मुस्लिम कंट्री संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की राजधानी अबूधाबी में पहले हिंदू मंदिर में दर्शन-पूजन शुरु हो गया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस भव्य मंदिर का उद्घाटन किया. यूं तो इस मंदिर की संरचना और डिजाइन लगभग वैसी ही है, जिस तरह दिल्ली और दुनिया के दूसरे अक्षरधाम मंदिर बनाए गए हैं. लेकिन मंदिर परिसर का डिज़ाइन तैयार करते समय ये ख्याल रखा गया है कि यहां आने वालों को यूएई और भारत की अलहदा सांस्कृतिक विरासत की झलक एक ही जगह पर दिखाई दे. मतलब साफ है सात समुंदर पार मुस्लिम कंट्री में अब सनातन की गूंज सुनाई देगी, जो हर भारतीय के लिए गर्व की बात है। अबू धाबी के ठीक बाहर लगभग 108 फीट विशाल मंदिर पहला पत्थर वाला हिंदू मंदिर है. 700 करोड़ की लागत से निर्मित यह मंदिर पश्चिम एशिया में सबसे बड़ा हिंदू मंदिर होने की कल्पना करते हुए, मंदिर का पैमाना और भव्यता इसे क्षेत्र के स्थापत्य और सांस्कृतिक इतिहास में एक मील का पत्थर के रूप में अलग करती है। मंदिर का निर्माण बीएपीएस स्वामीनारायण संस्था द्वारा किया गया है। संयुक्त अरब अमीरात (अबू धाबी) के सात अमीरातों का प्रतिनिधित्व करने वाले सात शिखर, ऊंटों की नक्काशी और राष्ट्रीय पक्षी बाज अबू धाबी में पत्थरों से बने पहले हिंदू मंदिर में मेजबान देश की झलक पेश करते हैं। मंदिर के लिए जमीन संयुक्त अरब अमीरात ने दान में दी है।
–सुरेश गांधी
संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में अबू धाबी में निर्मित वास्तुशिल्प मंदिर कोई अन्य इमारत या रेस कार क्षेत्र नहीं है और न ही यह ऐसा कुछ है जिसका निर्माण पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए गया है. यह वास्तव में बीएपीएस हिंदू मंदिर है, जिससे रेगिस्तानी देश में लाखों श्रद्धालु आकर्षित होंगे. यह इस क्षेत्र का पहला पत्थर से बना हिंदू मंदिर है और पश्चिम एशिया में सबसे बड़ा है। 27 एकड़ में जमीन पर 700 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित इस जटिल डिजाइन वाले मंदिर की खासियत यह है कि इसमें गुलाबी बलुआ पत्थर और संगमरमर के अग्रभाग के साथ सात शिखर है, जो देश के प्रत्येक अमीरात का प्रतिनिधित्व करते हैं. इन सात शिखरों पर भगवान राम, भगवान शिव, भगवान जगन्नाथ, भगवान कृष्ण, भगवान स्वामीनारायण, तिरूपति बालाजी और भगवान अयप्पा की मूर्तियां हैं।
इस हिंदू मंदिर निर्माण में एक सच्चा वास्तुशिल्प चमत्कार देखने को मिलता है. बता दें, मंदिर के लिए 40,000 घन मीटर संगमरमर, 1,80,000 घन मीटर स्टैंडस्टोन और 1.8 मिलियन से अधिक ईंटों से बनी है। यह मंदिर न सिर्फ विविध समुदायों के सांस्कृतिक एकीकरण का मार्ग प्रशस्त करेगा, बल्कि विशाल मंदिर परिसर 108 फीट की ऊंचाई पर खड़ा होगा. पश्चिम एशिया में सबसे बड़ा हिंदू मंदिर होने की कल्पना करते हुए, मंदिर का पैमाना और भव्यता इसे क्षेत्र के स्थापत्य और सांस्कृतिक इतिहास में एक मील का पत्थर के रूप में अलग करती है. मंदिर का डिजाइन वैदिक वास्तुकला और मूर्तियों से प्रेरणा लेता है. कई मूर्तियां और नक्काशी भारत के कारीगरों द्वारा बनाई गई हैं, जो इस वास्तुशिल्प उत्कृष्ट कृति के निर्माण में वैश्विक सहयोग को उजागर करता है.
