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यूपी का रण : जातियों के गणित में उलझा समीकरण, मुजफ्फरनगर, रामपुर और अमरोहा से ग्राउंड रिपोर्ट

कृषि यंत्रों के निर्माण से पहचान बनाने वाले खतौली में सियासी पारा रोजाना तेजी से ऊपर-नीचे हो रहा है। राजनीतिक दलों के समीकरण जातियों के गणित में उलझे हुए हैं। 2017 में भाजपा को जिले में सबसे बड़ी जीत इसी विधानसभा क्षेत्र में मिली थी। पर, अब हालात वैसे नहीं हैं। पांच साल में  समीकरण बदल जाने से भाजपा के लिए इस बार कड़ा इम्तिहान है।
 साल 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के विक्रम सैनी ने सपा-कांग्रेस के उम्मीदवार चंदन चौहान को 31,374 वोटों के अंतर से पराजित किया था। इस बार भी भाजपा ने विक्रम सैनी पर ही दांव खेला है। भाजपा जाट और गुर्जर मतों में सेंधमारी की कोशिशों में जुटी हुई है। सपा-रालोद गठबंधन से पूर्व राज्यसभा सदस्य राजपाल सैनी चुनाव मैदान में हैं। मुस्लिम-जाट के साथ ही  अपने सजातीय मतदाताओं को साधने के लिए राजपाल पूरी ताकत लगाए हुए हैं। पिछले चुनाव में बसपा के टिकट से राजपाल सैनी के बेटे शिवान सैनी ने खतौली से ही चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गए थे। राजपाल सैनी बसपा छोड़कर सपा में शामिल हुए और चुनाव रालोद के निशान पर लड़ रहे हैं। पूर्व विधायक करतार भड़ाना इस बार बसपा के टिकट पर खतौली के मैदान में उतरे हैं। रालोद के टिकट पर वह 2012 में यहां से विधायक बने थे, लेकिन 2017 में उन्होंने बागपत सीट से चुनाव लड़ा। इस बार बसपा में शामिल होकर यहां चुनाव लड़ने पहुंचे। दलित-मुस्लिम और गुर्जर समीकरण के अलावा वह अन्य बिरादरियों के मतदाताओं को साधने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं, कांग्रेस ने इस बार युवा चेहरे गौरव भाटी को मैदान में उतारा है।

खतौली ने दिए कई मंत्री
साल 2012 में परिसीमन के बाद खतौली सीट का जाट बेल्ट बुढ़ाना विधानसभा का हिस्सा हो गया। इतिहास देखें तो खतौली से जीतने वाले कई नेता मंत्री बने। पश्चिमी यूपी की राजनीति के दिग्गज और हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल रहे वीरेंद्र वर्मा यहीं से विधायक बने थे। लक्ष्मण सिंह, धर्मवीर बालियान, सुधीर बालियान, योगराज सिंह खतौली से जीतकर ही अलग-अलग सरकारों में मंत्री रहे।ध्रुवीकरण पर टिकीं भाजपा की उम्मीदेंं
खतौली के रण में प्रत्याशियों के सामने चुनौतियां ही चुनौतियां हैं। बदले माहौल में भाजपा प्रत्याशी विक्रम सैनी के सामने दोबारा जीत हासिल करने की चुनौती है। पर, उनकी राहें आसान नहीं हैं। भाजपा की उम्मीदें ध्रुवीकरण पर टिकी हुई हैं। पिछले चुनाव में भाजपा का मुकाबला सपा से हुआ था। बसपा तीसरे और रालोद चौथे स्थान पर रही थी। सपा और रालोद के परंपरागत वोटों के कारण गठबंधन प्रत्याशी अपना समीकरण मजबूत मानकर चल रहे हैं। राजपाल सैनी एक बार मोरना से विधायक रह चुके हैं। सजातीय मतों पर भी उन्हें भरोसा है। बसपा प्रत्याशी पूर्व विधायक करतार भड़ाना 2012 में खतौली से विधायक रहे हैं। वह सजातीय मतों के साथ बसपा के परंपरागत मतदाताओं में अपने समीकरण तलाश रहे हैं। मुकाबले में एक कोण बनने की कोशिश कांग्रेस प्रत्याशी गौरव भाटी भी कर रहे हैं। बसपा और कांग्रेस प्रत्याशी की राह में उनका बाहरी होना भी चुनौती खड़ी कर रहा है। वोटों का गणित
मुस्लिम  90 हजार
एससी 47 हजार
सैनी  35 हजार
जाट  25 हजार
राजपूत  22 हजार
गुर्जर  23 हजार2017 का चुनाव परिणाम
विक्रम सैनी, भाजपा 94,771
चंदन चौहान, सपा 63,397
शिवान सैनी, बसपा 37,380
शाहनवाज राना, रालोद 12,846

