समाजवादी पार्टी (एसपी) में जारी वर्चस्व की लड़ाई के बीच शुक्रवार को भी यह तय नहीं हो पाया कि साइकल चुनाव चिह्न पर अखिलेश यादव खेमे का हक है या मुलायम सिंह यादव गुट का। दरअसल, चुनाव आयोग ने इस मामले पर सुनवाई पूरी कर ली है और अगले आदेश तक अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। सूत्रों का कहना है कि आयोग 17 जनवरी तक इस बारे में फैसला दे सकता है।
मुलायम और अखिलेश खेमे के नेता अपने-अपने वकीलों के साथ आयोग पहुंचे थे, जिन्होंने अपनी दलीलें आयोग के सामने रखीं। एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, आयोग में करीब चार घंटे तक सुनवाई चली। सुनवाई के बाद अखिलेश खेमे के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि आयोग में सुनवाई पूरी हो गई है और उसने कहा है कि जल्द ही वह अपना फैसला सुनाएगा। सिब्बल ने कहा कि आयोग जो भी फैसला देगा, वह उनके पक्ष को मंजूर होगा।
सुनवाई के दौरान अखिलेश खेमे की ओर से कहा गया कि अखिलेश यादव को पार्टी ने राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना है, इसलिए सिंबल पर भी उन्हीं का अधिकार बनता है। उधर मुलायम पक्ष ने अपनी दलील में कहा कि रामगोपाल द्वारा बुलाया गया अधिवेशन ही असंवैधानिक था क्योंकि रामगोपाल पार्टी से बर्खास्त किए जा चुके थे। पार्टी की स्थापना मुलायम ने की थी, इसलिए ‘साइकल’ उन्हीं की है। चुनाव आयोग ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रखा लिया। माना जा रहा है कि चुनाव आयोग 17 जनवरी से पहले कोई फैसला सुना देगा क्योंकि अगर 17 जनवरी तक आयोग कोई फैसला नहीं ले पाता है, तो साइकल चुनाव चिह्न को फ्रीज कर दिया जाएगा। इसी दिन यूपी में पहले चरण के चुनाव की अधिसूचना जारी होगी। उधर, अखिलेश खेमे के नेता नरेश अग्रवाल ने बताया कि चुनाव आयोग से सामने सभी मुद्दे पर बहस हुई है और आयोग के फैसले का इंतजार है। उन्होंने कहा, ‘ हमें चुनाव आयोग के फैसले का इंतजार करना चाहिए।’
बता दें कि समाजवादी पार्टी में पिछले काफी समय से वर्चस्व की लड़ाई चल रही है। अखिलेश ने पिता मुलामय के खिलाफ जाते हुए पार्टी का अधिवेशन बुला कर खुद को राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित करवा लिया था। साथ ही शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने के अलावा अमर सिंह को पार्टी से बर्खास्त भी करवा दिया था। हालांकि मुलायम खेमा इस अधिवेशन की वैधता पर ही सवाल खड़े कर रहा है, जबकि अखिलेश खेमे का दावा है कि ज्यादातर विधायकों, सांसदों और पार्टी पदाधिकारियों का समर्थन अखिलेश को हासिल है। अखिलेश ने 200 से ज्यादा विधायक अपने समर्थन में जुटाकर अपनी ताकत भी दिखाई थी, जबकि मुलायम के समर्थन में काफी कम विधायक आए थे।
खुद मुलायम सिंह का रुख भी इस बीच कई बार बदलता रहा। कभी वह कहते कि अब उनके पास कुछ नहीं रहा, सब अखिलेश का है, तो कभी खुद के ही पार्टी अध्यक्ष होने का दावा करते। मुलायम ने विवाद का ठीकरा रामगोपाल यादव पर फोड़ते हुए उन पर अखिलेश को बहकाने का आरोप भी लगाया। उधर अखिलेश भी यह कहते रहे कि उन्हें अपने पिता से कोई समस्या नहीं है, वह सिर्फ उन लोगों के खिलाफ हैं जो उनके खिलाफ साजिश रचते हैं। उनका इशारा अमर सिंह और शिवपाल यादव की ओर था।