साल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संयुक्त अरब अमीरात यात्रा के दौरान अबू धाबी ने दुबई-अबू धाबी राजमार्ग पर मंदिर परियोजना के लिए 17 एकड़ से अधिक भूमि आवंटित की गई थी. मंदिर की आधारशिला साल 2017 में पीएम मोदी ने रखी थी. मंदिर के निर्माण में 50,000 से अधिक लोगों ने ईंटें रखी हैं, इनमें भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर, अभिनेता संजय दत्त और अक्षय कुमार भी शामिल हैं. दिल्ली में प्रसिद्ध अक्षरधाम मंदिर और भारत के बाहर न्यू जर्सी में सबसे बड़े हिंदू मंदिर सहित दुनिया भर में 1,100 हिंदू मंदिरों के निर्माण की विरासत के साथ एक वैश्विक सांस्कृतिक राजदूत बना हुआ है. इस मंदिर के लिए भारत से गंगा और यमुना का पवित्र जल, राजस्थान का गुलाबी बलुआ पत्थर और लकड़ी के फर्नीचर का उपयोग किया गया है। खास यह है कि मंदिर के किनारे पर एक घाट बनाया गया है, जहां गंगा का पानी बहेगा, जो वाराणसी के घाट जैसा दिखेगा। जहां पर्यटक बैठकर ध्यान कर सकते हैं। जब पर्यटक इसके अंदर जाएंगे, तो उन्हें पानी की दो धाराएं दिखेंगी। ये धाराएं भारत की गंगा और यमुना को प्रदर्शित करेंगी। मंदिर के सामने वाले हिस्से पर बलुआ पत्थर की पृष्ठभूमि पर उत्कृष्ट संगमरमर की नक्काशी है। इसे राजस्थान और गुजरात के कुशल कारीगरों द्वारा 25,000 से अधिक पत्थर के टुकड़ों से तैयार किया गया है। मंदिर के लिए उत्तरी राजस्थान से बड़े पैमाने पर गुलाबी बलुआ पत्थर को अबु धाबी में भेजा गया था। करीब 700 कंटेनरों में दो लाख क्यूबिक फीट का पवित्र पत्थर अबु धाबी लाया गया।पत्थरों को जिस लकड़ी के ट्रंक में भेजा गया था, उसका इस्तेमाल मंदिर के लिए फर्नीचर बनाने के लिए किया गया है। मंदिर का निर्माण 2019 में शुरू हुआ था और मंदिर के लिए जमीन यूएई सरकार ने दी थी।
सात शिखर सात देवताओं को समर्पित
सात शिखर सात महत्वपूर्ण देवताओं को समर्पित हैं। ये शिखर संस्कृतियों और धर्मों के परस्पर संबंध को रेखांकित करते हैं। आम तौर पर, हमारे मंदिरों में या तो एक शिखर होता है या तीन या पांच शिखर होते हैं, लेकिन यहां सात शिखर सात अमीरात की एकता के प्रति हमारा आभार व्यक्त करते हैं। इन शिखरों का उद्देश्य बहुसांस्कृतिक परिदृश्य में एकता और सद्भाव को बढ़ावा देना है। कुल 108 फुट ऊंचा यह मंदिर क्षेत्र में विविध समुदायों के सांस्कृतिक एकीकरण का मार्ग प्रशस्त करेगा। मेजबान देश को समान प्रतिनिधित्व देने के लिए भारतीय पौराणिक कथाओं में हाथी, ऊंट और शेर जैसे महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले जानवरों के साथ-साथ राष्ट्रीय पक्षी बाज को भी मंदिर के डिजाइन में शामिल किया गया है।
मंदिर में शांति का गुंबद
दृढ़ता, प्रतिबद्धता और धीरज के प्रतीक ऊंट को संयुक्त अरब अमीरात के परिदृश्य से प्रेरणा लेते हुए मंदिर की नक्काशी में उकेरा गया है। मंदिर में दो घुमट (गुंबद), 12 समरन (गुंबद जैसी संरचनाएं) और 402 स्तंभ शामिल हैं। ’शांति का गुंबद’ और ’सौहार्द्र का गुंबद’ उन दो घुमट में शामिल हैं, जो मंदिर की सुंदरता को और भी ज्यादा निखार रहे हैं। मंदिर में रामायण और महाभारत सहित भारत की 15 कहानियों के अलावा माया, एजटेक, मिस्र, अरबी, यूरोपीय, चीनी और अफ्रीकी सभ्यताओं की कहानियों को भी दर्शाया गया है। मंदिर में शांति का गुंबद और सौहार्द का गुंबद भी बनाया गया है।
