इस बीच वरिष्ठ सपाई नेता, राजेंद्र चौधरी ने अखिलेश यादव सृके समर्थन में बयान देते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश की जनता अखिलेश जी को दोबारा मुख्यमंत्री बनते देखना चाहती है।
चुनाव आयोग सुनवाई के दौरान कानूनी और तकनीकी विशेषज्ञों की राय लेगा। इसके बावजूद भी अगर स्थिति नहीं सुलझी तो आयोग समाजवादी पार्टी के नाम और निशान को जब्त कर दोनों दलों को नए नाम और निशान का विकल्प देगा।
वैसे दोनों धड़ों ने सभी विकल्पों को ध्यान में रख कर तैयारी कर ली है। मुलायम धड़े ने जहां राष्ट्रीय लोकदल और इसके चुनाव निशान (हल जोतता किसान) का विकल्प आजमाने की तैयारी की है। वहीं, अखिलेश धड़ा सबसे पहले मोटरसाइकिल पर और इसे साइकिल से मिलता जुलता होने के कारण आयोग द्वारा ठुकराए जाने की स्थिति में बरगद के निशान पर चुनाव मैदान में उतरने को तैयार है।
दूसरी ओर, अखिलेश धड़ा राष्ट्रीय अधिवेशन और इसमें लिए गए निर्णय को वैध ठहरा रहा है। इस धड़े ने आयोग में दावा किया है कि रामगोपाल ने अधिवेशन तब बुलाया जब तत्कालीन अध्यक्ष ने उनका निष्कासन वापस ले लिया था। फिर इस धड़े का दावा है कि चूंकि 90 फीसदी विधायक और सांसद अखिलेश धड़े के साथ हैं इसलिए नाम और निशान पर उसका स्वाभाविक दावा बनता है।
क्या कर सकता है चुनाव आयोग
मुलायम के दावे को तभी महत्व मिल सकता है जब चुनाव आयोग यह मान ले कि रामगोपाल की ओर से बुलाया गया अधिवेशन असंवैधानिक था। अगर आयोग ने इस तथ्य को स्वीकार कर लिया तो निर्णय मुलायम धड़े के पक्ष में होगा। इसके उलट अगर आयोग ने इस तथ्य को स्वीकार नहीं किया तो बाजी अखिलेश धड़े के हाथ लगेगी।
कानूनी विमर्श भी अहम
दोनों का पक्ष सुनने के बाद आयोग इस मामले में कानूनी विशेषज्ञों की राय लेगा। माना जा रहा है कि चूंकि इस बारे में फैसला 17 जनवरी से पहले लेना जरूरी है। ऐसे में आयोग रविवार तक विमर्श की प्रक्रिया पूरी कर लेगा।