बिलासपुर : भाजपा, सपा, कांग्रेस और बसपा ने झोंकी ताकत, सिख मतदाता भी निभाएंगे निर्णायक भूमिका

कृषि कानूनों के विरोध में चले किसान आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बिलासपुर में किसानों के मुद्दे अहम हैं। यहां सभी दलों के सामने किसानों का विश्वास जीतने की चुनौती है। लोग किसानों और कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर बंटे हुए हैं। चुनावी समर के योद्धाओं की बात करें तो जल शक्ति राज्यमंत्री बलदेव सिंह औलख भाजपा से फिर मैदान में हैं। कांग्रेस ने पूर्व विधायक संजय कपूर पर दांव लगाया है। बसपा से रामऔतार कश्यप चुनावी दंगल में ताल ठोक रहे हैं, तो सपा-रालोद गठबंधन ने अमरजीत सिंह को प्रत्याशी बनाया है।

बिलासपुर का सियासी मिजाज अलग है। यहां चर्चाओं में सबसे ज्यादा किसानों के मुद्दे हैं। यही वजह है कि सभी अपने-अपने तरीके से किसानों को रिझाने में लगे हैं। वहीं, भाजपा कानून-व्यवस्था के मुद्दे को जोर-शोर से उठा रही है। कुल मिलाकर मुकाबला कांटे का है। पिछड़े और दलित मतदाताओं का रुख तय करेगा कि कौन विधायक बनेगा। हालांकि, सिख मतदाता भी यहां अच्छी तादाद में हैं। सिख मतदाताओं का रुख सपा, कांग्रेस और भाजपा तीनों दलों की तरफ है। ऐसे में सभी दलों के प्रत्याशी पिछड़े और एससी मतदाताओं को रिझाने में लगे हैं। चुनाव को लेकर सवाल छिड़ते ही बिलासपुर के आसिम खां कहते हैं, मतदान क्षेत्र के भाईचारे को ध्यान में रखकर किया जाएगा। जो कानून-व्यवस्था को बेहतर कर सके, हम उसे ही वोट देंगे। कस्बा राजपुर के अब्दुल लतीफ कहते हैं, क्षेत्र का विकास कराने वाले, हर गरीब की सुनने वाले को वोट किया जाएगा। नयागांव निवासी हरविंदर सिंह स्थानीय मुद्दों के असर की भी बात करते हैं। वह कहते हैं, स्थानीय समस्याओं का निराकरण हुआ है और कुछ समस्याओं के समाधान बाकी हैं। चुनाव में भले ही सड़कों, बिजली, पानी की बातें कम हो रही हों, लेकिन जनता में ये मुद्दे हैं। पट्टी बसंतपुर के नीरज गंगवार कहते हैं, विकास ही मुख्य मुद्दा रहेगा।