राम मंदिर जैसा ही है संरचना
आबू धाबी में बना यह हिन्दू मंदिर दिखने में जितना खूबसूरत और भव्य है उतना ही यह लोगों को अपनी और आकर्षित कर रहा है। खास बात यह है कि मंदिर अयोध्या में बने राम मंदिर से भी जुड़ा है। दरसअल अबू धाबी में बना पहला हिन्दू मंदिर उसी जयपुर के पिंक सैंड स्टोन (लाल बलुआ पत्थर) से बना है जिससे अयोध्या में राम मंदिर का हुआ है। दूसरी और अयोध्या में बने राम मंदिर में लोहे और स्टील का प्रयोग नहीं किया गया है उसी तरह अबू धाबी में बने इस हिन्दू मंदिर में भी लोहे और स्टील का उपयोग नहीं किया गया है। अबू धाबी में बने मंदिर की इंटरलॉकिंग पद्धति से शिलाओं की फिटिंग की गई है। यह एक ऐसी पद्धति है जो किसी भी निर्माण कार्य को हजारों सालों की मजबूती देने में सक्षम है। इसके साथ ही अबूधाबी में बने इस हिन्दू मंदिर में इटैलियन मार्बल का भी उपयोग हुआ है। इटैलियन मार्बल की वजह से इस मंदिर का इंटीरियर अलग ही निखरता है।
मंदिर के स्तंभों पर हुई रामायण की नक्काशी
आबू धाबी में बने इस मंदिर के बाहरी स्तंम्भों पर जो नक्काशी हुई है वह देखने में काफी रोचक और भव्य है। इस मंदिर की नक्काशी में रामायण की अलग-अलग कहानियों का वर्णन किया गया है। मंदिर में राम जन्म, सीता स्वयंवर, राम वनगमन, युद्ध, लंका दहन, राम-रावण युद्ध और भरत- मिलाप जैसे प्रसंगों को नक्काशी में बहुत ही सफाई और भव्यता के साथ उकेरा है। ये नक्काशी देखते हुए मानो आंखों के सामने रामकथा आने लगती है। इनको देखकर एक अलग ही सुकून कलेजे को मिलता है। इस मंदिर में हुई नक्काशी में हाथी भी उकेरे गए हैं। जो भारतीय संस्कृति का प्रतीक हैं। नक्काशी में एक तरफ ऊंट उकेरे गए हैं जो कि अरबी संस्कृति का प्रतीक हैं, मंदिर से अरबी संस्कृति भी झलकती है। मंदिर में अरबी घोड़े भी उकेरे गए हैं जिनसे भारत और अरब के बीच की दोस्ती का प्रतीक है।
27 एकड़ जमीन में बना है हिन्दू मंदिर
आबू धाबी में बना यह हिन्दू मंदिर 27 एकड़ जमीन पर बनाया हुआ है, इसमें साढ़े 13 एकड़ जमीं में मंदिर का हिस्सा बना है और बाकी साढ़े 13 एकड़ में पार्किंग एरिया बनाया गया है। इसकी ऊंचाई 108 फीट, लंबाई 79.86 मीटिर और चौड़ाई 54.86 मीटर है। मंदिर परिसर के अंदर एक बड़ा एम्फीथिएटर, एक गैलरी, एक लाइब्रेरी, एक फूड कोर्ट, एक मजलिस, 5,000 लोगों की क्षमता वाले दो कम्युनिटी हॉल, गार्डन और बच्चों के खेलने के क्षेत्र शामिल हैं।मंदिर में 402 खंभे हैं. 25,000 पत्थर के टुकड़ों का उपयोग किया गया है. मंदिर तक जाने वाले रास्ते के चारों ओर 96 घंटियां और गौमुख स्थापित किए गए हैं. मंदिर में नैनो टाइल्स का इस्तेमाल किया गया है, जो गर्मी में भी पर्यटकों के लिए चलने में आरामदायक होगी. मंदिर में किसी भी प्रकार की लौह सामग्री का उपयोग नहीं किया गया है. मंदिर में गोलाकार, षटकोणीय जैसे विभिन्न प्रकार के खंभे बनाए गए हैं.
