कानपुर के बिकरू गांव एक साल पहले हुआ खून-खराबा आजतक नहीं भूल पाया। दीवारों पर गोलियों के निशान मिटा दिए गए पर लोहे के दरवाजे पर गोलियों के छेद आज भी क्रूरता की गवाही दे रहे हैं। समय के साथ बिकरू में बहुत कुछ बदल चुका है। अब न चौपालें लगती हैं और न किसी का खौफ रहा। गांव के लोग रोजमर्रा के कामकाज में व्यस्त हो गए पर दो जुलाई की खौफनाक रात कोई नहीं भूल सका है।
चौबेपुर से शिवली जाने वाले रोड से मुड़ते ही बिकरू गांव की सरहद शुरू हो जाती है। गांव की सभी रोड आरसीसी है। तीसरी रोड विकास के दरवाजे की ओर जाती है। गांव में किसी गाड़ी की आहटभर से लोग सतर्क हो जाते हैं। ज्यादातर लोग यह मान लेते हैं कि कोई जांच आई होगी। सभी की कोशिश होती है कि बिकरूकांड के पचड़े में न पड़ें। पूछने पर सिर्फ कहते हैं कि जिंदगी चल रही है। मुख्य मार्ग से करीब 200 मीटर पहुंचते एक बड़ा क्षेत्रफल खंडहर में तब्दील हो चुका है। किलानुमा बने विकास के घर के तीनों बड़े गेट औंधे मुंह गिरे पड़े हैं। लग्जरी गाड़ियां, दो ट्रैक्टर और अन्य कृषि उपकरण टूटे पड़े हैं। पूरा घर मिट्टी में मिल चुका है।
मोहल्ले के लोग अभी भी कतराते
जमींदोज हो चुके घर में कभी विकास की चौपालें लगती थीं। गांव, इलाके के छोटे-मोटे विवाद यहीं हल होते थे। विकास का फैसला ही अंतिम होता था। इलाके के छोटे बदमाश भी यहां जमा होते थे। गुंडागर्दी की पटकथा भी इसी घर में लिखी जाती थी। अब यहां सबकुछ बंद है। गांव के लोगों को अब किसी तरह का खौफ नहीं रहा। विकास के मोहल्ले के लोग अभी भी बोलने से कतराते हैं। इस नाते ज्यादातर लोग उसके करीबी थे और कई परिवारों के अपने मुठभेड़ में मारे गए। इस नाते उनका अपना दर्द है और अपने ही गम में डूबे हैं। न विकास से मतलब रहा और न गांव वालों से।
वह खौफनाक रात आजतक नहीं भूलती
विकास के पड़ोसी कुशवाहा परिवार बेटी की शादी की तैयारियों में व्यस्त दिखा। कुरेदने पर कहते हैं कि हमारा बहुत आना जाना नहीं था। गांव के होने के नाते दुआ-सलामभर था। कजंती जाने वाले रोड पर राजेश कुमार मिल जाते हैं। पूछने पर कहते हैं कि अब सबकुछ सामान्य हो चुका है। गांव के लोग भूलने की कोशिश कर रहे हैं पर कैसे भूल सकते हैं। वह खौफनाक रात थी। चारों ओर से गोलियां बरस रही थीं। कौन किस पर चला रहा था, पता ही नहीं। ऐसे ही सड़क से गुजर रहे राम कुमार कहते हैं कि पूरे देश में बिकरू अब विख्यात हो चुका है। उस घटना से गांव का नाम बदनाम हुआ है।
विकास के खंडहर में अब कोई नहीं जाता
महीनों तक चौबेपुर थाने की फोर्स विकास के खंडहर में बैठा करती थी पर अब सिर्फ बेंच ही पड़ी है। गांव के लोग उस खंडहर को भी देखने से कतराते हैं। बेंच खाली है और कोई झांकने तक नहीं जाता।