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गुरुओं का गुरु मंत्र है शिष्यों का ब्रह्मकवच

(गुरु पूर्णिमा 3 जुलाई पर विशेष)

’यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान। शीश दिए जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।’ गुरु का स्थान सर्वोधा होता है। इस बार गुरु पूर्णिमा 3 जुलाई, सोमवार को है। गुरु पूर्णिमा के दिन इस बार कई शुभ योगों का निर्माण होने जा रहा है. इस दिन ब्रह्म योग और इंद्र योग बनेंगे. वहीं, सूर्य और बुध की युति से बुधादित्य योग का निर्माण भी होने जा रहा है. ब्रह्म योग 02 जुलाई को शाम 07 बजकर 26 मिनट से 03 जुलाई दोपहर 03 बजकर 45 मिनट तक रहेगा. इंद्र योग की शुरुआत 03 जुलाई को दोपहर 03 बजकर 45 मिनट पर शुरु होगा और इसका समापन 04 जुलाई को सुबह 11 बजकर 50 मिनट पर होगा. हिन्दू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है. मान्यता है कि 3000 ई. पूर्व गुरु पूर्णिमा के ही दिन महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था. यही वजह है कि इस दिन को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी मनाया जाता है. भगवान विष्णु जी के अंशावतार भगवान वेद व्यास जी का वास्तविक नाम कृष्ण द्वैपायन है

सुरेश गांधी

गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु के आशीर्वाद से धन संपत्ति, सुख शांति और वैभव का वरदान पाया जा सकता है. गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु का सत्कार करना चाहिए. इससे आपको धन, शिक्षा, सुख और शांति मिलेगी. गुरु हमें सदमार्ग पर चलना सिखाते हैं, इसलिए गुरु का स्थान भगवान से भी ऊंचा माना गया है। गुरु अपने शिष्यों को अंधकार से प्रकाश की ओर, असत्य से सत्य की ओर, मृत्यु से अमरता की ओर ले जाता है। गुरु ही हमारा सधा हितैषी होता है। अतः जीवन में गुरू का वरण अवश्य करना चाहिए। गुरू के बिना आत्मकल्याण संभव नहीं है। जीवन में गुरु का स्थान भगवान से भी बड़ा होता है। वेद व्यास महाभारत युग में पैदा हुए थे। उन्होंने ब्रहृमसूत्रों की रचना की थी। उन्होंने महाभारत सहित पुराण भी लिखे थे। गुरु पूर्णिमा पर्व हमारे राष्ट्र के प्राचीन गौरव, सभ्यता और इतिहास परंपरा का प्रतीक स्वरूप है। अज्ञानरूपी अंधकार को दूर कर ज्ञान रुपी प्रकाश से जीवन को सफलता के उजाले की ओर ले जाने का कार्य गुरु के आशीर्वाद से ही संभव होता है। गुरु शब्द ही अपने आप में ज्ञान रूपी प्रकाश का पर्याय है क्योंकि संस्कृत में ’गु’ का अर्थ होता है अंधकार (अज्ञान) एवं ’रु’ का अर्थ होता है प्रकाश (ज्ञान)। गुरु हमें अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाते हैं।

हिन्दू धर्म में गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्व बताया गया है. माना जाता है कि गुरु का स्थान सर्वश्रेष्ठ होता है. गुरु भगवान से भी ऊपर होता है. ऐसा इसलिए क्योंकि वो गुरु ही होता है जो व्यक्ति को अज्ञानता के अंधकार से उबारकर सही रास्ता दिखाता है. मान्यता है कि गुरु पूर्णिमा के ही दिन महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था. सनातन धर्म में महर्षि वेदव्यास को प्रथम गुरु का दर्जा प्राप्त है क्योंकि सबसे पहले मनुष्य जाति को वेदों की शिक्षा उन्होंने ही दी थी. इसके अलावा महर्षि वेदव्यास को श्रीमद्भागवत, महाभारत, ब्रह्मसूत्र, मीमांसा के अलावा 18 पुराणों का रचियाता माना जाता है. यही वजह है कि महर्षि वेदव्यास को आदि गुरु का दर्जा प्राप्त है. गुरु पूर्णिमा के दिन विशेष तौर पर महर्षि वेदव्यास की पूजा होती है. सर्वप्रथम एक ही वेद था। जब इन्होंने धर्म का ह््रास होते देखा तो इन्होंने वेदों का व्यास कर अर्थात उनका विभाग कर वेदों का ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद आदि नामों से नामकरण किया। इस प्रकार वेदों का व्यास करने से ये कृष्ण द्वैपायन से महर्षि वेद व्यास के नाम से प्रसिद्ध हुए। महर्षि वेद व्यास जी ने इसके अलावा वेदों के अर्थ को लोक व्यवहार में समझाने के लिए पंचम वेद के रूप में महाभारत ग्रन्थ के अलावा अठारह पुराणों के रूप में अद्वितीय वैदिक धर्म ग्रन्थों की रचना की। इस प्रकार समस्त वैदिक ज्ञान निधि को एक सूत्र में पिरोने वाले सूत्रधार महर्षि वेद व्यास जी की जयन्ती गुरु पूर्णिमा दिवस के रुप में मनाया जाता है।