मुस्लिम राजा ने दी है जमीन
एक मुस्लिम राजा ने एक हिंदू मंदिर के लिए भूमि दान की. इस मंदिर के चीफ आर्किटेक्ट कैथोलिक ईसाई, प्रोजेक्ट मैनेजर एक सिख, फाउंडेशनल डिजाइनर एक बौद्ध, कंस्ट्रक्शन कंपनी एक पारसी ग्रुप है और डायरेक्टर जैन धर्म से ताल्लुक रखते हैं. मंदिर में रामायण और महाभारत सहित भारत की 15 कहानियों के अलावा माया, एजटेक, मिस्र, अरबी, यूरोपीय, चीनी और अफ्रीकी सभ्यताओं की कहानियों को भी दर्शाया गया है. मंदिर में ‘शांति का गुंबद’ और ‘सौहार्द का गुंबद’ भी बनाया गया है.
108 फुट ऊंचा है मंदिर
कुल 108 फुट ऊंचा यह मंदिर क्षेत्र में विविध समुदायों के सांस्कृतिक एकीकरण का मार्ग प्रशस्त करेगा. मेजबान देश को समान प्रतिनिधित्व देने के लिए भारतीय पौराणिक कथाओं में हाथी, ऊंट और शेर जैसे महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले जानवरों के साथ-साथ यूएई के राष्ट्रीय पक्षी बाज को भी मंदिर के डिजाइन में शामिल किया गया है. प्रतिष्ठित पत्थर का मंदिर दुबई-अबू धाबी शेख जायद राजमार्ग पर अल रहबा के पास अबू मुरीखा में स्थित है. शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान का मंदिर के निर्माण में है बड़ा योगदान है। मंदिर इन्हीं की ओर से डोनेट की गई जमीन पर बनाया गया है. 2015 में उन्होंने संयुक्त अरब अमीरात में पहले मंदिर के निर्माण के लिए 13.5 एकड़ जमीन दान की थी और साल 2019 में, उन्होंने अतिरिक्त 13.5 एकड़ जमीन गिफ्ट की. मंदिर की नींव अप्रैल 2019 में रखी गई थी और इसका निर्माण उसी साल दिसंबर में शुरू हुआ था.
पीएम मोदी की पहल
प्रधानमंत्री बनने के बाद से अब तक यूएई का उनका ये सातवां दौरा है. पीएम मोदी सबसे पहले 2015 में यूएई के दौरे पर गए थे. ये 34 साल में पहली बार था, जब कोई भारतीय प्रधानमंत्री यूएई के दौरे पर गया था. मंदिर के उद्घाटन के बाद देश और दुनियाभर में फैले भारतीयों में उत्साह बना हुआ है. सैकड़ों भारतीय इस ऐतिहासिक पल का गवाह बनने के लिए अबू धाबी पहुंचे हैं.