन तक का इंतजाम नहीं

उत्तराखंड में दो अगस्त से नौवीं से स्कूल खोले जाने की तैयारी है। लेकिन, सरकारी स्कूलों में बच्चों को कोरोना से बचाने के कोई इंतजाम नहीं हैं। डीएम कार्यालय में सरकारी-अशासकीय स्कूलों की प्रिंसिपल एसोसिएशन के अध्यक्षों ने पोल खोली। उनके अनुसार, सरकारी स्कूलों में एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी तक नहीं है। सफाई-सेनेटाइजेशन के लिए कोई बजट भी नहीं है। अभिभावक आरिफ खान ने सरकारी स्कूलों की दुर्दशा पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि महीनों से स्कूलों में सफाई नहीं हुई, झाड़ियां उग आई हैं। कोरोना कैसे रुकेगा ?

इस पर सरकारी स्कूलों की प्रिंसिपल एसोसिएशन अध्यक्ष सुरेंद्र बिष्ट भावुक हो गए और अफसरों से मुखातिब होकर बोले, साहब राज्य में 1235 सरकारी इंटर और 936 हाईस्कूल हैं। लेकिन, सफाई कर्मचारी नहीं हैं, कोरोनाकाल में शिक्षकों ने पूरे मनोयोग से काम किया। दवाई बांटी, जागरूक किया और ड्यूटी की। एक सफाई कर्मचारी तक स्कूल में नहीं हैं, पद समाप्त कर दिए गए हैं। न ही कोई बजट दिया जाता है। शिक्षक कक्षाओं में मेज-कुर्सियां साफ कर सकते हैं, शौचालय एवं झाड़ियां कैसे साफ करेंगे। इसके लिए सरकार को व्यवस्था करनी होगी। कोरोना रोकथाम के लिए यह बेहद जरूरी है। नगर निकाय या ग्राम पंचायत स्तर पर स्वच्छता-सेनेटाइजेशन की व्यवस्था की जाए। 

अशासकीय स्कूलों की बदतर स्थिति : अशासकीय स्कूलों की प्रधानाचार्य परिषद के अध्यक्ष प्रकाश सुयाल ने भी स्कूलों की बदहाली का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि राज्य में पांच सौ से अधिक स्कूल हैं। मैनेजमेंट बॉडी के पास संसाधनों का अभाव है। समाज से मिलने वाला सहयोग कोरोनाकाल में बिल्कुल खत्म हो गया है। जूनियर-माध्यमिक स्कूलों में सरकार से रखरखाव के लिए कोई मदद नहीं मिलती। सफाई की सबसे बड़ी समस्या है। 
बिजली-पानी, डस्टर चॉक और रंगाई-पुताई तक का खर्चा शिक्षक जेब से उठा रहे हैं। अधिकांश मैनेजिंग कमेटियां भी कुछ कर पाने में सक्षम नहीं हैं। सरकार से अनुरोध है कि स्वच्छता-सेनेटाइजेशन की व्यवस्था कराई जाए। 

डीएम बोले, समिति बनाकर समस्या हल करें
डीएम डॉ. आर. राजेश कुमार सरकारी स्कूलों में इस तरह की स्थिति को लेकर अचरज में पड़ गए और गंभीर नजर आए। उन्होंने मुख्य शिक्षा अधिकारी डॉ. मुकुल कुमार सती को कहा कि इस मामले को गंभीरता से लीजिए। बच्चों और शिक्षकों की सुरक्षा का सवाल है। जल्द समिति का गठन कीजिए और देखिए किस स्तर पर सफाई एवं रखरखाव की व्यवस्था की जा सकती है। इसके लिए उच्चाधिकारियों एवं विभागों के अफसरों से वार्ता की जाए। 

मीटिंग में नियम नहीं चले तो स्कूल में कैसे चलेंगे
उत्तराखंड अभिभावक संघ के मंत्री मनमोहन जायसवाल ने डीएम से मुखातिब होकर कहा कि हम यहां मीटिंग में सोशल डिस्टेंस एवं बाकी नियम फॉलो नहीं कर पा रहे हैं। स्कूल में बच्चे और शिक्षक कैसे नियमों का पालन कर पाएंगे। स्कूलों को यदि आर्थिक नुकसान की समस्या है तो हमें ही पता है कि हम कैसे बच्चों को ऑनलाइन पढ़ा पा रहे हैं। अभिभावक एकता समिति सचिव परवीन सैनी ने कहा कि स्कूलों ने जब फीस बढ़ा दी, तब कोई नियम नहीं माना। सरकारी कार्यालयों में किसी ने नहीं सुना। टोक्यो ओलंपिक और क्रिकेट में लोग संक्रमित हो रहे हैं। जबकि, वहां तो कड़े नियम बने हैं। उत्तराखंड में कोई बच्चा संक्रमित हो तो स्कूल जिम्मेदार होगा। समिति अध्यक्ष लव चौधरी ने भी स्कूलों की मनमानी पर नाराजगी जताई।

