यूपी के रण में पश्चिम के 11 जिलों के 58 अखाड़ों में बृहस्पतिवार को योद्धाओं का इम्तिहान है। सियासी दलों में आखिरी दौर की जुबानी जंग और जोर-आजमाइश जारी है। शुरुआत तो मुद्दों से हुई। सियासी प्रयोगशाला में उनको घिस-घिसकर हथियार बनाया गया। फिर इन्हीं हथियारों से खूब वार-पलटवार हुए। एक लंबी फेहरिस्त है यहां मुद्दों की। पर, अब…? मुद्दे मतदाताओं में तो हैं। कई चुभते सवाल जवाब पाने को बेताब हैं। सियासी दलों की बात करें तो उनका सारा जोर अब ध्रुवीकरण पर है। पश्चिम के रण में क्या-क्या सवाल हैं, क्या-क्या मुद्दे हैं, पेश है अमित मुद्गल की खास रिपोर्ट….
मुद्दों को लेकर आमजन क्या सोच रहा है, यह जानने के लिए हम गांव खरखौदा पहुंचे। शाम का समय है। मौसम में सर्द हवाएं ठंडक घोल रही हैं। मुख्य मार्ग पर ही चौपाल सजी है। सवाल छिड़ते ही प्रमोद कुमार कहते हैं, मुद्दों की बात तो हर चुनाव में उठती है। असल बात तो ये है कि इनपर अमल नहीं होता। जैसे इस चुनाव में कानून-व्यवस्था एवं सुरक्षा सबसे बड़ा मुद्दा है। लोगों को इसे समझना चाहिए। अनिल ने प्रश्नवाचक दृष्टि से प्रमोद की ओर देखते हुए कहा, किसानों के मुद्दे भूल गए? गन्ना बकाया भुगतान से लेकर फसलों के दाम तक के मसले हैं। इन्हें भी ध्यान में रखकर मतदान करना। तभी सुधीर ने कहा, सुरक्षा है, तो सब ठीक है। युवा राहुल बोल उठे, चच्चा! थोड़ा रोजगार पर भी ध्यान दे लो। चुनाव में हर मुद्दा उठेगा। अच्छे करने वाले का अच्छा ही होगा। गांव सरूरपुुर में मिले हारून कहते हैं, इस बार तो मुद्दे ही मुद्दे हैं। सुरक्षा तो मिली, पर सवाल यह भी है कि किसे मिली? हारून अभी आगे बोलना चाह ही रहे थे कि जयवीर बीच में बोल पड़े- सभी को सुरक्षा मिली। सुरक्षा की परिभाषा भी क्या अलग-अलग है? कानून का शिंकजा तो सब पर बराबर ही कसा गया, बुजुर्ग दयाराम बोले। उन्होंने कहा, भाई मेरी सुनो, मुद्दे तो बहुत हैं पर ऐसा लग रहा है कि सब अपने-अपने को वोट डाल देंगे। अब तक तो यही होता रहा है। खरखौदा हो या सरूरपुर गांव, आमजन के ये बोल बताते हैं कि वे किन मुद्दों पर मतदान करेंगे।
सुरक्षा : दंगों को लेकर खूब चला वार-पलटवार
सबसे पहले बात सुरक्षा की। पश्चिमी यूपी में यह एक बड़ा मुद्दा रहा है। हर जाति-संप्रदाय की सुरक्षा के मुद्दे समय-समय पर उठते रहे हैं। यही कारण है कि भाजपा बार-बार सपा शासनकाल में हुए दंगोें का जिक्र कर रही है। भाजपा हर चुनावी सभा में यह बताती है कि योगी सरकार में कोई दंगा नहीं हुआ। वहीं, सपा-रालोद गठबंधन दंगों का जिम्मेदार भाजपा को ठहरा रहा है।
कानून-व्यवस्था : प्रतिद्वंद्वी पर हमले का हथियार बना यह मुद्दा
कानून-व्यवस्था भी पश्चिमी यूपी में बेहद अहम मुद्दा है। यह सच है कि छोटी-छोटी बातों पर फसाद यहां आम बात रही है। सड़कों पर लूट और रंगदारी की वसूली को लेकर यहां खूब सवाल उठते रहे हैं। कॉलेज जाने वाली छात्राओं से छेड़छाड़ की घटनाओं पर प्रतिक्रिया ने कई बार यहां बड़ा रूप लिया है। भाजपा इन सब सवालों को हर मंच से उठाकर वोट मांग रही है। पार्टी बता रही है कि मुख्यमंत्री योगी की एनकाउंटर नीति ने किस तरह से कानून का राज कायम किया। अब ट्यूबवेल पर स्टार्टर, मोटर चोरी नहीं होते। बिजली की तारें नहीं कटतीं और पशु चोरी नहीं होते। सब सुरक्षित हैं। इस मुद्दे का असर क्षेत्र में दिख भी रहा है। वहीं, सपा और रालोद का गठबंधन इन्हीं मुद्दों पर सरकार को घेर भी रहा है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव इसे ‘ठोको नीति’ बताते हुए एक वर्ग विशेष पर भाजपा के निशाना साधने का आरोप लगाते हैं। बसपा दलित उत्पीड़न की बात करती है। यानी सभी इस मुद्दे को अपने-अपने तरीके से उठाकर अपने टारगेट वोटर को साध रहे हैं।
