इसमें 75 फीसदी निर्यातक भदोही, मिर्जापुर तथा वाराणसी के हैं, इससे न सिर्फ निर्यातकों का स्टॉल सहित आवागमन का किराया बचेगा, बल्कि आर्डर भी बेहतर मिलेंगे, रोजगार का बड़ा साधन है कालीन बिनकारी, बुनकरों के हाडतोड़ मेहनत व हुनर के बूते ही कारपेट इंडस्ट्री का पूरी दुनिया में डंका बज रहा है
-सुरेश गांधी
वाराणसी : कालीन उद्योग को ऊंचाईयों पर ले जाने के लिए सतत् प्रयत्नशील एवं 1994 से 2021 तक लगातार आठवीं बार सीइपीसी के प्रशासनिक सदस्य रह चुके उमेश कुमार गुप्ता मुन्ना ने एक बार फिर कारपेट इंडस्ट्री के निर्यातकों एवं बुनकरों के हित के लिए संघर्षशील प्रयास शुरु कर कर दिया है। दिल्ली में आयोजित होने वाले 44वें इंडिया कारपेट एक्स्पों की पूर्व संध्या पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित कपड़ा मंत्रालय को भेजे पत्र में मुन्ना ने मांग की है कि सीइपीसी के तत्वावधान में आयोजित होने वाले इंडिया कारपेट एक्स्पों के दोनों फेयर भदोही मार्ट में ही आयोजित हो। इसके पीछे मुन्ना ने तर्क दिया है कि दिल्ली के बजाय भदोही मार्ट में फेयर लगाने से न सिर्फ निर्यातकों का स्टॉल किराया बल्कि आवागमन में होने वाले खर्च की भी बचत होगी। खास बात यह है कि दोनों आयोजन भदोही में होने का सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि आयातकों को भी कालीनों की भंडार देखने का अवसर मिलेगा।
उनका कहना है कि जो आयातक दिल्ली आते है, उनमें से अधिकांश को कालीनों की वेराइटी के लिए भदोही मिर्जापुर आना ही पड़ता है। मुन्ना का कहना है कि अकेले कालीन बेल्ट भदोही, मिर्जापुर, वाराणसी सहित पूर्वांचल में न सिर्फ 75 फीसदी निर्यातक है, बल्कि तकरीबन 20 लाख से अधिक बुनकरों व इससे जुड़े लोगों को रोजगार भी मुहैया कराता है कालीन उद्योग। मुन्ना का कहना है कि दोनों फेयर भदोही में होने से दो सौ करोड़ से भी अधिक लगात से बनी भदोही मार्ट की उपयोगिता भी कारगर साबित होगी। मुन्ना ने कहा कि हाल के दिनों में जिस तरह केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय द्वारा बुनकरों की दिनहीन दिशा व दशा सुधारने के लिए कल्याणकरी योजनाएं चला रखी है, उससे साफ झलकता है कि वह बुनकरों के उत्थान के लिए संकल्पित है। सरकार चाहती है कि जो बुनकर अपनी हाड़तोड़ मेहनत के बूते सात समुन्दर पार भारतीय हस्तकला का जलवा बिखेर रहा है उसकी दैनिक जीवन चर्या भी बदले। बुनकरों के बच्चे भी पढ़ लिखकर समाज की मुख्यधारा से जुड़े।
उमेश गुप्ता ने कहा कि बुनकर भारतीय ‘हस्तकला‘ की शान है, से इंकार नहीं किया जा सकता। लेकिन यह भी सच है कि बुनकर के इस हाड़तोड़ मेहनत का ईनाम उसे नहीं मिल पाता। उसके हिस्से में सिर्फ और सिर्फ मुफलिसी ही हाथ लगती है। मेहनत का वाजिब दाम न मिल पाना एक बड़ा संकट तो है ही, उसके परिवार की भी दिनहीन दशा में सुधार नहीं हो पाया है। इसके लिए कोई और नहीं बल्कि सरकारें ही जिम्मेदार है। इन्हीं संकटों से बुनकरों को उबारने की मंसूबा पाले केन्द्रीय कपड़ा मंत्रालय न सिर्फ कई योजनाएं चला रखी है, बल्कि उनके लिए रोजगार के साधन भी मुहैया करा रही है। कालीन निर्यात संवर्धन परिषद के तत्वाधान में ओखला मैदान, नयी दिल्ली में कई सालों से आयोजित चार दिवसीय ‘इंडिया कारपेट एक्सपो सफलता की कदम चूम रही है। बलबूटेदार रंग बिरंगी आकर्षक डिजाइन वाली कालीनों को धमक सात समुंदर पार भी है।