खाने-पीने की वस्तुओं की बढ़ती महंगाई ने छोटे दुकानदारों और उत्पादकों को कारोबार समेटने पर मजबूर कर दिया है। रिटेल इंटेलीजेंट प्लेटफॉर्म बाइजॉम और वैश्विक फर्म नील्सन ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि नवंबर में 6 फीसदी छोटे दुकानदार बाजार से गायब हो गए, जबकि 14 फीसदी उत्पादकों ने भी ताला लगा दिया है।
रिपोर्ट के मुताबिक, अक्तूबर तिमाही में एफएमसीजी उत्पादों के छोटे विनिर्माताओं की उद्योग में भागीदारी घटकर महज 2 फीसदी रह गई है। इस दौरान 14 फीसदी छोटे विनिर्माताओं ने अपना कारोबार बंद कर दिया। इसके उलट बड़े एफएमसीजी उत्पादकों की हिस्सेदारी बढ़कर 76 फीसदी पहुंच गई है।
नील्सन के दक्षिण एशिया प्रमुख समीर शुक्ला ने कहा, छोटे विनिर्माता बढ़ती महंगाई का दबाव नहीं सहन कर सके। लगातार घाटे की वजह से उन्हें अपना कारोबार समेटना पड़ा।
बिक्री में भी 14.4 फीसदी गिरावट
चाय, बिस्कुट, साबुन और क्रीम जैसे घरेलू इस्तेमाल के उत्पादों की बिक्री भी अक्तूबर के मुकाबले नवंबर में 14.4 फीसदी कम रही। इसका प्रमुख कारण छोटे दुकानदारों की संख्या में कमी है। इस दौरान छोटे और चालू किराना दुकानदारों की बिक्री में 8.8 फीसदी गिरावट आई।
अगर पिछले साल से तुलना करें तो उपभोक्ता उत्पादों की बिक्री 10.4 फीसदी बढ़ी है। इस साल डिब्बाबंद खाद्य उत्पादों की मांग बढ़ी है, क्योंकि ऑफिस दोबारा खुलने और यात्राओं पर प्रतिबंध हटने से लोग घरों से बाहर निकलने शुरू हो गए हैं।
सीमेंट भी रिकॉर्ड महंगाई की ओर, 20 रुपये तक बढ़ेंगे दाम
कोयला, डीजल जैसे कच्चे माल के बढ़ते दाम से अगले कुछ महीनों में सीमेंट की खुदरा कीमतें 15-20 रुपये और बढ़ जाएंगी। रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने बृहस्पतिवार को बताया कि अगस्त से अब तक सीमेंट का खुदरा मूल्य 10-15 रुपये प्रति बोरी बढ़ चुका है। मार्च तक यह अपने रिकॉर्ड स्तर 400 रुपये प्रति बोरी के भाव पहुंच जाएगी।
लागत बढ़ने से कंपनियों का मुनाफा 100-150 रुपये प्रति टन कम हो गया है, जिसकी भरपाई के लिए कीमतें बढ़ानी होंगी। हालांकि, इस दौरान रियल एस्टेट व निर्माण क्षेत्र में सुधार से सीमेंट की खपत में भी 11-13 फीसदी का इजाफा होगा।