कैराना में पलायन के मुद्दे पर अब भी प्रयोग जारी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और गृहमंत्री अमित शाह कैराना जाकर पलायन के बाद लौटे परिवारों से मिल चुके हैं। लोगों को बार-बार संदेश देने की कोशिश की गई कि पिछली सरकारों में लोग पलायन करने पर मजबूर थे। भाजपा ने उन्हें सुरक्षा दी।
पलायन का मुद्दा इस बार भी खूब गर्म रहा
पलायन ही वह मुद्दा है, जिसने पिछली बार के चुनाव में भाजपा को मजबूती दी थी। वहीं, सपा-रालोद और बसपा पलायन के मुद्दे को ध्रुवीकरण के लिए चलाया गया भाजपा का हथियार बताते हुए इससे सभी को सचेत रहने की बात कर रही हैं। बहरहाल, इससे कैराना का मुकाबला फिर से दिलचस्प रहने वाला है। उम्मीदवार भी पिछले ही हैं। सपा से नाहिद हसन तो भाजपा ने मृगांका सिंह को चुनावी रण में उतारा है।
छुट्टा पशु : किसानों में मुद्दा, असर कितना यह अलग सवाल
सड़कों और खेतों में घूम रहे छुट्टा पशु निश्चित रूप से इस चुनाव में अहम मुद्दा हैं। गांव-गांव किसान इस मुद्दे को उठा रहे हैं। वे कहते हैं कि छुट्टा पशु फसलों को तो चट ही कर रहे हैं, सड़कों पर उनकी वजह से लोग चोटिल हो रहे हैं। सपा-रालोद गठबंधन इस मुद्दे को जोरशोर से उठा रहा है। हालांकि, भाजपा इसके जवाब में गौशालाएं बनवाने और 930 रुपये प्रतिमाह पालन-पोषण करने वाले को देने की बात कहती है। किसान इसपर भ्ाी सवाल उठाते हैं कि इतने कम पैसे में किसी भी पशु का पेट भर पाना मुश्किल है।
सड़क, यातायात एवं विकास
ये मेरा काम…ये तो मेरा काम
पश्चिमी यूपी की कनेक्टिवटी दिल्ली या अन्य शहरों से बेहतर हुई है। भाजपा ने इसका फायदा उठाने की भ्ारपूर कोशिश्ा की है। हाईवे, कई शहरों में मेट्रो ट्रेन पर हो रहे काम को भ्ााजपा हर मंच पर पेश करती रही है। वहीं, सपा कई कार्यों पर सवाल उठा रही है। उसकी दलील है कि जिन कामों का श्रेय लिया जा रहा है, वह सपा सरकार में शुरू हुए थे। भाजपा सरकार सिर्फ उन कामों का उद्घाटन करके वाहवाही लूट रही है।
रोजगार : युवाओं में सेना भर्ती रैली को लेकर सबसे ज्यादा सवाल
चुनावी रण में रोजगार एक बड़ा मुद्दा है। युवाओं में इसके प्रति काफी नाराजगी नजर आ रही है। पश्चिमी यूपी में काफी संख्या में युवा सेना में भर्ती के लिए तैयारी करते हैं। ऐसे युवा अल सुबह और शाम पश्चिमी यूपी की सड़कों पर दौड़ लगाते नजर आ जाते हैं। लंबे समय से सेना भर्ती रैली आयोजित नहीं होने से युवा मायूस हैं। इसके अलावा अन्य नौकरियों में भर्ती की हालत और परीक्षाओं को लेकर भी युवाओं में शिकायतें हैं।
मुद्दे इतने सारे फिर भी दलों का जोर ध्रुवीकरण पर
पश्चिमी यूपी में मुद्दों की लंबी फेहरिस्त है। इसके बाजवूद सभी दल ध्रुवीकरण पर फोकस कर रहे हैं। भाजपा पूरी तरह से ध्रुवीकरण कराने के चक्कर में है, तो सपा भी इसी तरह से लामबंदी कराना चाह रही है। पक्ष-विपक्ष दोनों ने ही इसके लिए पूरी ताकत लगा रखी है।
कानून-व्यवस्था सर्वोपरि
इस चुनाव में भी कानून-व्यवस्था का मुद्दा बेहद अहम है। एक और मुद्दा है-सेना को सशक्त बनाना। भले ही यह मुद्दा केंद्र का हो, पर मुझे लगता है कि इसका भी प्रभाव है। हालांकि, किसानों जैसे कुछ मुद्दे ऐसे हैं जिनका असर हो सकता है। पर उसके बराबर का मुद्दा विकास है। मुद्दों पर ही सभी को चुनाव लड़ना भी चाहिए। -डॉ. बीपी शर्मा, पूर्व वीसी गौतमबुद्ध विश्वविद्यालय, नोएडा
मुद्दों पर ही होने चाहिए चुनाव
आज चुनाव में मुद्दों से जैसे कोई सरोकार नहीं रह गया है। आर्थिक विषयों पर सभी राजनीतिक दलों को फोकस करना चाहिए। विडंबना यह है कि रोजगार, कृषि, सामाजिक समरसता, आर्थिक प्रगति के मुद्दों को राजनीतिक दल चुनावी मुद्दे नहीं बनाते हैं। जनता भी इन सबसे थोड़ा विमुख हो रही है। मुद्दों पर बात होनी चाहिए और मुद्दों पर ही चुनाव लड़ा जाना चाहिए। -प्रो. अतवीर सिंह, विभागाध्यक्ष समाजशास्त्र, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