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तुर्की-सीरिया में तबाही के भूकंप : कहां से टकराया और क्यों था इतना घातक!

भवनों में भूकम्परोधी नीति लागू होने से बचा जा सकता है तबाही से

लखनऊ : तुर्की, सीरिया में इतना भयंकर तवाही का भूकम्प क्यों आया? डा. प्लेट टेक्टॉनिक सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी की सतह से 200 किमी० की गहराई में दृढ़ भूखण्ड पाया जाता है। इसके अनुसार पृथ्वी के भू-खण्ड को 6- भागों में विभाजित किया गया है, इन्हीं भू-खंडों को प्लेट कहते हैं, जो निम्नलिखित हैं– इंडियन प्लेट, यूरोशियन प्लेट, अफ्रीकन प्लेट, अमेरिकन प्लेट, पैसिफिक प्लेट और अंटालियन प्लेट। प्लेट टेक्टॉनिक थियरी के अनुसार ये प्लेटें स्थिर नहीं हैं, बल्कि गतिशील अवस्था में हैं। अतः भीषण तवाही का भूकम्प आने के कारणो में, इसका पहला कारण- भूकंप बड़ा होना था- इसे 7.8 के रेक्टर पैमाने पर आंका गया। चूकि तुर्की व सीरिया- अफ्रीकन प्लेट व अंटालियन प्लेट के संगम पर स्थित है, जिससे प्लेटो के टकराने से यह फॉल्ट लाइन के लगभग 100 किमी (62 मील) दूरी के साथ टूट गया और फॉल्ट के पास की इमारतों को गंभीर नुकसान पहुंचा, जब लोग अंदर सो रहे थे। प्रश्न उठता है कि क्या इमारतों की मजबूती भूकम्प के लिये उपयुक्त थी? दक्षिणी तुर्की में ड्रोन फ़ुटेज में 6 फरवरी 2023 के भूकंप से खुली और फटी हुई धरती का दांतेदार निशान, तटबंधों में गहरा कट देखा गया।

तुर्की में आए भूकंप में तीन नई नवनिर्मित अपार्टमेंट जो मलबे में तब्दील हो गईं, का सुरक्षा के सही नियमों के पालन पर प्रश्नचिन्ह लग रहा हैं और उनके ढहने के दृश्य से लोगों में गुस्से को भड़का दिया है। यह भूकंप 7.8 माप का था और सभी प्रकार की इमारतों को धराशायी कर दिया और दक्षिणी तुर्की और उत्तरी सीरिया में लगभग 24,000 लोग मारे गए तथा 72000 लोग घायल हैं।

प्रो.भरत राज सिह, पर्यावरणविद व महानिदेशक, एसएमएस, लखनऊ

निर्माण नियमों को लागू करने में विफलता

यह तथ्य सामने आया है कि मालट्या में एक अपार्टमेंट ब्लॉक का निचला आधा भाग उखड़ा हुआ दिखाई दे रहा है, शेष मलबे पर एक कोण पर खड़ा है, वै सभी अपार्टमेंट पिछले साल “नवीनतम भूकंप नियमों के अनुपालन में पूरी हुई थी। बंदरगाह शहर इस्केंडरुन में, 2019 में बनाये गये 16 मंजिला इमारत के ब्लॉक का एक टुकड़ा छोड़कर पीछे का हिस्सा पूरी तरह से ढह गया। लगता है कि इन्हे नवीनतम मानकों के अनुसार नही बनाया गया था। जबकि देश के उत्तर-पश्चिम में इज़मित शहर के आसपास 1999 में आये भूकंप में 17,000 लोगों के मारे जाने के बावजूद 2018 में नवीनतम मानकों को तैयार किया गया है।

जापान में भूकंपरोधी लागू निर्माण नियमों से लेना चाहिये सबक

जापान जैसे देश, जहां लाखों लोग भीषण भूकंपों आने के बावजूद भी घनी आबादी वाली ऊंची इमारतों में रहते हैं, यह दिखाता हैं कि भूकंप के जोखिम वाले क्षेत्रों में निर्माण सुरक्षा नियम भिन्न होती हैं। जापान में इमारतों को भूकंपरोधी बनाने की तीन अलग-अलग विधियों को अपनाया जाता हैं – सबसे पहले गुणवत्तापूर्ण सामग्री का इस्तेमाल करके इमारत को मज़बूती देना, दूसरा ऊर्जा सोखने के लिए डैम्पर्स का इस्तेमाल करना और तीसरा इमारत को ज़मीन से अलग करना।भूकंप इतना घातक क्यों था एक रिपोर्ट में पर्यावरण और शहरीकरण मंत्रालय के हवाले से कहा गया है कि 2018 में तुर्की में 50% से अधिक इमारतों( (लगभग 13 मिलियन इमारतों) का निर्माण नियमों के उल्लंघन में किया गया था। वर्ष 2020 में इज़मिर के पश्चिमी प्रांत में एक घातक भूकंप के बाद, भी 672,000 इमारतों को सबसे हालिया निर्माण नियमों में छूट देना एक “अपराध” है।

भारत वर्ष में बड़े भूकंप आने की सम्भवना से नकारा नही जा सकता 

तुर्की-सीरिया में आए भूकंप ने पूरी दुनिया को दहला दिया है। भारत वर्ष में पिछले साल करीब 1000 भूकंप के झटके आए थे. जिसमें से 240 बार तेजी से धरती हिली। भूकंप के इलाकों को पांच जोन में बांटा गया है. भारत में पांचवें जोन में आने वाले इलाकों को खतरे में माना गया है। हमारे देश की जमीन का करीब 59 फीसदी हिस्सा जिसमे हिमालयी इलाका भी है, भूकंप के उच्च खतरे वाले जोन में है। जहां कुछ ऐसे तगड़े भूकंप आ चुके हैं, जो रिक्टर पैमाने पर बेहद उच्च तीव्रता के थे। 1897 में शिलॉन्ग पठार पर 8.1 तीव्रता का भूकंप आया था। 1905 में कांगड़ा में 7.8 तीव्रता, 1934 में बिहार-नेपाल बॉर्डर पर 8.3 तीव्रता, अरुणाचल-चीन सीमा पर 1950 में 8.5 तीव्रता का भूकंप और फिर 2015 में 7.9 तीव्रता का भूकंप आया। नेपाल में भी खतरनाक स्तर के भूकंप आते हैं क्योंकि इन इलाकों के करीब ही दो महाद्वीपों की टेक्टोनिक प्लेट मिलती है।

अतः भारत वर्ष में हिमालयी इलाकों के आस-पास दिल्ली, उत्तराखंड, पश्चिमी उत्तर-प्रदेश के इलाकॉ के भवनो को जापान की तरह इमारतों को भूकंपरोधी बनाने की उक्त तीन अलग-अलग विधियों को गुणवत्तापूर्ण सामग्री से इमारत को मज़बूती, ऊर्जा सोखने के लिए डैम्पर्स का इस्तेमाल और इमारत को ज़मीन से अलग करने के सिद्धांत को अपनाना और इसका कड़ाई से अनुपालन भी सुनिस्चित कराना नितांत आवश्यक है।