Tuesday , February 7 2023

अखिलेश का नर्म हिन्दुत्व कार्ड, धार्मिक प्रतीकों से वोटों के ध्रुवीकरण पर सपा का जोर

उत्तर प्रदेश में पांच साल पहले बने चुनावी मंजर को समाजवादी पार्टी अब बदलने की कोशिश में हैं। उस वक्त सरकार चला रहे अखिलेश यादव को भाजपा ने प्रखर हिन्दुत्व व राष्ट्रवाद पर ध्रुवीकरण कराने वाले मुद्दों पर घेरा था और सत्ता से बाहर कर दिया था। अब अखिलेश उसकी काट के लिए खुद को नर्म हिन्दुत्व के प्रतिनिधि के तौर पर पेश कर रहे हैं।

यह सिलसिला लोकसभा चुनाव के दौरान ही शुरू हुआ था लेकिन तब बात नहीं बनी। अब इसे फिर परवान चढ़ाया जा रहा है। अखिलेश यादव एक ओर खुद को असली केशव (श्रीकृष्ण) के वंशज बता रहे हैं, तो वह उन बातों से परहेज भी कर रहे हैं जिससे उन पर मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप लगाने का मौका भाजपा को मिले।

सपा के प्रचार गीतों में अखिलेश यादव को कृष्ण बता कर विरोधियों का  परास्त करने की उपमा दी जा रही है। खुद कई मौकों पर अखिलेश यादव अपने को भगवान विष्णु का भक्त बताते हैं और इटावा के बीहड़ में भगवान विष्णु का मंदिर बनवाने की बात भी कह चुके हैं। अयोध्या व मथुरा के तमाम संत व साधुओं का वह आशीर्वाद ले रहे हैं। इस साल उन्होंने जगदगुरु शंकरचार्य  स्वामी स्वरूपानंद से हरिद्वार जाकर आशीर्वाद लिया।  पिछले साल अयोध्या में श्रीराम  मंदिर की नींव रखीगई थी, उस वक्त सपा प्रमुख ने ट्वीट कर लिखा  था, ‘जय महादेव जय सिया-राम , जय राधे-कृष्ण जय हनुमान। भगवान शिव के कल्याण, श्रीराम के अभयत्व व श्रीकृष्ण के उन्मुक्त भाव से सब परिपूर्ण रहें!’ हाल में पार्टी के तैयार  थीम सांग में अखिलेश आ रहे हैं, मुरलीधर कृष्ण बदलकर भेष आ रहे हैं को भी प्रचारित किया जा रहा है।

यह है वजह

असल में सपा मुस्लिम वोटों की चाहत तो रखती है, साथ में हिन्दु आस्था व विश्वास को भी सर माथे पर रख रही है। एक तरह से यह संतुलन साधने की कोशिश है। पार्टी जानती है कि केवल मुस्लिम यादव व अन्य पिछड़ी जातियों  वोट के भरोसे विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत मिलना मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में दूर  की कौड़ी है।  सपा अपने इस वोट बैंक के  जरिए 2002 व 2007 के विधानसभा चुनाव में 25 प्रतिशत से ज्यादा वोट प्राप्त कर लिए।  ध्रुवीकरण की गैरमौजदूगी में सपा अपने मुस्लिम, यादव व अन्य पिछड़ी जातियों के बड़े हिस्से के साथ सवर्ण जातियों को भी लाने में कामयाब रही। खास तौर पर उससे ब्राह्मण भी जुड़े और जाति से अलग युवा भी साथ आ गए  तो सपा ने  2012 में सरकार बना ली। लेकिन उसके बाद के तीन चुनावों में सपा का ग्राफ लगातार नीचे जा रहा है। अब कृष्ण के सहारे चुनावी नैया पार कराने की तैयारी है। यानी लोहे का जवाब लोहे से देने की मुहिम अब तेज हो रही है।

 समाजवादी पार्टी का विधानसभा चुनावों में  प्रदर्शन

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चुनाव वर्ष                         सीट लड़ी         प्राप्त सीटें         वोट प्रतिशत
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2017                               311                 47                21.82
 2012                               401                 224              29.13
 2007                               393                 97               25.43
 2002                               390                143               25.37
 1996                               281                110               21.80
 1993                               256                109              17.94