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जानिए इस समुदाय के लोगों को भी मिलेगा आरक्षण..

उपराज्यपाल प्रशासन ने कुल 15 जातियों और वर्गों को अन्य सामाजिक जातियां (अदर सोशल कास्ट या ओएससी) वर्ग में शामिल किया है। इनमें पश्चिमी पाकिस्तान से आए शरणार्थी (जो अनुसूचित जाति में नहीं) के अलावा जाट सैनी पेरना तेली और वागे-चोपान भी शामिल हैं।
जम्मू कश्मीर प्रशासन ने मतांतरित होकर ईसाई बने वाल्मीकि समुदाय के लोगों को आरक्षण का लाभ देने का फैसला किया है। शनिवार को उपराज्यपाल प्रशासन ने कुल 15 जातियों और वर्गों को अन्य सामाजिक जातियां (अदर सोशल कास्ट या ओएससी) वर्ग में शामिल किया है। इनमें पश्चिमी पाकिस्तान से आए शरणार्थी (जो अनुसूचित जाति में नहीं) के अलावा जाट, सैनी, पेरना, तेली और वागे-चोपान भी शामिल हैं।वहीं, विश्व हिंदू परिषद (विहिप), बजरंग दल, सनातम धर्म सभा और इक्कजुट जम्मू ने ईसाई बनने वाले वाल्मीकि समुदाय को आरक्षण कोटे में शामिल किए जाने का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि यह फैसला ईसाई मिशनरियों के मिशन को आगे बढ़ाएगा। प्रशासन को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए। इस बीच, प्रदेश प्रशासन ने जम्मू व कश्मीर आरक्षण नियमावली में भी एक बड़ा बदलाव करते हुए पहाड़ी भाषी लोग (पीएसपी) के स्थान पर पहाड़ी संजातीय लोग (पहाड़ी एथेनिक पीपुल्स) शब्द को शामिल किया है।जम्मू व कश्मीर आरक्षण नियमों के मुताबिक, अन्य सामाजिक जातियों के लिए सरकारी नौकरियों में चार प्रतिशत आरक्षण का प्रविधान है। प्रदेश सरकार ने जम्मू व कश्मीर सामाजिक व शैक्षिक पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिशों के अनुरूप फिर से सामाजिक जाति सूची को तैयार किया है। आयोग का गठन प्रदेश प्रशासन ने जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) जीडी शर्मा की अध्यक्षता में किया था।समाज कल्याण विभाग की सचिव शीतल नंदा की ओर से जारी अधिसूचना में कहा गया है कि उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने जम्मू व कश्मीर सामाजिक व शैक्षिक पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए जम्मू कश्मीर आरक्षण अधिनियम, 2005 में 15 जातियों और वर्गों को शामिल करने के लिए कहा है। इसके मुताबिक, सामाजिक पिछड़ा वर्ग (अदर सोशल कास्ट-ओएससी वर्ग) में अन्य जिन 15 वर्गों व जातियों को शामिल किया है, उनमें वाल्मीकि समुदाय के वे लोग भी शामिल किए गए हैं, जिन्होंने अपना मत बदला और ईसाई बन गए। इसके अलावा सामाजिक जातियों की मौजूदा सूची में उनके नामों के आधार पर भी संशोधन किया गया है। इसमें कुम्हार, हज्जाम अतराई, धोबी आदि (जो अनुसूचित जाति में नहीं है) शब्द शामिल किए गए हैं। वहीं कई हिंदू संगठनों ने ईसाई बनने वाले वाल्मीकि समुदाय को आरक्षण कोटे में शामिल किए जाने का विरोध शुरू कर दिया है। इन्हें भी मिला ओएससी का दर्जा : इसके अलावा वागे-चोपान, घिरैथ/भाटी/ चांग समुदाय, जाट, सैनी, मरकबांस/ पोनीवाला, सोची समुदाय, सुनार/ स्वर्णकार, हिंदू व मुस्लिम तेली समुदाय, पेरना, कौरु (कौरव), बोजरू/देकोंत/डुबडु़बे, ब्राह्ण, गोरकान व गोरखा, अनुसूचित जातियों के अलावा अन्य पश्चिमी पाक शरणार्थी और आचार्य को भी ओएससी का दर्जा दिया गया है।

मतांतरण कभी स्वेच्छा से नहीं होता

इक्कजुट जम्मू के अध्यक्ष एडवोकेट अंकुर शर्मा ने कहा कि मतांतरण कभी भी स्वेच्छा से नहीं होता, यह किसी दबाव, डर या लालच के कारण होता है। यह असंवैधानिक होता है। आरक्षण हिंदू समाज में दलितों और पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए शुरू किया गया था। इस्लाम या ईसाई धर्म में छूत-अछूत की कोई बात नहीं है। इस्लाम और ईसाई मत में जब किसी हिंदू को मतांतरित किया जाता है तो कहा जाता है कि उसे सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक न्याय नहीं मिल रहा था। ऐसे में मतातंरित दलित आरक्षण के अधिकारी नहीं रह जाते। अगर वाल्मीकि समुदाय से इसाई बने लोगों को आरक्षण का लाभ देने का फैसला किया गया है तो अनुचित और असंवैधानिक है। यह ईसाई मिशनरियों और जिहादी तत्वों के एजेंडे को आगे बढ़ाने जैसा ही है। हम ईसाई समुदाय को आरक्षण देने के खिलाफ हैं। प्रदेश सरकार को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए। यह हिंदुओं के इसाई मत में मतांतरण को बढ़ावा देगा। इसका हम पुरजोर विरोध करते हैं। -राजेश गुप्ता, विश्व हिंदू परिषद के कार्यकारी प्रदेशाध्यक्ष हमें यह फैसला अस्वीकार्य है। एक तरह से प्रदेश सरकार ने ईसाई मिशनरियों के काम को आसान किया है। सरकार को अपना फैसला वापस लेना चाहिए, अन्यथा वह एक बड़े आंदोलन के लिए तैयार रहें। -राकेश बजरंगी, राष्ट्रीय बजरंग दल के प्रदेशाध्यक्ष यह तो एक वर्ग को मतातंरण के बाद ईसाई बनने पर सरकारी लाभ देने जैसा है। इसलिए प्रशासन का फैसला सही नहीं है। इस पर विचार करना ही चाहिए।