अंतर्राष्ट्रीय नर्सेस डे(12 मई) पर विशेष
लखनऊ : अवंतीबाई जिला महिला अस्पताल में स्टेबिलाइज्ड न्यू बोर्न केयर यूनिट(एसएनसीयू) स्थापित है जहां पर जन्मजात बीमार बच्चों को भर्ती किया जाता है| इन बच्चों को उनकी माताओं से प्यार तो बाद में मिलता है पहले तो यहाँ तैनात नर्सेस ही उनकी मायें होती हैं जो उनके स्वास्थ्य की देखभाल तो करती ही हैं उन्हें दुलारती और पुचकारती भी हैं| एसएनसीयू में तैनात नर्सिंग ऑफिसर किरन लता सोनकर बताती हैं कि एसएनसीयू में ऐसे नवजात भर्ती होते हैं जिनका समय से पहले जन्म हुआ हो, कम वजन के बच्चे, बर्थ एक्सफीजिया(नवजात द्वारा सांस न ले पाना) व अन्य बीमारियों से पीड़ित बच्चे| हमें अलर्ट मोड में यहाँ हर वक्त रहना होता है| कभी-कभी तो ऐसा होता है कि माँ इस स्थिति में नहीं होती है कि वह बच्चे के पास आ पाए ऐसे में हम ही उसकी माँ बनते हैं| नवजात को यहाँ पर तब तक रखा जाता है जब तक बच्चा स्वस्थ न हो जाए या जब बच्चा ठीक न हो जाए| इसके साथ ही ऐसे बच्चे जिनका वजन 1800 ग्राम से कम होता है हम माओं और परिवार के अन्य सदस्यों को कंगारू मदर केयर(केएमसी) का प्रशिक्षण देते हैं और उसके लाभ बताते हैं| केएमसी वार्ड एसएनसीयू से लगा हुआ है|
स्टाफ नर्स आभा बताती हैं कि बहुत से बच्चे ऐसे होते हैं जो मां का दूध पीने में असक्षम होते हैं ऐसे में उन्हे, स्पून फीडिंग, ट्यूब फीडिंग, हमें ही करानी पड़ती हैं| नवजात को दूध पिलाने में काफी सावधानी बरतनी होती हैं| जरा सी लापरवाही भारी पड़ सकती है| नवजात के माता-पिता, परिवार वालों का हम पर पूरा भरोसा होता है| नवजात कभी-कभी यहाँ पर दो-दो माह तक भर्ती रहते हैं| इतने लंबे समय तक रहने के कारण एक भावनात्मक जुड़ाव हो जाता है| नवजात के जाने के समय हम लोग दुखी तो होते हैं लेकिन इस बात की खुशी भी होती है कि वह स्वस्थ होकर जा रहा है| हमारे लिए परिवार बाद में हैं|
नर्सिंग ऑफिसर किरन एक ऐसे ही केस का जिक्र करती हैं कि पिछले माह बाल गृह से दुधमुँहा बच्चा एसएनसीयू में इलाज के लिए आया था वह यहाँ लगभग 15 दिन रहा| हम सभी नर्सों ने उसकी बड़े प्यार से देखभाल की| स्वस्थ होकर जब वह यहाँ से गया तो हम सब बहुत दुखी थे| हम सबने जाते समय नवजात को कपड़े, फीडिंग का समान वगैरह दिया| कभी-कभी बहुत ग़रीब घर के नवजात आते हैं जिनकी माँ के पास पहनने के ढंग के कपड़े भी नहीं होते हैं| हम लोग कपड़े वगैरह भी देते हैं|
एसएनसीयू में पूरे प्रदेश से लोग एक आशा और विश्वास के साथ अपने बच्चों को लेकर आते हैं कि यहाँ बच्चा स्वस्थ हो ही जाएगा| हम उनकी आशा और विश्वास पर खरे उतरने के लिए जी जान से कोशिश करते हैं| जब बच्चे ठीक होकर यहाँ से जाते हैं तो मन को काफी शांति मिलती है कि हमारे प्रयासों ने एक बच्चे की जान बचा ली है| जब बच्चे फॉलो अप में आते हैं तो उनके परिवार के सदस्यों द्वारा उनके द्वारा जो प्रतिक्रिया मिलती है उससे न केवल हमें खुशी मिलती है बल्कि हमें और बेहतर करने की प्रेरणा मिलती है| यह फॉलो अप एक साल तक चलता है|किरन और आभा का कहना है कि सेवा भाव ने उन्हें नर्स के तौर पर काम करने के लिए प्रोत्साहित किया| किरन बताती हैं कि यहाँ छह-छह घंटे की दो नर्सेस की दिन में ड्यूटी होती है और रात में 12 घंटे की ड्यूटी होती है|