स्कूल या अभिभावक जिम्मेदारी से नहीं बच सकते: डीएम
डीएम डॉ. आर. राजेश कुमार ने स्कूलों द्वारा एसओपी के बिना परिजनों से कंसर्न फॉर्म भरवाने पर नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि आप अपनी जिम्मेदारी से बच रहे हैं। बच्चों की सुरक्षा परिजनों और स्कूल संचालकों दोनों की जिम्मेदारी है। शासन की ओर से जारी होने वाली एसओपी सख्ती से लागू की जाएगी। इस बैठक की रिपोर्ट शासन को भेजी जाएगी। दूसरी ओर, सीडीओ नितिका खंडेलवाल ने कहा कि डेढ़ साल से बच्चों की पढ़ाई प्रभावित 
हुई है। एसओपी आने पर इसका पालन करवाएंगे।

स्कूल बच्चों के हितैषी तो सुरक्षा की जिम्मेदारी लें 
नेशनल एसोसिएशन फॉर पेरेंट्स एंड स्टूडेंट्स राइट्स के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरिफ खान ने कहा कि पिछले साल स्कूल खोले गए थे तो कई बच्चे संक्रमित हुए थे। दूसरे राज्य में बच्चे संक्रमित हो रहे हैं। कोई अभिभावक बच्चों को स्कूल भेजने को तैयार नहीं है। स्कूल यदि बच्चों की शिक्षा की परवाह करते हैं तो वह अभिभावकों से कंसर्न फॉर्म क्यों ले रहे हैं। आरिफ बोले, स्कूलों में गाइडलाइन का पालन नहीं हो सकेगा और संक्रमण का खतरा रहेगा। सरकारी स्कूलों में महीनों से सफाई नहीं हुई है। स्कूलवालों को केवल फीस की फिक्र है, न कि बच्चों की। ऑल इंडिया पेरेंट्स एसोसिएशन की उत्तराखंड अध्यक्ष भूमिका यादव ने कहा कि स्कूल संचालक अपना निजी एजेंडा ना रखें। पांच घंटे एक जगह रहने में बहुत दिक्कत है। जबकि, तीसरी लहर की बात कही जा रही है। स्कूलों में डिस्टेंस का पालन नहीं हो सकता। स्कूलों द्वारा फॉर्म साइन कराकर गैरजिम्मेदाराना रवैया भी अपनाया जा रहा है।

दूसरी लहर में बहुत आंसू बहाए, हमें बच्चों की जान प्यारी 

उत्तराखंड में दो अगस्त से स्कूल खोलने की तैयारियों के बीच देहरादून में डीएम डॉ. आर. राजेश कुमार ने प्राइवेट और सरकारी स्कूलों, अभिभावक संघों और अभिभावकों की संयुक्त बैठक ली। इस दौरान अभिभावक सरकार के फैसले से नाराज दिखे। जबकि, स्कूल संचालकों ने स्कूल खोलने की पैरवी की। डीएम कार्यालय स्थित ऋषिपर्णा सभागार में शनिवार को हुई बैठक में कई बार बच्चों की सुरक्षा और फीस को लेकर स्कूल संचालकों एवं अभिभावकों में नोकझोंक हुई। स्कूलवालों ने एक अभिभावक संघ पदाधिकारी से उनके बच्चों के बारे में पूछ लिया तो उस पर तीखी बहस हो गई। कई सवालों पर स्कूल संचालक जवाब नहीं दे सके। इस पर डीएम और सीडीओ से मामला शांत कराया। अभिभावकों में सबसे ज्यादा गुस्सा बच्चों की सुरक्षा को लेकर स्कूलों की ओर से कंसर्न फॉर्म भरवाए जाने को लेकर था। कई अभिभावक अपनी बात रखते हुए भावुक भी हो गए। मोथरोवाला से आईं पूजा बडोनी ने कहा कि कोरोना की दूसरी लहर में हर घर में आंसू बहे। अस्पतालों में बेड तक नहीं मिल पाए। बच्चों को अभी वैक्सीन नहीं लगी है। ऐसे में बच्चों की सुरक्षा खतरे में है। पढ़ाई तो एक साल बाद भी हो जाएगी, मगर बच्चों की जान ज्यादा प्यारी है। इसीलिए, जब तक बच्चों को वैक्सीन न लग जाए। तब तक स्कूल न खोले जाएं।  मसूरी से आए प्रभजोत सिंह ने कहा कि बच्चों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। मसूरी में जब स्कूल खुले तो वहां कई बच्चे संक्रमित पाए गए। स्कूल संचालकों ने उन्हें वापस भेजा। डीएम ने जब स्कूल खोलने के पक्ष में हाथ खड़े कराए तो महज सात लोगों ने हाथ खड़े किए।