आसपास की सीटों के समीकरण
बिलासपुर विधानसभा क्षेत्र स्वार सीट से मिली हुई है। हाईकोर्ट के आदेश के बाद स्वार सीट का निर्वाचन पिछली बार शून्य कर दिया गया था। लेकिन, मुस्लिम बहुल सीट होने के कारण यहां सपा की स्थिति मजबूत है। वहीं, मिलक सुरक्षित सीट भी इस सीट से मिली हुई है। ऐसे में मिलक पिछली बार भाजपा के कब्जे में आ गई थी। इस बार भी यहां भाजपा की स्थिति मजबूत है। लिहाजा, दोनों सीटों के समीकरण इस सीट को प्रभावित कर सकते हैं।

बिलासपुर विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं की भी अच्छी तादाद है। इनमें करीब 40 हजार अंसारी और 20 हजार पठान मतदाता हैं। जबकि, तुर्क बिरादरी के मतदाता भी करीब 10 हजार हैं। मुस्लिम समुदाय का रुख कांग्रेस और सपा की तरफ है। भाजपा, सपा और कांग्रेस तीनों प्रमुख दलों ने सिख प्रत्याशी उतारे हैं, जबकि बसपा ने ओबीसी पर दांव खेला है। ओबीसी मतदाताओं की संख्या भी करीब 80 हजार है। पर,  चुनावी इतिहास को देखें तो यहां जातीय समीकरण बहुत ज्यादा सफल नहीं रहे हैं। बहरहाल, मुख्य मुकाबला भ्ााजपा, सपा और कांग्रेस के बीच ही माना जा रहा है।

2017 का चुनाव परिणाम
बलदेव सिंह औलख, भाजपा  99,100
संजय कपूर, कांग्रेस  76,741
प्रदीप कुमार, बसपा  39,344
संतोष शर्मा, रालोद   2439

नौगांवा सादात : जाट-चौहान तय करेंगे योद्धाओं का सियासी भविष्य

नौगांवा सादात विधानसभा क्षेत्र प्रदेश की वीआईपी सीटों में शुमार है। यहां से भाजपा ने पूर्व सांसद देवेंद्र नागपाल को मैदान में उतारा है। जबकि, सपा ने पूर्व विधायक समरपाल सिंह, बसपा ने युवा शादाब खान उर्फ  टाटा और कांग्रेस ने रेखा रानी को प्रत्याशी बनाया है। 

यह सीट पूर्व क्रिकेटर चेतन चौहान की एंट्री के बाद सुर्खियों में आई थी। 2017 में भाजपा के टिकट पर चेतन चौहान ने सपा के मौलाना जावेद आब्दी को हराया था। 2020 में चेतन चौहान के निधन के बाद हुए उप चुनाव में उनकी पत्नी संगीता चौहान ने जीत हासिल की थी। संगीता ने भी मौलाना जावेद आब्दी को हराया था। संगीता का टिकट काटे जाने से चौहान नाराज हैं, तो किसान आंदोलन की वजह से जाट। राजनीतिक लिहाज से इस सीट पर जाट और चौहान मतदाताओं का ध्रुवीकरण महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 

मतदाताओं की बात करें तो कैलसा निवासी रोहताश कुमार कहते हैं, भाजपा सरकार में काफी विकास हुआ है। आपराधिक घटनाओं में कमी आई है। इन सब पर मूल्यांकन करें तो भाजपा सरकार बेहतर रही है। पर, दूसरी तरफ देखें तो महंगाई बेतहाशा बढ़ी है। इस मुद्दे को लेकर लोगों में सवाल हैं। मेडिकल स्टोर संचालक फुरकान अहमद कहते हैं, सरकार ने काम तो ठीक किए हैं, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। पर, युवाओं को रोजगार नहीं मिल पा रहा है। वहीं, किसान अनिल चौधरी कहते हैं, सरकार ने किसानों के साथ धोखा किया है। समय से गन्ना मूल्य का भुगतान नहीं हो रहा है। डीजल, बिजली की दरों में वृद्धि और किसान आंदोलन का असर इस सीट पर दिखाई देगा। संवाद

2017 का चुनाव परिणाम
चेतन चौहान, भाजपा 97,030
जावेद आब्दी, सपा 76,382
जयदेव, बसपा 40,172 
अशफाक अली खान, रालोद 14,597

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