सरकारी बीमा कंपनियों को कारोबार बढ़ाने और संसाधन जुटाने को आसान बनाने के मसकद से सरकार की तरफ से पेश किया गया साधारण बीमा कारोबार (राष्ट्रीयकरण) संशोधन विधेयक 2021 सोमवार को लोकसभा से पारित हो गया। हालांकि, विपक्षी पार्टियां और कर्माचारी यूनियन इस फैसले का विरोध कर रहे हैं। आइए जानते हैं कि इस फैसले का विरोध क्यों किया जा रहा है और इस कदम से आम बीमाधारकों को क्या लाभ होगा?
आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ योगेंद्र कपूर ने हिंदुस्तान को बताया कि सरकार की तरफ से ये बेहद सकारात्मक दिशा में उठाया गया कदम है। इससे न सिर्फ कंपनियों में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी बल्कि आम ग्राहकों को भी ज्यादा सहूलियत वाले बीमा उत्पाद मिलने संभव हो सकेंगे। कंपनियों में नई तकनीक और बेहतर प्रबंधन से ग्राहकों के क्लेम सेटेलमेंट में भी सहूलियत बढ़ेगी। साथ ही कंपनियों के लिए आईपीओ और एफपीओ लाने का भी रास्ता साफ हो जाएगा जिससे इन कंपनियों के पास बाजार से रकम जुटाने का मौका होगा। वहीं इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर एफडीआई का भी फायदा होगा।
विधेयक का विरोध क्यों?
कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने विधेयक को जनविरोधी और राष्ट्रविरोधी करार देते हुए कहा कि सरकार सदियों पुरानी विरासत को बेच रही है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अधीर रंजन के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि वह बेबुनियाद आरोप लगा रहे हैं। सरकार इस विधेयक के माध्यम से किसी का हक नहीं छीन रही है। असत्य बोलकर जनता को गुमराह किया जा रहा है।
निजी हिस्सेदारी बढ़ाने का रास्ता साफ
देश में साधारण बीमा कारोबार (राष्ट्रीयकरण) संशोधन विधेयक, 2021 के बाद सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियों में निजी हिस्सेदारी बढ़ाने का रास्ता साफ हो जाएगा। ये उन सभी कंपनियों में हो सकेगा जहां सरकारअपनी हिस्सेदारी घटाकर 51 प्रतिशत से नीचे करना चाहती है। साथ ही कंपनी के प्रबंधन का नियंत्रण संभावित खरीदार को सौंपना चाहती है।
51% से ज्यादा हिस्सेदारी की बाध्यता खत्म
इस बदलाव के बाद के बाद, पहले से लागू 1972 के अधिनियम की वो धारा खत्म हो जाएगी जिसमें सरकारी क्षेत्र से जुड़ी साधारण बीमा कारोबार कंपनियों में 51 फीसदी से ज्यादा हिस्सा रखना जरूरी होता है। ऐसा होने पर प्रबंधन पर नियंत्रण भी सरकार ही रहता था। इस विधेयक के बाद नेशनल इंश्योरेंस कंपनी, न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी, ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी और यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी में हिस्सा बेचना आसान हो जाएगा। 1972 के अधिनियम के तहत जनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन की यानि जीआईसी स्थापना हुई थी और नेशनल इंश्योरेंस कंपनी, न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी, ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी और यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी का उसमें पुनर्गठन हुआ था। 2002 में इसमें फिर संशोधन हुआ ताकि जीआईसी की इन चारों कंपनियों का नियंत्रण केंद्र सरकार को दिया जा सके।
सरकार का फैसले के पक्ष में तर्क
वित्तमंत्री का कहना है कि इन बीमा कंपनियों के तेजी से विकास के लिए संसाधन जरूरी हैं और निजी क्षेत्र से इन्हें धन और तकनीक दोनों मिल सकती हैं। इस विधेयक के माध्यम से साधारण बीमा कारोबार राष्ट्रीयकरण अधिनियम में संशोधन किया जा रहा है। विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियों में अधिक निजी भागीदारी का उपबंध करने, बीमा पहुंच में वृद्धि करने, सामाजिक संरक्षण एवं पालिसीधारकों के हितों को बेहतर रूप से सुरक्षित करने तथा अर्थव्यवस्था की तीव्र वृद्धि में अंशदान करने के लिए अधिनियम के कुछ उपबंधों का संशोधन करना आवश्यक हो गया था। सरकार निजीकरण के लिए बीमा कंपनी के चयन की कवायद में लगी है, जिसकी घोषणा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में की थी।