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कितना बड़ा है तालिबान का आर्थिक साम्राज्य, कहां से होती है कमाई? जानें सबकुछ

करीब दो दशक बाद एक बार फिर अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान का कब्जा हो गया है। हालांकि दुनिया के अधिकतर देशों ने तालिबान की सरकार को मान्यता देने से इनकार कर दिया है। जिसका असर अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था पर आने वाले समय में दिखाई देगा। अमेरिका के अलावा आईएमएफ ने भी अफगानिस्तान को दिए जाने वाले फंड पर रोक लगा दी है। देश के सेंट्रल बैंक के गवर्नर ने पहले ही कह दिया है कि देश में विदेशी मुद्रा भंडार शून्य है। लेकिन क्या इससे तालिबान की सरकार पर कुछ असर पड़ेगा? अगर अमेरिका जैसे देश मदद नहीं करेंगे तो तालिबान, अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था कैसे संचालित करेगा? आइए जानते हैं कि कहां से होती तालिबान की कमाई, कौन कर है इनकी मदद?

विश्व का पांचवा सबसे अमीर संगठन है तालिबान 

साल 2016 में फोर्ब्स पत्रिका में विश्व के सबसे अमीर आतंकी संगठनों में तालिबान को पांचवा स्थान मिला था। तब इस रैंकिंग में टाॅप पर आएसआईएस (ISIS) था। जिसका सालाना टर्नओवर उस वक्त 2 बिलियन डाॅलर था। वहीं, तब तालिबान की सालाना कमाई 400 मिलियन डाॅलर थी। 

रेडियो फ्री यूरोप/रेडियो लिबर्टी द्वारा एक्सेस की गई नाटो की रिपोर्ट के अनुसार 2019-20 में तालिबान का वार्षिक बजट 1.6 बिलियन अमेरिकी डाॅलर था। नाटो की इस रिपोर्ट में कहा गया था कि तालिबान के प्रमुखों की कोशिश है कि संगठन पूरी तरह से आत्म निर्भर बने। 

कहां से होती है कमाई 

नाटो की रिपोर्ट के अनुसार तालिबान की कमाई का मुख्य जरिया अफीम की खेती, ड्रग्स सप्लाई, किडनैपिंग, खनन के अलावा कुछ देश और संगठन इन्हें आर्थिक मदद करते आ रहे हैं। जून 2021 के यूएन रिपोर्ट के मुताबिक आतंकी संगठन तालिबान को दुनिया भर के कई अमीर व्यक्ति और संस्थाएं पहले से ही मदद करती आ रही हैं। अब जब तालिबान का पूरे देश पर कब्जा हो गया है ऐसी स्थिति में नागरिकों से टैक्स और सीमा-शुल्क के जरिए भी यह संगठन कमाई कर सकेगा। 

नाटो की रिपोर्ट के अनुसार 2019-20 तक इन क्षेत्रों से तालिबान करता रहा है कमाई 

  • खनन से 400 मिलियन डाॅलर 
  • ड्रग्स से 416 मिलियन डाॅलर 
  • विदेशी सहायता के जरिए 240 मिलियन डाॅलर 
  • जबरन वसूले जाने वाला टैक्स 160 मिलियन डाॅलर 
  • रियल एस्टेट 80 मिलियन डाॅलर 

इन देशों का रुख है दोस्ताना 

जहां दुनिया के कई देश तालिबान मान्यता देने से इनकार कर रहे हैं। वहीं, पाकिस्तान, चीन, तुर्कमेनिस्तान का आतंकी संगठन तालिबान के प्रति नरम रुख है। तालिबान के लड़ाकों को ट्रेनिंग देने वाला पाकिस्तान की आर्थिक हालात बहुत अच्छी नहीं है, ऐसे में इमरान सरकार तालिबान बड़ी मदद शायद ही कर पाए। लेकिन अमेरिका के अफगानिस्तान से हटने का बाद चीन वहां अपने अवसर तलाशने लगा है। ऐसे में आने वाले दिनों चीन परियोजनाओं के नाम पर तालिबान की आर्थिक मदद कर सकता है।