भगवान विष्णु जी के अंशावतार भगवान वेद व्यास जी का वास्तविक नाम कृष्ण द्वैपायन है। द्वीप में जन्म लेने के कारण इनका नाम कृष्ण द्वैपायन रखा गया। इनके पिता ऋषि पराशर जी तथा माता सत्यवती थीं। भगवान वेद व्यास जी ने अपनी तपस्या एवं ब्रह्मचर्य की शक्ति से सनातन वेद का विस्तार करके इस लोकपावन पवित्र इतिहास का निर्माण किया है। जब इन्होंने मन ही मन ‘महाभारत’ की रचना कर ली तब उन्होंने विघ्नेश्वर गणेश जी से प्रार्थना की कि आप इसके लेखक बन जाइए, मैं बोलकर लिखाता जाऊंगा। तीन वर्षों के अथक परिश्रम से इन्होंने महाभारत ग्रन्थ की रचना की। देवर्षि नारद जी ने देवताओं को, असित और देवल ऋषि ने पितरों को इसका श्रवण कराया है। शुकदेव जी ने गन्धर्वों एवं यक्षों को तथा इस मनुष्य लोक में महर्षि वेद व्यास के शिष्य धर्मात्मा वैशम्पायन जी ने इसका प्रवचन किया है। महाभारत में ही भगवान श्री कृष्ण जी द्वारा अर्जुन को माध्यम बनाकर लोक कल्याण के लिए प्रदान किया गया श्री मद्भगवद्गीता जी का पावन उपदेश भी संकलित है।

व्यासाय विष्णुरूपाय व्यासरूपाय विष्णवे।
नमो वै ब्रह्मनिधये वासिष्ठाय नमो नमः।

अर्थात्- व्यास विष्णु के रूप हैं तथा विष्णु ही व्यास हैं ऐसे वसिष्ठ-मुनि के वंशज का मैं नमन करता हूँ।

नमोऽस्तु ते व्यास विशालबुद्धे फुल्लारविन्दायतपत्रनेत्रः।
येन त्वया भारततैलपूर्णः प्रज्ज्वालितो ज्ञानमयप्रदीपः।।

अर्थात्- जिन्होंने महाभारत रूपी ज्ञान के दीप को प्रज्ज्वलित किया ऐसे विशाल बुद्धि वाले महर्षि वेदव्यास जी को मेरा नमस्कार है।

जिसने गुरु को जाना, वो परमात्मा को पाया

जिस किसी ने गुरु की महत्ता को समझा, परखा व अनुशरण किया है उसे जरुर ईश्वर का साक्षात दर्शन कर लिया होगा। वैसे भी भारत में गुरु-शिष्य की महान परंपरा रही है। ऋषि संदीपन और शिष्य भगवान कृष्ण, विश्वामित्र और श्री राम, द्रोणाचार्य और अर्जुन के बारे में सब जानते हैं, लेकिन ऋषि धौम्य के शिष्यों आरुणि, उद्दालक और उपमन्यु को जो स्थान अपने गुरु की सेवा से मिला, वह सनातन धर्म में सर्वोत्कृष्ट है। सूफी इस्लाम में भी जिन महान गुरु-शिष्यों की परंपरा भारत में प्रसिद्ध रही है वे हैं : मोइनुद्दीन चिश्ती और उनके शिष्य कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी, काकी के शिष्य निजामुद्दीन औलिया, औलिया के शिष्य अमीर खुसरो। अमीर खुसरो की गुरु भक्ति के बारे में तो कहा जाता है कि वह अपने गुरु निजामुद्दीन औलिया के निधन से इतने व्यथित हो गए थे कि उनके साथ ही यह कहते हुए चल बसे कि ‘गोरी सोवै सेज पर, मुख पर डारे केस, चल खुसरो घर आपने, अब रैन भई चहुं देस।’ गुरु पूर्णिमा पर जिस किसी ने भी सच्चे मन से गुरु का दर्शन पूजन कर लिया उसे जरुर मिलेगी गुरु की कृपा। उसे मिल जायेगा धन-दौलत का आर्शीवाद। इस दिन माता-पिता की सेवा करने वालों से भी परमात्मा प्रसन्न होते हैं। हालांकि गुरु एवं माता पिता की सेवा गुरुपूर्णिमा ही नहीं हर रोज करनी चाहिए। लेकिन गुरु पूर्णिमा पर भक्तों की झोली भरते है गुरुजन। धर्म जीवन में तभी सुख दे सकता है, जब धर्म करने वाले में असहाय