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धर्म संसद में नफरत भरे भाषण मामले में ,सुप्रीम कोर्ट ने दी चार हफ्ते की मोहलत

सुप्रीम कोर्ट ने धर्म संसद में नफरत भरे भाषण मामले में अवमानना का आरोप लगाने वाली याचिका पर उत्तराखंड दिल्ली सरकार से जवाब मांगा है। सर्वोच्‍च अदालत ने जवाब देने के लिए चार हफ्ते की मोहलत दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने धर्म संसद में नफरत भरे भाषण मामले में अवमानना का आरोप लगाने वाली याचिका पर उत्तराखंड, दिल्ली सरकार से चार हफ्ते में जवाब मांगा है। दोनों राज्य सरकारों से नफरत भरे भाषण देने वालों के खिलाफ अब तक की गई कार्रवाई का ब्योरा मांगा गया है। जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की खंडपीठ ने सोमवार को याचिकाकर्ता तुषार गांधी की याचिका पर सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया। अवमानना याचिका दायर तुषार गांधी की ओर से उत्तराखंड के डीजीपी और दिल्ली के पुलिस कमिश्नर द्वारा उत्तराखंड राज्य में धर्म संसद में प्रमुख व्यक्तियों द्वारा दिए गए हेट स्पीच और दिल्ली में हिंदू युवा वाहिनी द्वारा आयोजित कार्यक्रम में दिए गए नफरत भरे भाषण से संबंधित मामले में कार्रवाई न करने का आरोप लगाते हुए अवमानना याचिका दायर की गई है।

तीन सप्ताह की मोहलत दी

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘अवमानना में नोटिस नहीं जारी कर रहे हैं।’ इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि भारत के महाधिवक्ता आर. वेंकटरमनी ने कुछ दिन पहले ही अपने कार्यालय का कार्यभार संभाला था। खंडपीठ ने मामले को चार सप्ताह के बाद सूचीबद्ध करने के लिए कहा। सुप्रीम कोर्ट ने यति नरसिंहानंद की कोर्ट पर की गई अपमानजनक टिप्पणी वाले साक्षात्कार के टेप पेश करने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया।

याचिका की तामील करने के लिए स्वतंत्रता दी

एडवोकेट शादान फरासत ने कहा कि वह अवमानना याचिका की एक कापी एजी की सहायता करने वाले वकील को देंगे। संबंधित राज्य सरकारों पर याचिका की तामील करने के लिए स्वतंत्रता भी प्रदान की गई।

जारी किए दिशा-निर्देश

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील फरासत ने प्रस्तुत किया कि संबंधित राज्यों की पुलिस ने तहसीन एस पूनावाला बनाम भारत सरकार में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार कोई कार्रवाई नहीं की है, जिसमें माब लिंचिंग के संबंध में दंडात्मक और उपचारात्मक उपाय से संबंधित दिशा-निर्देश निर्धारित किए गए हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि भाषण स्पष्ट रूप से घृणास्पद थे। वकील फरासत ने तर्क दिया कि संबंधित राज्य पुलिस ने तहसीन पूनावाला फैसले में जारी दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया है।