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अध्ययन में खुलासा: खतरनाक काला अजार रोग फैला रही हिमाचल की सैंड फ्लाई

हिमाचल प्रदेश की सैंड फ्लाई खतरनाक काला अजार रोग फैला रही है। यह बात भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अध्ययन से सामने आई है। शिमला जिले के रामपुर, कुल्लू के निरमंड और किन्नौर के निचार से एकत्र किए गए नमूनों से यह खुलासा हुआ है। इन क्षेत्रों में मौजूद रेत मक्खियों में 7.69 फीसदी पॉजिटिव पाई गई हैं।

आईसीएमआर के भारतीय मलेरिया अनुसंधान संस्थान के विशेषज्ञों सुमन लता, गौरव कुमार, वीपी ओझा और रमेश सी धीमान ने इस रेत मक्खी से निपटने की रणनीतिक योजना बनाने की भी सलाह दी है। विशेषज्ञों ने इस अध्ययन के लिए काला अजार से पूर्व में प्रभावित रहे क्षेत्रों के विभिन्न गांवों से साल 2017 से 2019 तक अप्रैल और सितंबर के दौरान रेत मक्खियों को एकत्र किया।

इन रेत मक्खियों की पहचान फ्लेबोटोमस, लांगिडक्टस और फ्लेबोटोमस मेजर के रूप में की गई। इनमें लांगिडक्टस का घनत्व सर्वाधिक पाया गया। जिन गांवों से मक्खियों के ये नमूने इकट्ठा किए गए, उनकी समुद्र तल से ऊंचाई 947 से 2,130 मीटर है। हालांकि ये भूमिगत जल की उपस्थिति से दूर थीं।

सैंड फ्लाई के काटने से होता है काला अजार रोग 
काला अजार को काला ज्वर भी कहते हैं। यह सैंड फ्लाई के काटने से होता है। यह धीरे-धीरे पनपने वाला स्थानिक रोग है। यह जीशमेनिया जींस के प्रोटोजोआ परजीवी के कारण होता है। इन क्षेत्रों में यह लीशमैनिया डोनोवनी परजीवी के कारण होता है।

रोग के परजीवी आंतरिक अंगों जैसे यकृत, प्लीहा, अस्थि मज्जा आदि में प्रवास करते हैं। उसके बाद यह बुखार शुरू होता है। इलाज न होने पर मरीज की मौत भी हो जाती है। इससे बुखार, वजन में कमी, एनीमिया, यकृत, प्लीहा आदि में सूजन होती है।

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